अभी गेहूं की कटाई तेजी से चल रही है. जहां कटाई का काम बाकी है, वह कुछ दिनों में शुरू हो जाएगा. ऐसे में आपके लिए यह जानना बेहद जरूरी है कि सबसे अधिक उपज देने वाली गेहूं की किस्में कौन सी हैं. चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय (HAU) के कुलपति प्रो. बीआर कांबोज के मुताबिक गेहूं की किस्में 1402 और 1270 सबसे अधिक उपज देने वाली किस्में हैं. इन दोनों किस्मों को हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में ही विकसित किया गया है. खास बात ये है कि इन किस्मों की खेती कम उपजाऊ और कम पानी वाली जमीन में आसानी से कर सकते हैं.
प्रो. कांबोज बताते हैं, विश्वविद्यालय की स्थापना से लेकर अब तक गेहूं की अधिक उत्पादन देने वाली गेहूं की उन्नत किस्में लगातार वैज्ञानिकों द्वारा ईजाद की जा रहीं हैं. उन्होंने कहा कि वैज्ञानिकों द्वारा बीते साल के दौरान विकसित की गई 1402 और 1270 देश में सर्वाधिक गेहूं का उत्पादन देने वाली किस्में हैं. एचएयू के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित गेहूं की उन्नत किस्में देश भर में लोकप्रिय हैं.
गेहूं की यह किस्म दो पानी और मध्यम स्तर की खाद जरूरत के साथ तैयार हो जाती है. इस किस्म को देश के पश्चिमी भाग के लिए तैयार किया गया है जिसमें पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू कश्मीर जैसे राज्य आते हैं. इन राज्यों में गेहूं की किस्म डब्ल्यूएच 1402 से अधिक उपज ले सकते हैं, वह भी बहुत ही कम खर्च में.
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गेहूं की इस किस्म से दो पानी और कम उपज वाली जमीन में ही औसत उपज 50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर से लेकर 68 क्विंटल तक ले सकते हैं. इस किस्म में पीला रतुआ, भुरा रतुआ जैसी गंभीर बीमारियां भी नहीं लगतीं. इस किस्म से अधिक उपज लेने के लिए किसान नाइट्रोजन 90 किलो, फास्फोरस 60 किलो, पोटाश 40 किलो और जिंक सल्फेट 25 किलो प्रति हेक्टेयर दे सकते हैं.
इस किस्म में 100 दिन में बालियां निकलती हैं और 147 दिनों में पककर तैयार हो जाती है. इसकी बालियां लंबी और लाल रंग की होती हैं. इसके पौधे छोटे होते हैं, इसलिए खराब मौसम में गिरने का खतरा नहीं है. इस गेहूं का दाना मोटाह होता है जिसमें प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है. जिंक और लौह तत्व की मात्रा भी अधिक होती है.
यह गेहूं की उन्नत किस्म है जो रोगों के लिए प्रतिरोधी और अधिक पैदावार देती है. इसे अलग-अलग तरह की जलवायु में आसानी से उगा सकते हैं. इस गेहूं पर पीला रतुआ और भूरा रतुआ रोग नहीं लगता. इसकी औसत पैदावार 75.8 क्विंटल प्रति हेक्येटर होती है. इससे अधिक से अधिक पैदावार 91.5 क्विंटल तक ले सकते हैं. इसके दाने में प्रोटीन की मात्रा 12 परसेंट से अधिक होती है. इसे उत्तर पश्चिमी भारत के मैदानी इलाके में अगेती बुवाई के तौर पर लगा सकते हैं.
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