गेहूं अभी लाल निशान में चल रहा है. यहां लाल निशान का मतलब गेहूं के तेज होते भाव से है. कई कोशिशों के बाद भी बाजार में गेहूं के दाम नहीं घट रहे. गेहूं अभी 26 से 27 रुपये किलो तक बिक रहा है. सरकार ने दाम घटाने के लिए ओपन मार्केट सेल्स स्कीम चलाई है, लेकिन उसका बहुत बड़ा असर होता नहीं दिख रहा. गेहूं का महंगा होना कई मायनों में चिंता की बात है क्योंकि आटे की महंगाई तो बढ़ेगी ही, आटे से बनने वाले प्रोडक्ट जैसे ब्रेड, बिस्कुट, मैदा, सूजी, पास्ता, सेवई आदि भी लाल निशान में पहुंच जाएंगे. इसका सबसे खतरनाक असर पूरी खाद्य महंगाई पर दिखेगा जिससे देश की जनता के साथ-साथ सरकार भी जूझ रही है. इसीलिए गेहूं के दाम को ठंडा रखने के लिए सरकार नए उपाय पर गौर कर रही है. यह उपाय है गेहूं के आयात शुल्क को कम करने का.
'बिजनेसलाइन' अखबार की एक रिपोर्ट में लिखा गया है कि गेहूं के दाम कम नहीं होते हैं तो सरकार इंपोर्ट ड्यूटी यानी कि आयात शुल्क घटाने पर विचार कर सकती है. फूड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर अशोक मीणा कहते हैं, अभी हम बाजार में गेहूं और चावल के खुदरा भाव का ट्रेंड देख रहे हैं. सरकार ने हमें ओपन मार्केट सेल्स स्कीम के तहत गेहूं-चावल बेचने का निर्देश दिया है. हमारा ध्यान इस बात पर है कि गेहूं-चावल के भाव कैसे कम किया जाए.
मीणा कहते हैं, अगर इसके बाद भी गेहूं और चावल के रेट कम नहीं होते हैं तो सरकार के पास और भी विकल्प हैं. इसमें इंपोर्ट ड्यूटी को कम करना शामिल है. इन सभी विकल्पों पर सरकार गौर कर रही है. मीणा उम्मीद जताते हैं कि सरकार जैसे ही अपने उपायों का ऐलान करेगी, अनाजों के भाव गिरने शुरू हो जाएंगे. अभी गेहूं पर 40 फीसद आयात शुल्क लगता है जो दाम बढ़ाने का एक प्रमुख कारण है.
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गेहूं का भाव घटाने के लिए सरकार ने ओपन मार्केट सेल्स स्कीम की घोषणा की है जिसमें 15 लाख टन गेहूं खुले बाजारों में नीलामी के जरिये बेचा जाएगा. इसमें से चार लाख टन गेहूं की नीलामी 28 जून को की जाएगी. इसी तरह चावल की भी नीलामी की जाएगी. इससे पहले 12 जून को सरकार ने एक बड़ा कदम उठाते हुए गेहूं पर स्टॉक लिमिट मार्च 2024 तक चस्पा करने का ऐलान कर दिया. इससे गेहूं की जमाखोरी और दाम में बेतहाशा बढ़ोतरी को रोकने में मदद मिलेगी. स्टॉक लिमिट तय होने से व्यापारियों को हर हफ्ते सरकार को अपने स्टॉक की जानकारी देनी होती है.
गेहूं के दाम को काबू में रखने के लिए सरकार ने उसका रिजर्व प्राइस 2150 रुपये प्रति क्विंटल निर्धारित किया है. रिजर्व प्राइस कम रखने से उपभोक्ताओं को फायदा मिलेगा क्योंकि इससे खुले बाजार में गेहूं के दाम तेजी से नहीं बढ़ेंगे. रिजर्व प्राइस थोक व्यापारियों के लिए होता है जो एफसीआई से अनाज खरीदते हैं.
गेहूं का भाव चिंता का सबब इसलिए बना हुआ है क्योंकि इस बार उत्पादन सरकारी अनुमान से कम रहने की आशंका है. दावा 110 मिलियन टन से अधिक उत्पादन का था, लेकिन इसके 101 से 103 मिलियन टन तक रहने का अनुमान बताया जा रहा है.
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रॉयटर्स की एक रिपोर्ट में कहा गया है, नई दिल्ली में गेहूं की कीमतें पिछले दो महीनों में 10 परसेंट से बढ़कर 24,900 रुपये ($303) प्रति मीट्रिक टन हो गई हैं, जिससे सरकार को 15 वर्षों में पहली बार व्यापारियों द्वारा रखे जाने वाले गेहूं स्टॉक की मात्रा पर सीमा लगाने के लिए मजबूर होना पड़ा है. नई दिल्ली स्थित एक अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक कंपनी ने बताया कि इस साल खाद्य मंत्रालय ने गेहूं के उत्पादन को अधिक बताया है. इसी बारे में मुंबई में एक कंपनी ने कहा कि सरकार ने गेहूं का उत्पादन बताने में फरवरी के लू और गर्मी के असर को ध्यान में नहीं रखा जिसका पैदावार पर भारी असर पड़ा है.
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