भारत और यूरोपीय संघ (EU) के बीच मुक्त व्यापार समझौते (FTA) पर चल रही बातचीत में बासमती चावल का भौगोलिक संकेतक (GI) टैग सबसे बड़ी अड़चन बन सकता है. जानकारों का कहना है कि भारत किसी भी हालत में EU के उस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करेगा, जिसमें बासमती GI के मुद्दे को FTA से अलग रखने की बात कही जा रही है. विशेषज्ञ और बासमती GI पर शोध करने वाले इतिहासकार एस चंद्रशेखरन के अनुसार, पाकिस्तान की ओर से बासमती GI के लिए हाल ही में दायर किए गए आवेदन ने विवाद को और पेचीदा बना दिया है. EU इसे टकराव का कारण न बनने देने के लिए तकनीकी या कूटनीतिक रास्ता निकालने की कोशिश कर सकता है, लेकिन भारत इस पर राजी होने वाला नहीं है. उनका कहना है कि बासमती भारत की संप्रभुता और विरासत से जुड़ा मुद्दा है. इसे FTA से अलग करना भारत-EU की रणनीतिक साझेदारी की भावना के विपरीत होगा.
बिजनेसलाइन की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत का आवेदन जुलाई 2018 से EU में लंबित है, हालांकि इसे आधिकारिक तौर पर 2020 में ही अधिसूचित किया गया था. दूसरी ओर पाकिस्तान ने जनवरी 2024 में आवेदन किया, जिसे EU ने अप्रैल 2024 में प्रकाशित किया. इटली ने पाकिस्तान के आवेदन का कड़ा विरोध किया है और EU ने इस आपत्ति को स्वीकार भी किया है, जिससे पाकिस्तान को GI टैग मिलने की संभावना बेहद कम हो गई है. इसके बावजूद EU लगातार भारत और पाकिस्तान से संयुक्त आवेदन करने का आग्रह कर रहा है, जिसे भारत ने ठुकरा दिया है. क्योंकि पाकिस्तान ने अपने आवेदन में भारत के हिस्से वाले इलाकों को भी शामिल किया है.
विशेषज्ञों का कहना है कि GI टैग को लेकर भारत और EU की सोच अलग है. EU इसे केवल आर्थिक लाभ और प्रीमियम मूल्य से जोड़कर देखता है, जबकि भारत के लिए यह संस्कृति और परंपरा का हिस्सा है, जिस पर कोई समझौता संभव नहीं है. यही वजह है कि भारत बासमती GI को FTA से बाहर रखने के EU के किसी भी प्रयास को स्वीकार नहीं करेगा.
EU ने हाल ही में संसद और परिषद को भेजे अपने साझा संचार में भारत के साथ नए रणनीतिक एजेंडे का जिक्र करते हुए कहा था कि GI समझौते से दोनों पक्षों को व्यापार के नए अवसर और आर्थिक विकास के मौके मिलेंगे. विश्लेषकों के अनुसार, EU ने GI को सीधे Indo-EU FTA से जोड़ दिया है और यह दिखाता है कि ब्रुसेल्स इस मुद्दे को भारत के साथ रणनीतिक रिश्तों का अहम हिस्सा मानता है.
संख्याओं की बात करें तो 2024-25 में भारत ने EU को 237 मिलियन डॉलर का बासमती चावल निर्यात किया, जबकि EU का बासमती बाजार 766 मिलियन डॉलर का है. अगर बासमती को FTA से बाहर कर दिया गया और EU के वाइन-डिस्टिल्ड स्पिरिट्स को समझौते में जगह मिलती रही तो भारत को GI उत्पादों के कारोबार में करीब 481 मिलियन डॉलर का नुकसान होगा.
EU भारत को हर साल 600 मिलियन डॉलर तक का अतिरिक्त बाजार अपनी वाइन और शराब के लिए उपलब्ध करा सकता है. यानी EU के पास फायदा ज्यादा और भारत के पास खोने के लिए बड़ा दांव है. यही वजह है कि भारत इस पर सख्त रुख अपना रहा है. इस बीच सुरक्षा और आतंकवाद से जुड़ा पहलू भी EU-India रिश्तों में जुड़ गया है.
EU ने हाल ही में कहा कि दोनों साझेदार गंभीर आतंकी खतरों का सामना कर रहे हैं. कश्मीर के पहलगाम में अप्रैल 2025 में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकी हमले में 27 पर्यटकों की मौत के बाद EU ने भारत के साथ आतंकवाद-रोधी सहयोग और मजबूत करने की बात कही. विश्लेषकों का मानना है कि ऐसे हालात में अगर EU भारत के दावे को नजरअंदाज करता है तो यह आपसी भरोसे को नुकसान पहुंचाएगा.
दूसरी ओर, भारत की अपील पर EU ने पाकिस्तान के आवेदन से जुड़ी कुछ अहम दस्तावेजों तक सीमित या आंशिक पहुंच दी है, लेकिन पाकिस्तान की ओर से मांगे गए दस्तावेजों पर रोक लगा दी है. पाकिस्तान ने इस फैसले को अदालत में चुनौती दी है, लेकिन अभी तक उस पर कोई ठोस सुनवाई नहीं हुई है. जानकारों का कहना है कि इस कानूनी पेंच का असर भी Indo-EU FTA की बातचीत पर पड़ सकता है.
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