Cotton: क्या कपास की जगह लेगा पॉलिएस्टर फाइबर? कॉटन की खेती-किसानी को लेकर उठे कई सवाल

Cotton: क्या कपास की जगह लेगा पॉलिएस्टर फाइबर? कॉटन की खेती-किसानी को लेकर उठे कई सवाल

Cotton Farming: इस साल कपास की खपत में कमी देखी गई है. हालांकि यह कमी बहुत नहीं है, मगर इसने किसानों के बीच चिंता बढ़ा दी है. उद्योग अब कपास की जगह इंसानों के बनाए फाइबर जैसे पॉलिएस्टर का इस्तेमाल बढ़ा रहे हैं जिससे कपास की मांग घटी है.

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क्या कपास की जगह लेगा पॉलिएस्टर फाइबर? कॉटन की खेती-किसानी को लेकर उठे कई सवालcotton farming: देश में कपास की खपत घटी

देश में कपास की खपत पहले की तुलना में घटी है और इसका कारण है उद्योगों में इंसानों के बनाए फाइबर को अधिक तरजीह दी जा रही है. बीते एक साल में कपास की खपत में दो फीसद की गिरावट दर्ज की गई है. यह किसानों के लिए चिंता की बात हो सकती है, खासकर जो किसान नकदी फसल के तौर पर कपास की खेती करते हैं. अगर फाइबर की मांग कपास की तुलना में यूं ही बढ़ती गई तो कपास किसानों को भविष्य में बड़ा झटका लग सकता है.

हाल के वर्षों में कपास की खेती बहुत चुनौतीपूर्ण बन गई है जिसमें किसानों को नुकसान झेलना पड़ रहा है. गुलाबी सुंडी के प्रकोप से फसल बड़े पैमाने पर बर्बाद होती है. इसके अलावा किसानों को सही रेट के लिए जूझना पड़ता है. इससे कपास की खेती का रकबा घट रहा है और किसान दूसरी वैकल्पिक फसलों की ओर रुख कर रहे हैं. दूसरी ओर, उद्योगों में अब इंसानों के बनाए फाइबर को महत्व दिया जा रहा है जिससे आने वाले दिनों में कपास की मांग और भी घट सकती है. मांग घटने से इसका उत्पादन भी घटेगा.

कपास पर CAI ने दी जानकारी

सीएआई ने 2024-25 सीजन के लिए 33 लाख गांठ आयात का अनुमान लगाया है, जो पिछले साल से 17.8 लाख गांठ अधिक है. इस सीजन के लिए निर्यात 15 लाख गांठ होने का अनुमान है, जो पिछले साल के 28.36 लाख गांठ से कम है. अप्रैल के अंत तक पहले सात महीनों में लगभग 10 लाख गांठें भेजी गईं. 2025-26 सीजन के लिए कैरी फॉरवर्ड स्टॉक 32.54 लाख गांठ होने का अनुमान है, जो पिछले साल के 30.19 लाख गांठ से थोड़ा अधिक है.

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कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया यानी CAI ने कपास के खपत अनुमान को 8 लाख गांठ घटाकर 307 लाख गांठ कर दिया है, जबकि पहले अनुमान 315 लाख गांठ का था. साल 2023-24 के दौरान कपास की खपत 313 लाख गांठ थी.

कपास मिलों का काम धीमा

सीएआई के अध्यक्ष अतुल एस गनात्रा ने कपास की खपत में कमी के लिए मुख्य रूप से दक्षिण भारत में कताई मिलों द्वारा विस्कोस और पॉलिएस्टर जैसे इंसानों के बनाए फाइबर के बढ़ते उपयोग को जिम्मेदार ठहराया. गनात्रा ने 'बिजनेसलाइन' को बताया कि इसके अलावा, मजदूरों की कमी के कारण कताई मिलें धीमी गति से चल रही हैं, जिससे कपास की खपत में गिरावट आई है.

गनात्रा ने कहा कि मिलों को विस्कोस में करीब 98 प्रतिशत बेहतर रिजल्ट मिल रहा है, जबकि कपास में 73/75 प्रतिशत है. यह भी एक कारण है कि मिलें कपास से दूसरे रेशों की ओर रुख कर रही हैं, जिससे खपत प्रभावित हो रही है.

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सीएआई ने 2024-25 फसल का आकार 291.35 लाख गांठ होने का अनुमान लगाया है. अप्रैल के अंत तक कपास की कुल आपूर्ति 325.89 लाख गांठ होने का अनुमान है, जिसमें 268.2 लाख गांठ की प्रेसिंग, 27.5 लाख गांठ का आयात और 30.19 लाख गांठ का शुरुआती स्टॉक शामिल है. अप्रैल के अंत तक खपत 185 लाख गांठ और निर्यात 170 किलोग्राम के 10 लाख गांठ होने का अनुमान है.

 

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