लद्दाख के रक्तसे कारपो खुबानी को मिला GI टैग, 1 डिस्ट्रिक्ट 1 प्रोडक्ट के तहत दिया जा रहा है बढ़ावा

लद्दाख के रक्तसे कारपो खुबानी को मिला GI टैग, 1 डिस्ट्रिक्ट 1 प्रोडक्ट के तहत दिया जा रहा है बढ़ावा

लद्दाख के रक्तसे कारपो खुबानी को पहला GI टैग मिला है. यह लद्दाख में मिठास, सफेद गिरी और रंगीन होने के कारण यह काफी मशहूर है. लद्दाख के मूल ख़ुबानी में एक सफेद बीज कोट होता है जो लद्दाख के अलावा कहीं और नहीं पाया जाता है.

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लद्दाख के रक्तसे कारपो खुबानी को मिला GI टैग, 1 डिस्ट्रिक्ट 1 प्रोडक्ट के तहत दिया जा रहा है बढ़ावाकारपो खुबानी को मिला GI Tag

लद्दाख के रक्तसे कारपो खुबानी को पहला GI टैग मिला है. GI टैग की सूची में पंजीकृत 9 चीजों में से यह एक है. हालांकि लद्दाख में 30 से अधिक प्रकार की खुबानी को उगाया जाता है. लेकिन रक्तसे कारपो किस्म इस क्षेत्र के लिए अद्वितीय है. यह लद्दाख में मिठास, सफेद गिरी और रंगीन होने के कारण यह काफी मशहूर है. लद्दाख के मूल ख़ुबानी में एक सफेद बीज कोट होता है जो लद्दाख के अलावा कहीं और नहीं पाया जाता है. ताज़ा ख़पत के लिए उपभोक्ताओं द्वारा इसे सबसे ज़्यादा पसंद किया जाता है. इसके अलावा रक्तसे कारपो में भूरे रंग के कोट वाले फलों की तुलना में काफी ज़्यादा सोर्बिटोल होता है. लद्दाख में उगाए जाने वाले 9 फलों में लेह और कारगिल ज़िलों में बड़े पैमाने पर खेती के साथ खु़बानी लद्दाख का प्रमुख फल है. कारगिल के लिए 1 डिस्ट्रिक्ट 1 प्रोडक्ट के तहत ख़ुबानी को भी बढ़ावा दिया जा रहा है.

आपको बता दें भारत में GI टैग की कुल संख्या 432 हो गई है. जिसमें 401 भारत के ही देसी उत्पाद हैं. बाकी 31 विदेशी मूल के उत्पाद हैं. जिन्हें भारत की तरफ से GI टैग मिला है. लद्दाख की ख़ुबानी तो दुनियाभर में मशहूर है. अब यहां रक्तसे कारपो ख़ुबानी को भी GI टैग मिल गया है. इस खु़बानी में सफेद बीज वाले पत्थरों के साथ एक विशेष बीज होता है. जबकि पूरी दुनिया में ख़ुबानी के अंदर का बीज भूरे रंग के होते हैं.

क्या है GI टैग?

इसे विश्व व्यापार संघ WTO के द्वारा संचालित किया जाता है. यह एक भौगोलिक क्षेत्र से उत्पन्न होने वाली कृषि उत्पाद प्राकृतिक या कृत्रिम उत्पाद, हाथों से की गई विशेष हैंडिक्रफ्ट के उत्पाद और औद्योगिक उत्पाद जैसे वस्तु जिसकी अपनी अनूठी गुणवत्ता और भौगोलिक विशेषता हो यह टैग उसे दिया जाता है. 

भारत माल के लिए भौगोलिक संकेतक पंजीकरण और संपक्षण अधिनियम 1999 के द्वारा इसमें शामिल हुआ. जो 2003 से प्रभावी हुआ था. आपको बता दें कि भारत का पहला उत्पाद या प्रोडक्ट दार्जिलिंग की चाय है जिसे 2004 में GI टैग दिया गया है. विश्व में सबसे अधिक GI टैग प्राप्त करने वाला देश जर्मनी है.

कैसे मिलता है GI टैग?

GI टैग प्राप्त करने के लिए निजी व्यक्ति, समूह या संस्था के द्वारा आवेदन करना होता है. इसके बाद उसकी गहन जांच पड़ताल के बाद यह संकेत दिया जाता है. जो की अघले 10 सालों के लिए मान्य होता है. इसके बाद उसे जारी रखने के लिए फिर से रिन्यू करवाना होता है. 

GI टैग मिलने से प्रोडक्ट को देश विदेश में पहचान मिलती है. जिससे उस प्रोडक्ट की मांग बढ़ती है और उससे जुडे़ लोगों की आय बढ़ती है.

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