भारत सरकार ने मंगलवार को भारत ब्रांड चावल लॉन्च किया है. इससे पहले केंद्रीय खाद्य व उपभोक्ता मंत्रालय ने चावल स्टॉक पर लिमिट लगाने की तरफ बढ़ते हुए चावल व्यापारियों से प्रत्येक शुक्रवार को चावल स्टॉक की जानकारी देने को कहा था. वहीं पूर्व में सफेद चावल के एक्सपोर्ट पर बैन लगा दिया गया था. तो 13 मई 2022 को केंद्र सरकार ने गेहूं एक्सपोर्ट पर बैन लिया था, जिसके बाद बीते महीनों में गेहूं स्टॉक पर भी लिमिट लगा दी गई थी. इसी तरह 7 दिसंबर को प्याज एक्सपोर्ट बैन का फैसला लिया गया था.
घरेलू बाजार में महंगाई को नियंत्रित करते हुए केंद्र सरकार इस तरह के फैसले ले रही है. बेशक इस फैसले से आम आदमी को बड़ी राहत मिल रही है, लेकिन किसानों को बड़ा नुकसान उठाना पड़ रहा है. यहां पर ये ध्यान देने की जरूरत है कि किसानाें का प्रमुख काम या आय का मुख्य स्त्रोत उपज बेचकर आई इनकम ही होती है, लेकिन महंगाई नियंत्रण के इन सरकारी प्रयासों से मौजूदा वक्त में किसानों की मुश्किलें बड़ी हुई है.
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अब सवाल ये ही है कि महंगाई पर सरकार की पैनी नजर है तो किसानों को हो रहे नुकसान से क्यों नीति निर्माता बेखबर हैं. आइए इसी सवाल के साथ सरकार के महंगाई नियंंत्रण के प्रयासों के साथ किसानों को रहे नुकसान पर बात करते हैं.
खाद्य पदार्थो की मंहगाई पर सरकार की पैनी नजर है. इसकी जानकारी बीते दिनों संसद में खाद्य, उपभोक्ता व सार्वजनिक वितरण मामलाें के राज्य मंत्री अश्वनी कुमार चौबे ने एक सवाल के जवाब में दी है. उन्होंने अपने जवाब में कहा है कि खाद्य व उपभोक्ता विभाग प्रतिदिन देशभर में फैले 550 सेंटरों से कुल 22 आवश्यक खाद्य वस्तुओं की महंगाई पर नजर रख रहा है. जिसके तहत इन 22 आवश्यक खाद्य वस्तुओं के रिटेल से लेकर थोक कीमतों की निगरानी राज्य सरकारों और केंद्रशासित प्रदेश प्रशासनों की सहायता से की जा रही है.
खाद्य, उपभोक्ता व सार्वजनिक वितरण मामलाें के राज्य मंत्री अश्वनी कुमार चौबे ने सवाल के जवाब में आगे कहा है कि खाद्य वस्तुओं की कीमतें स्थिर होती हैं. क्याेंकि मौसम में बदलाव, आपूर्ति की कमी, जमाखोरी, इंटरनेशनली दामों में बढ़ोतरी इसका मुख्य कारण है. साथ ही उन्होंने आगे कहा है कि सरकार प्रतिदिन देशभर के 550 सेंटरों से जो 22 आवश्यक खाद्य वस्तुओं के दामों को निगरानी करती है, इसकी रिपोर्ट के विश्लेषण के आधार पर ही स्टाॅक लिमिट, एक्सपोर्ट बैन, इंपोर्ट पॉलिसी में बदलाव जैसे फैसले लेती है.
सीधी सी बात है कि चावल, गेहूं एक्सपोर्ट बैन के बाद स्टॉक लिमिट तय करने जैसे प्रावधान, प्याज एक्सपोर्ट बैन जैसे फैसले ही 550 सेंटरों की रिपोर्ट के आधार पर लिए जाते हैं, जिससे किसानाें की मुश्किलें बढ़ी हुई हैं.
