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'सिबिल स्कोर' के दायरे में किसान : कितनी हकीकत कितना फसाना

'सिबिल स्कोर' के दायरे में किसान : कितनी हकीकत कितना फसाना

आजाद भारत में हालात कुछ ऐसे बने कि किसानों को मुसीबतों का पर्याय मान लिया गया. मौसम की मार से लेकर कर्ज के बोझ तक, तमाम समस्याओं से किसानों को बाहर निकालने की, सरकार जितनी भी कोशिश करती है, किसान उतना ही मुसीबतों के जंजाल में फंसता नजर आता है. किसानों को अब 'सिबिल स्कोर' नाम की नई मुसीबत से दो चार होना पड़ रहा है.

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महाराष्ट्र के अकोला में सिबिल स्कोर के ख‍िलाफ हाल ही में प्रदर्शन करते किसान, फोटो: किसान तक महाराष्ट्र के अकोला में सिबिल स्कोर के ख‍िलाफ हाल ही में प्रदर्शन करते किसान, फोटो: किसान तक

किसानों के लिए जानलेवा साबित हो रही कर्ज की मार के दायरे में 'सिबिल स्कोर' का जुड़ना 'कोढ़ में खाज' के समान है. सरकार और सियासी जमात इस बात से वाकिफ है, मगर खामोश है. वजह साफ है, हर मुद्दे की तरह इस मुद्दे को भी पहले पकाना और फिर नफा नुकसान का गुणा गणित करके सियासी रोटियां सेंकना. चर्चा है कि नौकरीपेशा लोगों की तरह किसानों को भी सिबिल स्कोर के दायरे में लाने की बात भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के पिटारे से निकली है. इस पर सबसे पहले सुगबुगाहट कर्नाटक में हुई. जहां मैसूर और बेंगलुरु में किसानों के एक संगठन ने मार्च और मई में यह मुद्दा उठाया. कर्नाटक के किसान नेताओं ने पहले ही आगाह कर दिया था कि कृष‍ि ऋण, अन्य प्रकार के बैंकिंग लोन से नितांत भिन्न है. इसलिए किसानों के कृष‍ि ऋण को सिबिल स्कोर के दायरे में लाना घातक साबित होगा.

महाराष्ट्र से उठी चिंगारी

कर्नाटक में शायद चुनावी शोरगुल के बीच यह मुद्दा संगीन नहीं हो पाया. इसके बाद आरबीआई के फरमान को महाराष्ट्र के राष्ट्रीयकृत बैंकों ने अमल में लाना शुरु कर दिया. ये बैंक अकोला में किसानों को खराब सिबिल स्कोर के चलते खरीफ की फसल के लिए कृष‍ि ऋण देने से मना करने लगे. इस पर किसान आंदोलित होकर सड़कों पर आ गए. वक्त की नजाकत को भांपते हुए राज्य के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उपमुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस ने किसानों के सुर में सुर मिलाकर बैंकों को ऐसी कोई व्यवस्था लागू करने से बचने को कहा है.

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फडणवीस ने तो यहां तक कह दिया कि सिबिल स्कोर के नाम पर किसानों को खेती के लिए ऋण देने से मना करने वाले बैंकों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जाएगी. अकोला के किसान बाबूराव सांभले ने जब बैंक के एक अधिकारी को फडणवीस के बयान का हवाला देकर कृष‍ि ऋण मांगा तो उक्त अधिकारी ने सरकार की ओर से ऐसा कोई आदेश उन्हें नहीं मिलने की बात कह कर उनके कर्ज के आवेदन को खारिज कर दिया.

आख‍िर है क्या मसला

इस विषय में कृष‍ि विशेषज्ञ बिनोद आनंद ने 'किसान तक' को बताया कि किसानों को सिबिल स्कोर के दायरे में लाने का कोई आदेश सरकार की ओर से बैंकों को पारित नहीं किया गया है. उन्होंने बताया कि बैंकिंग लोन की व्यवस्था पर निगरानी रखने वाली बैंकों की ही एक संस्था 'क्रेडिट इंर्फोमेशन ब्यूरो इंडिया लिमिटेड' यानि 'सिबिल' ने कृष‍ि ऋण को सिबिल स्कोर के दायरे में लाने के लिए बैंकों को कहा है.

बैंकों से कहा गया है किसानों को पिछले कर्जों की अदायगी के रिकॉर्ड को खंगाल कर ही नया कर्ज दिया जाए. गौरतलब है कि किसी व्यक्ति को कर्ज देने से पहले बैंक द्वारा उसका सिबिल स्कोर देखा जाता है. इसके तहत पहले लिए गए कर्ज का समय से भुगतान करने का रिकॉर्ड देखकर ही कर्ज लेने वाले का सिबिल स्कोर तय किया जाता है.

