
‘किसी भी देश के आत्मानिर्भर बनने के पीछे किसानों का एक बड़ा रोल होता है. इसीलिए भारत को कृषि प्रधान देश कहा जाता है. लेकिन बदलते वक्त और दुनिया के साथ कदमताल करने के लिए जरूरी है कि किसानों में भी बदलाव होते रहें. लेकिन यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि सिर्फ खेती करने के तौर-तरीको में बदलाव करने से ही किसानों की तस्वीर नहीं बदलेगी. ये तब मुमकिन होगा जब किसानों को 10 चीजों से पूरी तरह आजादी मिलेगी. ये आजादी होगी शैक्षिक स्तर पर तो स्वास्थ्य और सामाजिक स्तर पर भी इसके लिए काम करना होगा. हर एक फील्ड में किसानों को अपनी हिस्सेदारी बढ़ानी होगी. चौपाल पर बैठकर सियासत की चर्चा करना जरूरी है तो बाजार के बारे में भी बात करनी होगी. आजादी के लिए शिक्षा के सीमित दायरे को भी तोड़ना होगा तो गांव और घर की सूरत बदलने पर भी ध्यान देना होगा.’ ये कहना है एक प्राइवेट यूनिवर्सिटी में वाइस चांसलर डॉ. केएस राना का.
डॉ. राना किसानों के मसीहा कहे जाने वाले चौधरी चरण सिंह के करीबी रहे हैं. उनके साथ रहकर किसानों के दर्जनों धरना-प्रदर्शन और बड़ी सियासी बैठकों में भी शामिल रहे हैं. स्वतंत्रता दिवस के इस मौके पर किसान तक ने डॉ. राना से बातचीत कर किसानों के बारे में जानें वो 10 बड़े विषय जो किसानों में बड़ा बदलाव ला सकते हैं.
डॉ. केएस राना ने किसान तक से चर्चा करते हुए कहा कि आज आलू, टमाटर-प्याज ही सड़कों पर नहीं फेंके जाते हैं, और भी बहुत सारी ऐसी फसलें हैं जिनकी किसानों को लागत तक नहीं मिल पाती है. इसकी एक सबसे बड़ी वजह ये है कि जब एक किसान ये देखता है कि फलां किसान के यहां आलू की पैदावार से खूब रकम पैदा हो रही है, तो वो भी अपने पांच-दस बीघा खेत में आलू बो देता है. ऐसा देश में कई जगह पर देखने को मिलता है. इसके लिए जरूरी है कि किसान क्रॉप डायवर्सिटी पर ध्या न दें. यही बात उस वक्त चौधरी चरण सिंह भी किसानों को समझाते थे.
ऐसा ही एक बार का किस्सा है कि पश्चिेमी यूपी में गन्ने की भरपूर फसल हुई. लेकिन उसके सही दाम नहीं मिल रहे थे. एक जगह चौधरी साहब की बैठक चल रही थी. किसान पहुंच गए कि हमारी फसल के दाम नहीं मिल रहे हैं. इतना सुनते ही चौधरी साहब ने अपनी टोपी उतारते हुए कहा, ‘ऐसा करो अब मेरे सिर पर भी गन्ना बो दो. क्योंकि पूरे पश्चिमी यूपी में आपने कोई शहर नहीं छोड़ा जा गन्ना नहीं बोया हो.’
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डॉ. केएस राना ने बताया कि चौधरी साहब हर छोटे-बड़े मौके पर किसानों को यही समझाते थे कि आपकी जाति सिर्फ किसान है. जब तक अपने को किसान समझोगे तो हर कोई आपकी बात सुनेगा भी और मानेगा भी. इन बातों को चौधरी साहब कहते ही नहीं थे, अपने छात्र जीवन में इसे करके भी दिखाया था, एक बार एक सहभोज का आयोजन किया गया था. उसमे दलित भी शामिल थे. चौधरी साहब उसमे शामिल हुए. जिस पर आगरा कॉलेज, आगरा के हॉस्टल में उनका बहिष्कार कर दिया गया. मैस में खाने नहीं दिया गया. वो कहते थे कि किसान एक जाति है.
एमएसपी के बारे में बोलते हुए डॉ. केएस राना ने बताया कि किसानों के स्तर और उसकी इनकम को बढ़ाने के लिए जितनी जरूरी एमएसपी है उतना ही ये भी जरूरी है कि उस एमएसपी पर खरीद भी हो. उनका कहना है कि आज कई ऐसी फसलें हैं जिनकी एमएसपी घोषित है, लेकिन सरकार उतनी खरीद नहीं करती है. मजबूरी में किसान को बाजार रेट पर अपनी फसल बेचनी पड़ती है. जहां लागत से ऊपर अगर मुनाफा मिला भी तो वो ऊंट के मुंह में जीरे जैसा होता है.
डॉ. केएस राना का कहना है कि आज किसान को सिर्फ खेती पर ही निर्भर नहीं रहना चाहिए. खेती के साथ उसे पशुपालन और जहां मुमकिन हो वहां मछली पालन करे. घर में गाय-भैंस, भेड़-बकरी होगी तो घर के लिए दूध तो मिलेगा ही साथ में बाजार में बेचकर कुछ रुपये भी कमा सकेंगे. साथ ही पशुओं के गोबर और मूत्र से खेत के लिए खाद भी तैयार कर सकते हैं.
