नई संसद के पहले सत्र में भाजपा सांसद रमेश बिधूड़ी द्वारा बसपा सांसद दानिश अली के लिए उपयोग किए गए शब्दों को अभी जनता भूली नहीं है. अब बिधूड़ी को भाजपा ने टोंक जिले का चुनाव प्रभारी बनाया गया है. इस सीट से 2018 में सचिन पायलट और बीजेपी से यूनुस खान चुनाव लड़े थे. जिसमें पायलट को जीत हासिल हुई थी. लेकिन बिधूड़ी को प्रभारी बनाए जाने से जहां कांग्रेस ने भाजपा को मुस्लिम विरोधी करार दिया है. वहीं, उनके यहां आने से भाजपा की एक खास रणनीति दिखाई दे रही है.
इस एक्प्लेनर में हम आपको इस एपिसोड की पूरी इनसाइड स्टोरी बताने जा रहे हैं कि आखिर बिधूड़ी को टोंक की कमान दिए जाने की पीछे क्या वजह है? पढ़िए ये रिपोर्ट.
टोंक विधानसभा सीट हमेशा से मुस्लिम सीट रही है. 2018 में पायलट ने जब चुनाव लड़ा तो 46 साल का कांग्रेस का गैर मुस्लिम उम्मीदवार उतारने का रिकॉर्ड टूट गया था. बीजेपी यहां 1980 से लगातार जैन (हिंदू) चेहरा उतारती रही है. लेकिन 2018 में बीजेपी ने 38 साल बाद मुस्लिम प्रत्याशी यूनुस खान को उतारा. हालांकि यूनुस यहां पायलट से करीब 54 हजार वोटों से हार गए थे. जबकि पिछली वसुंधरा सरकार में यूनुस नंबर दो की हैसियत रखने वाले नेता थे.
इससे पहले टोंक सीट आरएसएस की हिंदुत्व की प्रयोगशाला रही है. पायलट के टोंक से चुनाव लड़ने से ये सीट साम्प्रदायिक से जातिगत बन गई. क्योंकि टोंक में बड़ी संख्या में मुस्लिम मतदाता हैं. साथ ही गुर्जर वोट बैंक भी इस सीट पर अच्छा-खासा है. इसीलिए ये सीट पिछली बार की तरह इस बार भी साम्प्रदायिक ना होकर जातिगत बन गई है. जाति के साथ-साथ बीजेपी के हार्ड हिंदुत्व का ‘आईकन’ बने बिधूड़ी से संभव है कि सामान्य वोट छिटक कर बीजेपी के खाते में आ जाएं.
टोंक में बीजेपी का प्लान सचिन पायलट को दोतरफा घेरने का है. संसद में मुस्लिम विरोधी बयान देने वाले बिधूड़ी चर्चा में आ गए हैं. साथ ही बिधूड़ी गुर्जर समुदाय से आते हैं. सचिन पायलट भी गुर्जर समाज से ताल्लुक रखते हैं. कमाल का संयोग है कि दोनों नेताओं का गोत्र भी बिधूड़ी ही है. रमेश बिधूड़ी को टोंक प्रभारी बनाने से बीजेपी को उम्मीद है कि वे गुर्जर वोट बैंक को अपनी तरफ खिसकाने में कामयाब हो पाएंगे. साथ ही बीजेपी को जो वोट हिंदुत्व विचारधारा के आधार पर मिलते हैं वे प्लस वोट हैं ही.
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इसके अलावा चर्चा है कि बीजेपी फिलहाल टोंक-सवाईमाधोपुर सांसद सुखबीर जौनपुरिया को भी पार्टी टोंक से विधानसभा चुनाव लड़वा सकती है. सुखबीर भी गुर्जर समाज से आते हैं. इस तरह बीजेपी का प्लान है कि कांग्रेस के बड़े नेताओं में शुमार पायलट को दोतरफा घेरा जाए. दो गुर्जर नेताओं के दम पर गुर्जर वोटों को बीजेपी अपनी तरफ खींचने की कोशिश करती दिखाई दे रही है. इतना ही नहीं बिधूड़ी के प्रभारी बनाए जाने से आसपास के जिलों में गुर्जर वोटों के ध्रुवीकरण होने की उम्मीद बीजेपी लगाए बैठी है.
टोंक सीट मुस्लिम बहुल सीट कही जाती है. यहां पायलट और बिधुड़ी के सजातिय गुर्जर वोटों की संख्या करीब 50 हजार मानी जाती है. वहीं, करीह 75 हजार वोट मुस्लिमों के हैं. इसके अलावा करीब 80 हजार एससी-एसटी मतदाता हैं. पिछली बार कांग्रेस का सियासी गणित था कि गुर्जर, एससी-एसटी और मुस्लिम वोट कांग्रेस के पक्ष में आ सकते हैं. क्योंकि मुस्लिमों को कांग्रेस का पारंपरिक वोट माना जाता है.
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सचिन पायलट के गुर्जर होने से बीजेपी का पारंपरिक गुर्जर वोट पायलट के पक्ष में आ गया था. लेकिन इस बार रमेश बिधूड़ी और सुखबीर सिंह जौनपुरिया को आगे कर भाजपा कांग्रेस से एक कदम आगे आ गई है. अगले कुछ दिनों में देखने वाली बात यह होगी कि बीजेपी के इस कदम का कांग्रेस क्या तोड़ निकालती है?
बिधुड़ी के टोंक प्रभारी बनाए जाने का सबसे ज्यादा असर गुर्जर वोट बैंक पर ही पड़ने वाला है. ये समुदाय में अधिकांश लोग खेती और पशुपालन से जुड़ा हुआ है. गुर्जर समुदाय के लोग अधिकतर दूध बेचने का काम करते हैं. इस क्षेत्र में डेयरी व्यवसाय पर गुर्जर समुदाय का ही प्रभुत्व है.
वहीं, पूरी टोंक विधानसभा सीट में 80 फीसदी लोग खेती पर निर्भर करते हैं. इलाके में पानी की कमी है, ऐसे में यह तो तय है कि इस विधानसभा चुनाव में किसानी पेशे से जुड़ा गुर्जर समुदाय अपनी बड़ी भूमिका निभाने जा रहा है.
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