भारत के किसानों के लिए मुनाफे का जरिया बना Dragon Fruit, क्‍या इसका इतिहास जानते हैं?  

भारत के किसानों के लिए मुनाफे का जरिया बना Dragon Fruit, क्‍या इसका इतिहास जानते हैं?  

भारत सरकार ने ड्रैगन फ्रूट की खेती को प्रोत्साहित करने के लिए हाल के वर्षों में कई पहलें की हैं. प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना और मिशन फॉर इंटीग्रेटेड डेवलपमेंट ऑफ हॉर्टिकल्चर के तहत किसानों को सब्सिडी दी जा रही है. इसके अलावा कुछ राज्यों ने इसे ‘कम पानी में अधिक उत्पादन देने वाली फसल’ के रूप में प्रमोट किया है.

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भारत के किसानों के लिए मुनाफे का जरिया बना Dragon Fruit, क्‍या इसका इतिहास जानते हैं?  भारत में ड्रैगन फ्रूट बना किसानों का फेवरिट

ड्रैगनफ्रूट जिसे भारत के कई हिस्‍सों में कमलम के तौर पर भी जानते हैं, एक पूरे साल उगने वाला कैक्टस है. ड्रैगन फ्रूट अब भारत के किसानों को भी आकर्षित करने लगा है. न केवल अपने लाल और गुलाबी रंग और हेल्‍दी फूड प्रॉडक्‍ट के तौर पर इसकी अहमियत बढ़ गई है बल्कि किसान इसकी खेती से मुनाफा भी कमाने लगा हैं. लेकिन इस फल का इतिहास भी अपने आप में काफी खास है. आज आपको बताते हैं कि ड्रैगन फ्रूट या कमलम का इतिहास क्‍या है कैसे यह भारत तक पहुंचा. 

राजा के लिए उगाया गया फल 

पत्तों से छिपा यह फल चीन के धार्मिक ग्रंथों में बताए जाने वाले ड्रैगन की तरह दिखता है और इसलिए ही इसे ड्रैगन फ्रूट भी कहते हैं. मेक्सिको और मध्य और दक्षिण अमेरिका के उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में यह फल पैदा होता था. लेकिन अब अमेरिका, एशिया, ऑस्ट्रेलिया और मीडिल ईस्‍ट तक इसकी खेती होने लगी है. वर्तमान में कम से कम 22 उष्णकटिबंधीय देशों में इसकी खेती हो रही है.इतिहासकारों की मानें तो करीब 100 साल पहले फ्रांस के लोग इस फसल को वियतनाम में लाया था और इसे राजा के लिए उगाया गया था. बाद में, यह पूरे देश के धनी परिवारों में लोकप्रिय हो गया. अब  इसे वियतनाम और थाईलैंड में बड़े पैमाने पर उगाया जाता है. वियतनाम में इसे 'थान लॉन्ग' कहा जाता है, जिसका अर्थ होता है 'नीला ड्रैगन'. यही नाम बाद में अंतरराष्‍ट्रीय स्तर पर ड्रैगन फ्रूट के रूप में लोकप्रिय हुआ.  

एक दशक पहले शुरू हुई खेती 

ड्रैगन फ्रूट की खेती भारत में करीब एक दशक पहले शुरू हुई थी, लेकिन इसका असली विस्तार पिछले कुछ वर्षों में हुआ है. गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में किसान अब पारंपरिक फसलों से हटकर इसकी ओर रुख कर रहे हैं. यह फल गर्म और शुष्क जलवायु में आसानी से उगाया जा सकता है और इसकी सिंचाई की आवश्यकता भी बहुत कम होती है. इसके पौधे कैक्टस फैमिली के होते हैं, जो सूखा सहने की क्षमता रखते हैं. इस वजह से यह फसल कम पानी वाले इलाकों में भी बढ़िया उत्पादन देती है.

कहां-कहां होती खेती 

भारत में कमलम फल की खेती तेजी से बढ़ रही है और कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, गुजरात, छत्तीसगढ़, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, मिजोरम और नागालैंड के किसानों ने इसकी खेती करना प्रारंभ कर चुके हैं. वर्तमान में, भारत में ड्रैगन फ्रूट की खेती का कुल क्षेत्रफल 3,000 हेक्टेयर से अधिक है जो घरेलू मांग को पूरा करने में सक्षम नहीं है. इसलिए भारतीय बाजार में उपलब्ध ड्रैगन फ्रूट का अधिकांश हिस्सा थाईलैंड, मलेशिया, वियतनाम और श्रीलंका से आयात किया जाता है. वर्तमान समय में कई राज्यों में अब ड्रैगन फ्रूट की खेती बड़े पैमाने पर की जा रही है और किसान इससे लाखों रुपये तक की कमाई कर रहे हैं

कम लागत, ज्यादा मुनाफा

ड्रैगन फ्रूट की खेती की सबसे खास बात यह है कि इसे एक बार लगाने के बाद कई सालों तक फल मिलता है. एक एकड़ में लगभग 400-500 पौधे लगाए जा सकते हैं और एक बार फल लगने के बाद यह पौधा 20 साल तक फल देता है. बाजार में ड्रैगन फ्रूट की कीमत 150 से 300 रुपये प्रति किलो तक रहती है, जो मौसम और गुणवत्ता के हिसाब से बदलती है. किसानों के मुताबिक, शुरुआती निवेश भले थोड़ा ज्यादा हो, लेकिन तीसरे साल से ही यह फसल मुनाफा देने लगती है. 

सरकार देती है सब्सिडी भी 

भारत सरकार ने ड्रैगन फ्रूट की खेती को प्रोत्साहित करने के लिए हाल के वर्षों में कई पहलें की हैं. प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना और मिशन फॉर इंटीग्रेटेड डेवलपमेंट ऑफ हॉर्टिकल्चर के तहत किसानों को सब्सिडी दी जा रही है. इसके अलावा कुछ राज्यों ने इसे ‘कम पानी में अधिक उत्पादन देने वाली फसल’ के रूप में प्रमोट किया है. गुजरात सरकार ने तो इसका स्थानीय नाम ‘कमलम’ रखकर इसके प्रचार-प्रसार को और बढ़ावा दिया था.

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