उत्तर भारत में लोहड़ी को एक खुशी के त्यौहार के रूप में मनाया जाता है. यह त्यौहार मकर संक्रांति से एक दिन पहले मनाया जाता है. यह त्यौहार विशेष रूप से पंजाब और हरियाणा में हिंदू और सिख समुदायों द्वारा मनाया जाता है. लोहड़ी का त्यौहार किसानों के लिए विशेष महत्व रखता है. इस समय खेतों में फसलें लहलहाने लगती हैं. लोहड़ी का त्यौहार मनाने के लिए रात के समय लकड़ी का घेरा बनाकर आग जलाई जाती है, जिसे लोहड़ी कहा जाता है. यह अग्नि पवित्रता और शुभता का प्रतीक है. इस अग्नि में तिल, गुड़, मूंगफली, रेवड़ी, गजक आदि चढ़ाए जाते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि लोहड़ी पर आग क्यों जलाई जाती है? आइए जानते हैं लोहड़ी के दौरान अग्नि की पूजा क्यों की जाती है और इसका धार्मिक महत्व क्या है.
लोहड़ी शब्द 'तिलोहारी' यानी 'तिल' यानी तिल और 'रोराही' यानी गुड़ से बना है. इसीलिए इसे लोहड़ी कहा जाता है. यह त्यौहार प्रकृति के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए मनाया जाता है. इस दिन अग्नि देवता को गुड़, गजक, तिल जैसी खाद्य सामग्री अर्पित की जाती है. लोहड़ी मुख्य रूप से उत्तरी भारत में कृषक समुदाय द्वारा मनाई जाती है जिसमें वे अपनी कटी हुई फसलें अग्नि देवता को अर्पित करते हैं. इस प्रकार, लोहड़ी फसल के मौसम की शुरुआत का प्रतीक है. यह दिन नए साल की शुरुआत का भी प्रतीक है. इसके अलावा लोहड़ी सर्दी के मौसम के अंत का प्रतीक है और उस दिन सर्दी अपने चरम पर होती है और उसके बाद सर्दी धीरे-धीरे कम होने लगती है. इस प्रकार, लोहड़ी की रात पारंपरिक रूप से वर्ष की सबसे लंबी रात होती है जिसे शीतकालीन संक्रांति के रूप में जाना जाता है.
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लोहड़ी के त्यौहार का मुख्य आकर्षण रात में जलाई जाने वाली आग है जिसे लोहड़ी कहा जाता है. लोहड़ी में जलने वाली अग्नि अग्निदेव का प्रतिनिधित्व करती है. इस दिन रात के समय एक स्थान पर आग जलाई जाती है. सभी लोग इस अग्नि के चारों ओर इकट्ठा हो जाते हैं. सभी लोग मिलकर अग्निदेव को तिल, गुड़ आदि से बनी मिठाइयाँ अर्पित करते हैं. लोककथाओं के अनुसार, लोहड़ी पर जलाए गए अलाव की लपटें फसलों को बढ़ने में मदद करने के लिए लोगों के संदेश और सूर्य भगवान से प्रार्थना करती हैं. बदले में सूर्य देव भूमि को आशीर्वाद देते हैं. लोहड़ी के अगले दिन को मकर संक्रांति के रूप में मनाया जाता है.
लोहड़ी के दिन लोग आग जलाकर उसके चारों ओर नृत्य करते हैं और घर के बड़े-बुज़ुर्ग एक घेरा बनाकर सभी को दुल्ला भट्टी की कहानी सुनाते हैं. कहा जाता है कि मुगल काल में अकबर के समय में दुल्ला भट्टी नाम का एक व्यक्ति पंजाब में रहता था. उस समय कुछ अमीर व्यापारी सामान के बदले शहर की लड़कियों को बेच देते थे, तब दुल्ला भट्टी ने उन लड़कियों को बचाया और उनकी शादी करवाई. तभी से हर साल लोहड़ी के त्योहार पर उनकी याद में दुल्ला भट्टी की कहानी सुनाने की परंपरा चली आ रही है.
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