सिबिल स्कोर के मायने

इसके मानकों के मुताबिक सिबिल स्कोर 300 से 900 के बीच दर्ज किया जाता है. बैंक से कर्ज लेने के लिए आदर्श स्थिति में सिबिल स्कोर 750 से ऊपर होना चाहिए. हालांकि 600 से 750 के बीच सिबिल स्कोर होने पर भी बैंक आसानी से कर्ज दे देते हैं. लेकिन 600 से कम सिबिल स्कोर होने पर कर्ज मंजूर करने से पहले बैंक तमाम तरह की गारंटी की दरकार रखते हैं. इतना ही नहीं, सिबिल स्कोर 350 या 400 से कम होने पर, बैंक द्वारा कर्ज का आवेदन खारिज कर दिया जाता है. ऐसे में खेती का कर्ज सरकार द्वारा माफ किए जाने के अभ्यस्त हो चुके किसानों काे सिबिल स्कोर के दायरे में लाना, आम तौर पर उनके कर्ज का आवेदन निरस्त होने की गारंटी का खतरा बन कर उभरा है.

किसानों की दलीलें

जमीनी हकीकत यह है कि नौकरीपेशा लोग भले ही सिबिल स्कोर से वाकिफ हो, मगर देश के किसान, आम तौर पर सिबिल स्काेर नामक बला से नावाकिफ ही है. सिबिल स्कोर के बारे में जानकारी का अभाव और इसे समझने का झंझट, किसानों के लिए सबसे बड़ी मुसीबत है. यह बात दीगर है कि देश में इस मुद्दे के तमाम पहलुओं पर चर्चा अब शुरू हो चुकी है, मगर किसानों को इसकी पुख्ता जानकारी मिलने के स्रोत बेहद सीमित होना, इस परेशानी को बढ़ाने का सबब बन रहा है.

अकोला के किसान बाबूराव ने 'किसान तक' से अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि बैंक ने जब उनके लोन के आवेदन को खारिज किया, तब उन्होंने पहली बार 'सिबिल स्काेर' का नाम सुना था. बैंक कर्मी ने जब उन्हें इसके बारे में बताया, तब उन्हें अहसास हुआ कि देश भर के किसानों के सामने यह एक नई और बड़ी मुसीबत सामने आ गई है.

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क्या कहते हैं जानकार

कृष‍ि विशेषज्ञ गिरीश पांडे ने भी इसे किसानों के साथ छल करार देते हुए 'किसान तक' से कहा कि पर्सनल लोन या उद्योग के वास्ते लिए जाने वाले कर्ज की अदायगी के एवज में सिबिल स्कोर तय किया जाता है. पांडे ने दलील दी कि घर, मकान, दुकान या वाहन आदि लग्जरी चीजों के वास्ते लिए जाने वाले पर्सनल लोन से कृष‍ि ऋण की तुलना हर्गिज नहीं की जा सकती है. उन्होंने कहा कि पर्सनल लोन या कारोबारी ऋण लेने वालों की नियमित आय होती है, जबकि किसान की कोई नियमित आय नहीं होती है. साल में होने वाली एक या दो फसलें ही उसकी आय का सहारा है. यह आय भी मौसम और बाजार जैसे दो नितांत अनिश्चित आधारों पर टिकी होती है. 

किसान हितों की वकालत करने वाले बिनोद आनंद ने भी इस बात से इत्तेफाक जताते हुए कहा कि सिबिल स्कोर के दायरे में कृषि ऋण को लाना देश की अर्थव्यवस्था के लिए घातक होगा. उन्होंने दलील दी कि कोरोना महामारी में जब दुनिया भर के देशों की अर्थव्यवस्था ढह रही थी, तब देश के किसानों ने ही तमाम दुश्वारियों के बावजूद भारत की अर्थव्यवस्था को ढहने से बखूबी बचाया था. इसके पीछे कृष‍ि ऋण ही एकमात्र सहारा बना था. उन्होंने कहा कि अगर सरकार ने किसानों से इस सहारे को भी छिन जाने दिया तो यह न केवल किसानों के लिए बल्कि पूरी अर्थव्यवस्था के लिए घातक साबित होगा.

मुद्दे का दूसरा पहलू

इस बीच बैंकिंग एवं वित्तीय जानकारों की दलील है कि किसानों की कर्ज माफी और तमाम तरह की सब्सिडी जैसे 'नजरानों' की ही वजह से किसान अब तक इस व्यवस्था की कमजोर कड़ी बना हुआ है. ऐसे में किसानों को बाजार के प्रतिस्पर्धी माहौल के अनुकूल बनाने के लिए सिबिल स्कोर के दायरे में लाना जरूरी है.

दबी जुबान दलील यह भी दी जा रही है कि आखिर सरकारें कब तक किसानों को सब्सिडी और कर्ज माफी के सहारे दया का पात्र बना कर रखेंगी. किसान आत्मनिर्भर तभी बन सकते हैं जब वे बाजार की खुली स्पर्धा में शामिल होंगे और ऐसा तब हो सकता है, जब उन्हें सिबिल स्कोर के दायरे में लाने जैसे व्यवहारिक फैसलों को स्वीकार करने योग्य बनाया जाएगा.

हालांकि बाजार के पैरोकार यह भी मानते हैं कि सिबिल स्कोर के दायरे में लाने के कदम से शुरू में किसानों को परेशानी होगी. ऐसे में कम मात्रा में कृष‍ि ऋण लेने वाले लघु एवं सीमांत किसानों को सिबिल स्कोर से बाहर रखे जाने के विकल्प काे इस मुद्दे के समाधान की दिशा में बीच का रास्ता बताया जा रहा है.