उत्तर प्रदेश की बाराबंकी जनपद के किंतूर गांव में परिजात (Parijat tree) का एक प्राचीन वृक्ष मौजूद है. इस वृक्ष को हेरिटेज वृक्ष का दर्जा सरकार के द्वारा दिया गया है. यह अपने तरह का दुनिया का अकेला वृक्ष है. इस वृक्ष को कल्पवृक्ष के नाम से भी जाना जाता है जिसका मूल अर्थ है मनोकामना पूरा करने वाला वृक्ष.परिजात वृक्ष को देखने के लिए आज भी प्रदेश ही नहीं बल्कि देश के दूर-दूर से पर्यटक यहां पहुंचते हैं. किवदंती के अनुसार इस वृक्ष को खुद भगवान स्वर्ग से पृथ्वी पर लाए थे. यह पूरी दुनिया में अपनी तरह का है एकमात्र दुर्लभ पेड़ है यहां मौजूद महंत मंगलदास के मुताबिक इस वृक्ष की उम्र को 5000 साल से भी पुरानी बताई जाती है. वही हिंदू मान्यताओं के हिसाब से इस वृक्ष का दर्शन करना काफी शुभ माना जाता है. इस पेड़ पर साल में केवल एक महीने ही फूल आते हैं. ऐसा माना जाता है सफेद रंग का इस फूल को भगवान शिव को अर्पित करने से वे प्रसन्न होते हैं.
बाराबंकी में स्थित परिजात वृक्ष से जुड़ी हुई कई तरह की किंवदंतियों आज ही प्रचलित है. पौराणिक कथा के मुताबिक एक बार भगवान कृष्ण अपनी पत्नी रुक्मणी के साथ थे तभी नारद मुनि अपने हाथ में परिजात का पुष्प लिए आए और उन्हें रुक्मणी को दे दिया. रुक्मणी ने इस फूल को अपने बालों में लगा लिया. पुष्प को देखकर उनकी दूसरी पत्नी सत्यभामा ने पूरे परिजात पेड़ की मांग की जिसके बाद भगवान कृष्ण ने इंद्र से परिजात का पेड़ देने का अनुरोध किया लेकिन इंद्र ने उनका अनुरोध ठुकरा दिया. इसके बाद युद्ध हुआ और इंद्र पराजित हुए. इस तरह युद्ध हार कर इंद्र को परिजात का पेड़ सत्यभामा को सौंपना पड़ा जिसके बाद यह वृक्ष धरती पर आ गया. इस वृक्ष को इंद्र ने फल से वंचित रहने का श्राप दिया है. इस वृक्ष में पुष्प के अलावा फल नहीं आते हैं.
वही दूसरी पौराणिक कथा के अनुसार समुद्र मंथन की कथा के अनुसार देवासुर संग्राम के समय समुद्र मंथन से परिजात वृक्ष निकला था. उसे देवताओं के राजा इंद्र अपने साथ स्वर्ग ले गए. द्वापर युग में भगवान कृष्ण के आदेश के बाद कुंती पुत्र अर्जुन उसे पृथ्वी पर लाए. महाभारत काल में पांडवों के अज्ञातवास के दौरान माता कुंती को भगवान शिव ने स्वर्ग के समान दिखने वाले पुष्प को अर्पित करने को कहा था. इस वृक्ष की पुष्प को जब कुंती ने भगवान शिव को अर्पित किया तो उन्होंने प्रसन्न होकर महाभारत युद्ध में विजय का आशीर्वाद दिया. वर्ष में एक महीने ही वृक्ष में पुष्प आते हैं. वही सावन के महीने में इस वृक्ष पर पुष्प आने की संभावना सबसे ज्यादा होती है.
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परिजात वृक्ष बाराबंकी जिले के किंतूर गांव में स्थित है. यह वृक्ष लगभग 50 फुट की गोलाई में फैला हुआ है वहीं इसकी ऊंचाई 45 से 50 फुट है. इस गांव का नाम पांडवों की माता कुंती के नाम पर पड़ा है. इस वृक्ष में हर साल जून और जुलाई महीने में सफेद रंग के पुष्प आते हैं जो सूखने पर सुनहले हो जाते हैं. यह फूल रात में खिलते हैं और सुबह मुरझा जाते हैं. वही इस फूल की सुगंध भी दूर-दूर तक फैल जाती है. वनस्पति विज्ञानियों ने भी इस वृक्ष की आयु 5000 साल तक बताई है. इस पेड़ के बारे में एक और खास बात कही जाती है कि इसकी शाखाएं सूखती नहीं है बल्कि शाखा पुरानी हो जाने के बाद सिकुड़ते हुए मुख्य तने में ही गायब हो जाती हैं.
पारिजात वृक्ष औषधि गुणों से युक्त माना गया है. इसके बीज का सेवन करने से बवासीर रोग ठीक हो जाता है. वहीं इसके फूल हृदय रोग को ठीक करने में कारगर माने गए हैं. आयुर्वेद में भी इस वृक्ष के पुष्प ,पत्तियों और बीज के फायदों का वर्णन मिलता है. त्वचा रोग के लिए परिजात की की पत्ती उपयोगी मानी गई है.
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