जीरा राजस्थान और गुजरात में रबी मौसम में उगाई जाने वाली एक आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण बीज मसाला फसल है. इससे अन्य फसलों की अपेक्षा अधिक आय होती है. देश के कुल जीरा उत्पादन का लगभग 52 प्रतिशत राजस्थान में होता है. बाड़मेर, जालौर, जोधपुर, पाली, नागौर, सिरोही, अजमेर और टोंक राज्य के प्रमुख जीरा उत्पादक जिले हैं. जीरा कम समय में पकने वाली, कम पानी की आवश्यकता वाली और अधिक आय देने वाली फसल है. लेकिन जीरे की फसल कीटों और बीमारियों के प्रति बहुत संवेदनशील होती है. अगर इस फसल की देखभाल में थोड़ी सी भी लापरवाही बरती जाए तो पूरी फसल रातों-रात बर्बाद हो जाती है.
इसीलिए जीरे को लेकर राजस्थान में एक लोकप्रिय लोकगीत है, ''जीरो जीवा को बेरी रे, मत बाओ म्हारा परण्या जीरो''. ऐसे में जीरे की बीज के लिए छाछिया कीट काफी हानिकारक है. यह बीज को पूरी तरह से नष्ट कर देता है. जिससे किसानों को काफी नुकसान होता है. ऐसे में आइए जानते हैं इस कीट से बचाव का तरीका.
यह रोग अधिकतर फूल आने और बीज बनने के समय गंभीर अवस्था में लगता है. मौसम अनुरूप इसकी गंभीरता जनवरी और फरवरी माह में देखी जा सकती है. यह रोग छोटे-छोटे सफेद धब्बों के रूप में शुरू होता है जो धीरे-धीरे आपस में मिलकर पूरी पत्तियों को ढक लेते हैं. जिससे ऊपर की नई पत्तियां भी रोगग्रस्त हो जाती हैं. यदि यह अधिक फैल जाए तो सारी पत्तियाँ सफेद हो जाती हैं. धीरे-धीरे यह रोग तने, फूलों और बीजों में भी फैल जाता है. मौसम शुष्क होते ही इस रोग का प्रसार रुक जाता है. प्रति हेक्टेयर 25 किलोग्राम सल्फर पाउडर छिड़कने से इस रोग की प्रारंभिक अवस्था में रोकथाम की जा सकती है. यदि मौसम रोग के लिए अनुकूल है तो 15 दिन बाद लगभग 12-13 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से सल्फर का दूसरा प्रयोग करना चाहिए. इसके अलावा कैराथेन एल.सी. एक एम.एल. (1 मिली) प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करके इसे रोका जा सकता है.
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जीरा एक बेहतरीन एंटी-ऑक्सीडेंट है और सूजन को कम करने और मांसपेशियों को राहत पहुंचाने में भी कारगर है. इसमें फाइबर भी पाया जाता है और यह आयरन, कॉपर, कैल्शियम, पोटेशियम, मैंगनीज, जिंक और मैग्नीशियम जैसे खनिजों का भी अच्छा स्रोत है. इसमें विटामिन ई, ए, सी और बी-कॉम्प्लेक्स जैसे विटामिन भी काफी मात्रा में पाए जाते हैं. इसलिए आयुर्वेद में इसका उपयोग स्वास्थ्य की दृष्टि से अच्छा माना जाता है.
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