वहीं उन्होंने सवाल के जवाब में आगे कहा है कि सरकार ने आम उपभोक्ताओं को कृषि-बागवानी वस्तुओं में अत्यधिक मूल्य अस्थिरता से बचाने के लिए साल 2014-15 में मूल्य स्थिरीकरण निधि (पीएसएफ) योजना शुरू की थी. पीएसएफ के तहत, प्रमुख दालों और प्याज का स्टॉक बनाए रखा गया है, जिसके तहत अब तक कुल 27,489.14 करोड़ रुपये की बजटीय सहायता दी गई है.
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इसी कड़ी में उन्होंने कहा कि PSF के तहत प्याज का बफर स्टॉक बनाए रखा है, इस साल 7 लाख मीट्रिक टन तक पहुंच गया है. वहीं उन्होंने प्याज एक्सपोर्ट बैन का जिक्र करते हुए कहा है कि इससे प्याज किसानों पर प्रतिकूल असर नहीं पड़ा है. अश्वनी कुमार चौबे सदन में उपभोक्ताओं को राहत देने के लिए उठाए गए कदमों की जानकारी दी, लेकिन इस सिक्से का दूसरा पहलू ये नजर आता है कि इस तरह के फैसलों से किसानों को हो रहे नुकसान पर नीति निर्माता बेखबर नजर आतें हैं. आइए जानते हैं कि किसानों को कितना नुकसान हुआ है.
केंद्र सरकार ने 7 दिसंबर की रात को प्याज एक्सपोर्ट बैन का फैसला लिया था. माना जा रहा है कि इस फैसले से अब तक महाराष्ट्र के प्याज किसानों को ही 2 से 3 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है. जिसके बारे में सदन में बीते दिनों एनसीपी सांसद डा अमोल ने सवाल पूछा था. वहीं अगर इस फैसले से गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान के प्याज किसानों को हुए नुकसान को जोड़ा जाए तो संभवत ये रकम 5 हजार करोड़ रुपये तक चली जाएगी. क्योंंकि एक्सपोर्ट बैन के बाद महाराष्ट्र में ही प्याज के थोक भाव 15 से 20 रुपये किलो तक नीचे गिर गए हैं.
महंगाई कम करने के लिए गेहूं-चावल एक्सपोर्ट बैन, स्टाॅक लिमिट लगाने, ओपन मार्केट सेल किसानों को नुकसान पहुंचा रहा है. बीते महीनों में जारी हुई इंडियन काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च की एक स्टडी के अनुसार इन फैसलों से भारतीय किसानों का 40 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है.
अपनी जनता को किसी भी तरह से राहत के प्रयास किसी भी सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए,लेकिन राहत के ये प्रयास, जब उपभोक्ताओं और किसान जैसे वर्गों में बंट जाएं तो संघर्ष स्वाभाविक होना ही है. ऐसे में अगर किसानों के लाभ की बलि लेकर आम उपभोक्ताओं को राहत देने की कोशिश की जाए तो इन कोशिशाें को जायज नहीं ठहराया जा सकता है. इस मामले में दार्शनिक दृष्टिकोण से कहा जाए तो अन्नदाता को दुखी कर स्वस्थ्य राष्ट्र और समाज की परिकल्पना नहीं की जा सकती है.
वहीं अगर इस मामले में सामान्य दृष्टि से कहा जाए तो कहा जा सकता है कि किसान भी उपभाेक्ता ही हैं और उनकी आय का मुख्य आधार अनाज बेचकर होने वाली इनकम है. ऐसे में अगर उनकी आय पर पहरा रहेगा तो इस उपभोक्ताओं की समस्याओं का कभी समाधान नहीं होगा. ऐसे में जरूरी है कि उपभोक्ताओं और किसान हितों में संतुलन साधा जाए. मसलन, एक ऐसी नीति बने, जिसमें किसानों के फायदे की बलि पर उपभोक्ताओं को राहत देने की कोशिश नहीं हो.
जरूरी है कि अगर महंगाई पर पैनी नजर रखी जा रही है और इसे कम करने के लिए जरूरी कदम उठाए जा रहे हैं तो उपज के गिरते दाम, किसानों को हो रहे नुकसान की भी प्रतिदिन खबर ली जाए और उन पर रोकथाम, मरहम लगाने के लिए जरूरी फैसले भी लिए जाएं.
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