डॉ. राना ने बताया कि आज सफल खेती करने के लिए बहुत जरूरी है कि किसान को बाजार की जानकारी हो. किस फसल की डिमांड है, किस फसल के अच्छेि रेट चल रहे हैं. किस फसल की विदेशों में भी मांग हो रही है या हो सकती है. किस फसल में लागत कम मुनाफा ज्यादा हो रहा है. इस तरह की जानकारियां होना आज के वक्त में बहुत जरूरी है. लेकिन ये तभी मुमकिन होगा जब किसान बाजार से जुड़ा होगा या किसी बाजार एक्सपर्ट से जुड़ेगा. आज ऐसा करना बहुत आसान है. टीवी और मोबाइल पर तमाम ऐसे प्रोग्राम हैं जिन्हें सुनकर बाजार की जानकारी ली जा सकती है.
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डॉ. राना का कहना है कि बहुत सारे कारणों की वजह से आज देश ही नहीं विदेशों में नेचुरल और ऑर्गेनिक खेती बाजार की सबसे बड़ी डिमांड है. खानपान के चलते हो रहीं कई बड़ी-बड़ी बीमारियों की वजह से लोग अब नेचुरल और ऑर्गेनिक खेती से तैयार प्रोडक्ट की डिमांड कर रहे हैं. इसके लिए वो मुंह मांगी कीमत तक चुका रहे हैं. नेचुरल और ऑर्गेनिक खेती के दो सबसे बड़े फायदे ये हैं कि एक तो आपकी फसल का अच्छा दाम मिलेगा वहीं खेत की मिट्टी की हैल्थ भी अच्छी बनी रहेगी. और पर्यावरण को भी नुकसान नहीं पहुंचेगा.
मौसम में बड़े-बड़े बदलाव आ रहे हैं. बारिश, सर्दी और गर्मी में भी बदलाव आ चुका है. जनवरी से लेकर दिसम्बर तक हर मौसम में बारिश देखी जा रही है. मई-जून में लू चलते-चलते अचानक से ठंडी हवाओं का झोंका आ जाता है. तापमान में भी बदलाव देखा जा रहा है. ये कहना है डॉ. केएस राना का. उनका कहना है कि इन सभी बदलावों को देखते हुए ये जरूरी है कि किसान खेत में किसी भी चीज का इंतजार न करे. वक्त पर सभी काम पूरे कर लें. अगर फसल पक गई है तो 10-12 दिन का इंतजार न करे. मशीनों का इस्तेमाल कर फसल काटने के काम को जल्द से जल्द पूरा कर ले. इसी तरह से खेतों में दवा का छिड़काव, पानी लगाना आदि काम में भी इंतजार न करे.
डॉ. केएस राना का कहना है कि केन्द्र के साथ-साथ राज्य सरकारें भी वक्त-वक्त पर खेती और किसानों से जुड़ी तमाम योजनाएं लांच करती हैं. इतना ही नहीं खेती-किसानी से जुड़े बड़े-बड़े सरकारी संस्थाए सुझाव जारी करते हैं. और ये सब बातें किसानों के लिए जानना बेहद जरूरी होता है. लेकिन ये तभी मुमिकन है लेकिन इसके लिए हाईटेक होना जरूरी है. हालांकि आजकल ज्यादातर घरों में दो नहीं तो एक बच्चा इतना तो हाईटेक हो ही जाता है. लेकिन हाईटेक होना इसके लिए इतना जरूरी नहीं है. अगर आप थोड़ा बहुत इंटरनेट इस्तेमाल करना भी जानते हैं तो आप इन सब बातों की जानकारी ले सकते हैं. सरकारी योजनाओं का फायदा भी अब तभी मिलता है जब आप आनलाइन कुछ करना जानते हैं. ज्यादा कुछ नहीं तो ओटीपी तो आपको ही डालना होगा.
कम हो पानी पर निभर्रता- आज बहुत सारी ऐसी तकनीक आ गई हैं जिनके चलते कम से कम पानी में भी खेती हो सकती है.
फूलों की खेती- शादी-ब्याह या राजनीतिक रैलियां ही अब फूलों का बाजार नहीं होते हैं. होटल इंडस्ट्री ने फूलों को रोजाना का बाजार दिया है. देश ही नहीं विदेशों में भी फूल एक्सपोर्ट हो रहे हैं और हम मंगा भी रहे हैं.
मेडिसिनल प्लांट- देश ही नहीं विदेशों में भी लोग जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल कर रहे हैं. कोरोना में ही देख लिजिए, जिन्होंने काढ़ा पिया वो क्या था. आज मेडिसिनल प्लांट का एक्सपोर्ट करोड़ों रुपये का हो गया है.
शिक्षा और स्वास्थ्य- गांवों में आज भी शिक्षा और स्वातस्य््ल सेवाओं का वो स्तर नहीं है जो शहर में मिल जाता है. इसी के चलते ग्रामीण इलाकों में शिक्षा का एक दायरा बन गया है. बहुत सारे बच्चे आज भी इसमें सिमट कर रह जाते हैं.
केवीके का हो सुधार- केवीके एक अच्छी स्कीम है. लेकिन वो वक्त के साथ अपग्रेड नहीं होते हैं. केवीके को हाईटेक बनाने की जरूरी है, साथ ही किसानों को चाहिए कि वो केवीके के साथ जरूर जुड़ें.
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