राम काल के पेड़ पौधे: अयोध्या में राम मंदिर का उद्घाटन 22 जनवरी 2024 को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम के साथ भव्य बनाने की तैयारी शुरू हो गई है. लोगों में रामायण काल से जुड़ी जानकारियों को लेकर काफी उत्साह देखा जा रहा है. अयोध्या में वाल्मीकि रामायण में राम के युग काल के पेड़-पौधों की भी चर्चा है. अयोध्या में रामायण काल के पेड़-पौधे भी खोजकर लगाए जा रहे हैं. राम के शबरी के झूठे बेर खाने के प्रसंग को लगभग सभी जानते हैं, लेकिन राम 14 साल के वनवास के दौरान जहां जिन वनों से गुजरते और जहां आश्रम बना कर रुके थे. इन वनों में पाए जाने वाले पेड़ पौधो की चर्चा वाल्मीकि रामयाण में की गई है. आज के समय भी ऐसे बहुत से पेड़ पौधे मौजूद हैं. इससे न केवल हम रामायणी युग के प्राकृतिक सौंदर्य को समझ सकते हैं, बल्कि आज के समय में भी इन पेड़-पौधों के संरक्षण और उनके वातावरणीय लाभों को जान सकते हैं. इस प्राकृतिक विरासत को सुरक्षित रख सकते हैं.
रामायण काल के वनों के पेड़ों पर सी.पी.आर. पर्यावरण शिक्षा केंद्र, चेन्नई के एक रिसर्च में वाल्मीकि रामायण में राम काल में विभिन्न प्राकृतिक क्षेत्रों का विस्तार से वर्णन है. इसमें कहा गया है कि राम अपने वनवास के दौरान चित्रकूट, दंडक-अरण्य, पंचवटी, किष्किंधा वन से गुजरे और रुके थे. इसके बाद उन्होंने लंका पर चढ़ाई की था. इन वनों को शांत, मधुर, रौद्र,और वीभत्स भावनाओं के रूप में वर्णित किया गया है. चित्रकूट, दंडक-अरण्य, पंचवटी, किष्किंधा, वन के पेड़-पौधों का वाल्मीकि रामायण में विवरण मिलता है.
चित्रकूट में राम का पहला पड़ाव है, जहां वह आश्रम बसाते हैं और यहा पर मंदाकिनी नदी बहती है. यहां रामायण में महानवन यानी महावृक्ष की चर्चा है. यहां वनस्पतियों में अशोक वृक्ष प्रमुख है. इसके बाद दंडक-अरण्य में राम ने एक आश्रम बनाया और यह क्षेत्र मध्य प्रदेश, ओडिशा और आंध्र प्रदेश में स्थित है. इस वन का नाम दानव दंडक से मिला है. पंचवटी जो भारत के महाराष्ट्र के नासिक में गोदावरी नदी के किनारे है. यहां लक्ष्मण सीता सहित रामजी ने कुछ समय वनवास किया था. यह गोदावरी नदी के तट पर स्थित है और यहां से सीता का अपहरण होता है. इस वन में भी विभिन्न प्रकार के पेड़ और पौधे पाए जाते थे.
रामायण में राम ने अपने वनवास के पहले चरण के दौरान चित्रकूट को चुना. यह एक प्राकृतिक और सुंदर स्थान है. यहां पर चित्रकूट पर्वत और मंदाकिनी नदी का मिलन है. यहां के जंगलों में बगीचे, फूलों के पेड़ और अलग-अलग प्रकार की वनस्पतियां हैं. रामायण में इस वन के विवरण में खाने के रूप में उपयोग होने वाले पौधे और अखाद्य पौधों की उपस्थिति का वर्णन किया गया है. वनस्पतियों में आम, बेल, कटहल, बेर, हरड़, और भाव्या (डिलेनिया) जैसे खट्टे फलों के पेड़ शामिल हैं. इसके अलावा, कई तरह के पौधों में फूलों के साथ लोध्र (लोध वृक्ष), निपा (निपा पाम), तिलका (राइस या रेडवुड वृक्ष), अरिस्टा (नीम), आसन (भारतीय कीनो), बीजाका (भारतीय कीनो का पेड़), धन्वन (बेरी फल), मधुका (भारतीय मक्खन का पेड़), तिनिसा (संदान), वराना (बांस), वेणु (बांस), और वेत्रा (विशालकाय कांटेदार बांस) शामिल हैं. इस वन के प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन वाल्मीकि के कवित्व में एक रमणीय और शांतिपूर्ण परिदृश्य का समृद्धि का सुंदर चित्रण किया गया है.
