इथेनॉल उत्पादन से देश को विदेशी मुद्रा की बचत के साथ-साथ किसानों और पर्यावरण को भी चौतरफा लाभ हुआ है. इस पहल ने न केवल कच्चे तेल के आयात पर निर्भरता कम की है, बल्कि गन्ना, मक्का और अन्य कृषि उत्पादों के उपयोग से किसानों की आय में भी वृद्धि की है. बल्कि अब पराली को इथेनॉल में बदलने से सरकार और किसान दोनों की चिंताए कम होने की आशा है क्योंकि इसके लिए सरकार ने प्लांट लगा दिए हैं. इसके अतिरिक्त, इथेनॉल उत्पादन ने कार्बन उत्सर्जन में कमी लाकर पर्यावरण को सुरक्षित रखने में अहम भूमिका निभाई है, जिससे देश को एक स्वच्छ और हरित भविष्य की ओर अग्रसर होने में मदद मिली है.
भारत के पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने हाल ही में बताया कि इथेनॉल के लिए स्थिर और लाभकारी मूल्य नीति ने न केवल गन्ना किसानों के बकाया को कम करने में मदद की है, बल्कि कच्चे तेल के आयात पर भारत की निर्भरता को भी घटाया है. इसके साथ ही, इस नीति ने पर्यावरण संरक्षण में भी अहम योगदान दिया है, जिससे देश को हरित ऊर्जा की दिशा में आगे बढ़ने में सहायता मिली है. उन्होंने बताया कि साल 2014 में इथेनॉल का मिश्रण प्रतिशत केवल 1.53 फीसदी था, जो 2024 में बढ़कर 15 फीसदी हो गया है. सरकार का लक्ष्य 2025 तक इसे 20 फीसदी तक पहुंचाने का है.
ये भी पढ़ें: कम बजट में डेयरी खोलने के लिए इस बेहतर नस्ल की गाय पालें, कमाई का फार्मूला भी जान लें
पुरी ने बताया कि पिछले एक दशक में इस पहल से 99,014 करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा की बचत, 519 लाख मीट्रिक टन कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन में कमी और 173 लाख मीट्रिक टन कच्चे तेल की खपत में कमी आई है. केंद्रीय पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री पुरी ने बताया कि सरकार ने इथेनॉल उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए कई प्रोत्साहन योजनाएं लागू की हैं. इनमें मक्का से प्राप्त इथेनॉल के लिए 9.72 रुपये प्रति लीटर, क्षतिग्रस्त चावल से इथेनॉल के लिए 8.46 रुपये प्रति लीटर और सी-हैवी शीरे से इथेनॉल के लिए 6.87 रुपये प्रति लीटर की सब्सिडी शामिल है. इन प्रोत्साहनों का परिणाम यह रहा कि मक्का से इथेनॉल उत्पादन 2021-22 में 0 फीसदी से बढ़कर 2023-24 में 36 तक पहुंच गया है.
केंद्रीय मंत्री पुरी ने इथेनॉल उत्पादन को बढ़ावा देने और पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के लिए उठाए गए कई सरकारी कदमों की जानकारी दी. उन्होंने बताया कि पानीपत और नुमालीगढ़ में दूसरी पीढ़ी (2जी) की दो रिफाइनरियां स्थापित की गई हैं, जो पराली और बांस जैसे कृषि अवशेषों को इथेनॉल में बदलती हैं. ये रिफाइनरियां किसानों को “ऊर्जादाता” बनाने में मदद करती हैं, जो प्रदूषण को कम करने और ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत करने में योगदान देंगे.
ये भी पढ़ें: Animal Production: बढ़ेगी किसानों की इनकम, पशुपालन में 9 काम पर खर्च होंगे 17 सौ करोड़
केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी ने कहा कि सरकार ने भारतीय खाद्य निगम (FCI) से चावल की आपूर्ति को फिर से शुरू किया है, जिससे अगस्त से अक्टूबर 2024 के बीच ई-नीलामी के माध्यम से 23 लाख टन तक चावल खरीदा जा सकेगा. इसके अतिरिक्त, वर्ष 2024-25 में इथेनॉल आपूर्ति की शुरुआत को चिह्नित करते हुए, इथेनॉल उत्पादन के लिए नवंबर 2024 से गन्ने के रस और सिरप की आपूर्ति भी शुरू की जाएगी.
इथेनॉल उत्पादन से किसानों को बड़ा आर्थिक लाभ हुआ है. इससे कृषि उत्पादों की मांग बढ़ी है, खासकर गन्ने जैसी फसलों की. इससे किसानों को अपनी उपज का बेहतर दाम मिल रहा है और उनकी आय में वृद्धि हो रही है. सरकार द्वारा इथेनॉल के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए नीतिगत समर्थन और प्रोत्साहन दिए जा रहे हैं, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सुधार हुआ है. मंत्री ने यह भी बताया कि इथेनॉल के लिए स्थिर और लाभकारी मूल्य की नीति ने गन्ना किसानों के बकाया को कम करने, कच्चे तेल के आयात पर निर्भरता घटाने और पर्यावरण को लाभ पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई है.
हालांकि, इथेनॉल उत्पादन के लिए कृषि योग्य भूमि का सही उपयोग सुनिश्चित करना एक बड़ी चुनौती है. लेकिन उचित नीतियों और प्रौद्योगिकी के साथ, भारत इथेनॉल उत्पादन में आत्मनिर्भरता की ओर तेजी से बढ़ सकता है. इसके अलावा, इथेनॉल की नई प्रौद्योगिकियों और बेहतर उत्पादन पद्धतियों को अपनाकर इसके उत्पादन की लागत को भी कम किया जा सकता है. इस प्रकार, इथेनॉल उत्पादन ने भारत को आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय दृष्टिकोण से लाभान्वित किया है और यह एक सशक्त, स्थायी, और हरित ऊर्जा भविष्य की ओर एक अहम कदम है.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today