ज‍िस गेहूं से बनता है पास्ता उसके बारे में जान‍िए सबकुछ, क्यों खास होती है यह क‍िस्म

ज‍िस गेहूं से बनता है पास्ता उसके बारे में जान‍िए सबकुछ, क्यों खास होती है यह क‍िस्म

ड्यूरम गेहूं का इस्तेमाल मेकरोनी, पास्ता और सेवई इत्यादि के उत्पादन के लिहाज से बेहद उपयुक्त है. ड्यूरम गेहूं किस्म को कम पानी की आवश्यकता होती है. सीमित मात्रा में सिंचाई की अवस्था में भी यह अच्छी उपज देती है. इस गेहूं में 1.5-2.0 प्रतिशत अधिक प्रोटीन तथा बीटा-केरोटिन की मात्रा पाई जाती है. 

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ज‍िस गेहूं से बनता है पास्ता उसके बारे में जान‍िए सबकुछ, क्यों खास होती है यह क‍िस्मगेहूं की खेती

क्या आप ड्यूरम (मेकरोनी) गेहूं के बारे में जानते हैं. दरअसल, गेहूं एक विश्वव्यापी फसल है. यह विभिन्न प्रकार के वातावरण में उगाई जाती है. भारत में ड्यूरम (मेकरोनी) गेहूं यानी ट्रिटिकम ड्यूरम की खेती लगभग 20 लाख हेक्टेयर में होती है. चपाती गेहूं (ट्रिटिकम एस्टिवम) की खेती कुल गेहूं के क्षेत्रफल में से 90 प्रतिशत क्षेत्र में होती है. ड्यूरम गेहूं, अन्य गेहूं की प्रजातियों की अपेक्षा वातावरण के प्रति सहिष्णु होता है. इसका दाना अंबर रंग का तथा अन्य गेहूं की प्रजातियों से आकार में बड़ा होता है. दाने की उच्च सघनता तथा ग्लूटिन के साथ-साथ अधिक प्रोटीन की मात्रा के कारण ड्यूरम गेहूं पास्ता बनाने के लिए आदर्श माना जाता है.  आईसीएआर के कृष‍ि वैज्ञान‍िक भारत प्रकाश मीणा, एबी. सिंह, बृजलाल लकरिया, जेके ठाकुर और अशोक के. पात्र ने इसके बारे में पूरी जानकारी दी है. 

कृष‍ि वैज्ञान‍िकों के अनुसार वर्तमान में ड्यूरम गेहूं की खेती भारत के कुछ क्षेत्रों में प्रचलित है, जिसमें मध्य प्रदेश तथा पंजाब प्रमुख हैं. मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र की प्राकृतिक जलवायु (गर्म व शुष्क) इस गेहूं के चमकदार, धब्बेरहित व मोटे दानों के उत्पादन के लिये उपयुक्त है. मध्य प्रदेश में उगाए गए ड्यूरमं गेहूं में सेमोलिना की मात्रा अधिक होती है, जो वास्तव में इसके अंतर्राष्ट्रीय बाजार में मूल्य निर्धारण में महत्वपूर्ण है. ड्यूरम गेहूं की गुणवत्ता को देखते हुए मध्य प्रदेश में यह किस्म गेहूं किसानों के बीच लोकप्रिय हो रही है. 

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ड्यूरम गेहूं का इस्तेमाल 

इसका इस्तेमाल मेकरोनी, पास्ता और सेवई इत्यादि के उत्पादन के लिहाज से बेहद उपयुक्त है. वर्तमान समय में भारतीय मृदा विज्ञान संस्थान, भोपाल में किए गए शोध कार्य के आधार पर ड्यूरम गेहूं के जैविक विधि से उत्पादन के लिए उत्पादन प्रणाली का प्रारूप तैयार किया गया है. 

जैव‍िक ड्यूरम गेहूं उत्पादन से लाभ

  • ड्यूरम गेहूं किस्म को कम पानी की आवश्यकता होती है. सीमित मात्रा में सिंचाई की अवस्था में भी यह अच्छी उपज देती है. 
  • इस गेहूं में 1.5-2.0 प्रतिशत अधिक प्रोटीन तथा बीटा-केरोटिन की मात्रा पाई जाती है, जो कि विटामिन 'ए' बनाता है. 
  • यह गेहूं अधिकांश रोगों के प्रति सहनशील होता है, जिससे इसे जैविक कृषि में बिना किसी परेशानी के उगाया जा सकता है. 
  • इस गेहूं से कई प्रकार के खाद्य उत्पादन जैसे मैकरोनी, सेवई, स्पागेती तथा नूडल्स बनाए जा सकते हैं. जब यह गेहूं जैविक पद्धति से उगाया जाता है, तो इसकी विश्व बाजार में अच्छी मांग रहती है. 
  • जैविक कृषि से मृदा उर्वरता तथा स्वास्थ्य के साथ-साथ मृदा में होने वाली जैविक क्रियाओं में सुधार होता है. 
  • जैविक खाद का उत्पादन किसान द्वारा अपने खेत पर ही करने से उत्पादन लागत 'में कमी हो जाती है. 
  • किसानों को प्रमाणित जैविक गेहूं का उचित मूल्य मिलता है, जिससे उनकी आय में वृद्धि होती है.

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