राम का अगला पड़ाव दंडक-अरण्य में था जहां उन्होंने एक आश्रम बनाया था. वर्तमान में ये अभी भी मध्य प्रदेश, ओडिशा और आंध्र प्रदेश के कुछ हिस्सों में स्थित है. इस नाम की उत्पत्ति दानव दंडक से हुई है. यहा पर डंडा-ट्रिना, एक प्रकार की लंबी घास, इस क्षेत्र में उगती थी. डंडा का अर्थ पेड़ों की लाईन भी होता है. अरण्य कांड में आश्रमों को "अरण्यैश्च महावृक्षैहपुण्यैः स्वेदुफलैरवृतम्" के रूप में वर्णित किया गया है. इसमे ऊंचे वन, मीठे फल देने वाले वृक्ष पाए जाते थे. इन वृक्ष की प्रजातियों में दरभा, पवित्र घास मधुका (भारतीय मक्खन का पेड़), शाल (साल का पेड़), धव (एक्सल लकड़ी), अश्वकर्ण (गुरजनबालसम), ककुभा (सफेद मरुदा), बिल्व (बंगाल क्वीन), टिंडुका (भारतीय ख़ुरमा), पाटला (तुरही का पेड़) और बदरी (भारतीय बेर) की चर्चा है.
अरण्य वन के बाद राम का अगला पड़ाव पंचवटी है, जहां से सीता का हरण हुआ था. यह महाराष्ट्र के नासिक में गोदावरी नदी के तट पर स्थित है. राम काल में एक जंगली मैदान था. इस जगह पर फल देने वाले, फूलदार, सुगंधित और मजबूत लकड़ी के पेड़ थे. आम तौर पर यहां पर शाला (साल वृक्ष), पलमायरा पाम, तमाला (वेस्ट इंडियन बे ट्री), खजूर, कटहल, पुन्नगा (अलेक्जेंडरियन लॉरेल), मीठा आम, अशोक, तिलक (तिल), केतका (स्क्रू पाइन), चंपक (चंपक), चंदन, निइपा (बर्फ़्लावर-पेड़), लकुचा (मंकी जैक), धव (एक्सल वुड), अश्वकर्ण (गुर्जन बालसम), खदिरा (बबूल), शमी (इंडियन मेसकाइट),और पाताल (तुरही का पेड़) की प्रजातियां थीं. इस क्षेत्र में पवित्र तुलसी और जलीय कमल भी प्रचुर मात्रा में थे. इस क्षेत्र में जौ, गेहूं और साली चावल (शीतकालीन चावल) जैसे अनाजों की उपस्थिति का भी उल्लेख किया गया है.
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हिंदू धर्म में कई कई पेड़-पौधों को शुभ माना जाता है. इनकी न सिर्फ पूजा की जाती है बल्कि इन पेड़ों का इस्तेमाल घर से नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने के लिए भी किया जाता है. पुराणों में कई वृक्षों को दिव्य वृक्ष कहा गया है. आधुनिक युग में भी लोग पेड़ों की पूजा करते हैं. आज जब लोगों की जरूरतों के कारण वनों का स्तर दिन-ब-दिन कम होता जा रहा है, तो चिंता यह है कि अगर वन नहीं होंगे तो जल नहीं होगा. अगर जल नहीं होगा तो जीवन नहीं होगा. मनुष्य अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए जंगलों को काटता जा रहा है, लेकिन पेड़ लगाना बहुत धीमा है. वैसे तो पेड़ लगाने से बड़ा कोई पुण्य नहीं है, लेकिन राम काल लाना है तो पेड़ पौधे लगाना जरूरी है.
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