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Bean Cultivation: बिना मचान की जमीन पर ही होती है इस सेम की खेती, किसानों की फसल लागत हुई आधी

Bean Cultivation: बिना मचान की जमीन पर ही होती है इस सेम की खेती, किसानों की फसल लागत हुई आधी

भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान के द्वारा अब तक 100 से अधिक सब्जियों की विशेष किस्म को विकसित किया जा चुका है. संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिकों के द्वारा कम लागत में अधिक उत्पादन देने वाली सब्जियों की किस्म भी तैयार किया गया है. इसके साथ ही कई ऐसी किस्म को भी तैयार किया गया है जो परंपरागत किस्मों से बिल्कुल अलग है. इसी कड़ी में संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ नगेंद्र राय ने सेम की खास प्रजाति को विकसित किया है जिसको काशी बौनी नाम दिया गया है.

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सेम की नई किस्म बौनी सेम 14 सेम की नई किस्म बौनी सेम 14

भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान के द्वारा अब तक 100 से अधिक सब्जियों की विशेष किस्म को विकसित किया जा चुका है. संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिकों के द्वारा कम लागत में अधिक उत्पादन देने वाली सब्जियों की किस्म भी तैयार किया गया है. इसके साथ ही कई ऐसी किस्म को भी तैयार किया गया है जो पुरानी परंपरागत तरीकों से बिल्कुल अलग है. इसी कड़ी में संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ नगेंद्र राय ने सेम की खास प्रजाति को विकसित किया है जिसको काशी बौनी नाम दिया गया है. इस प्रजाति की चार अलग-अलग किस्म को विकसित किया गया है. इस सेम को सामान्य फसल की तरह खेत में उगाया जा सकता है. इसके लिए मचान की जरूरत नहीं होती है. इसलिए किसानों की फसल लागत आधी हो जाती है जिससे उनका फायदा भी बढ़ रहा है.

खास है काशी बौनी सेम की यह किस्म

भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान के द्वारा सेम की चार ऐसी प्रजातियों को विकसित किया गया है जो जमीन पर भी खूब फल-फूल रही है. सेम की इन प्रजातियों को मचान की जरूरत नहीं होती है. सेम की इस किस्म को भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक डॉ नागेंद्र राय ने विकसित किया है. उन्होंने किसान तक को बताया कि यह सिम 70 से 80 दिन में तैयार हो जाती है जबकि अन्य सेम को तैयार होने में 100 से 120 दिन लगते हैं. वही मचान विधि से सेम उगाने पर फसल की लागत बढ़ जाती है. वही उनकी इस बौनी सेम में मचान की जरूरत नहीं है जिससे फसल की लागत 45 फ़ीसदी तक कम हो जाती है. सेम की 4 प्रजातियों में काशी बौनी सेम 3, काशी बौनी सेम 9 ,काशी बौनी सेम 14, काशी बौनी सेम 18 (रंगीन) को विकसित किया गया है.

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कम लागत में ज्यादा उपज

भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ नागेंद्र राय ने बताया कि इस सेम की प्रजाति में मचान किस जरूरत नहीं है. इसलिए इसकी खेती करने वाले किसानों की फसल लागत में 45 फ़ीसदी तक कमी आती है जिससे उनका मुनाफा बढ़ रहा है. वहीं यह सेम 70 से 80 दिन में तैयार हो जाती है जबकि मचान विधि से तैयार होने वाली सिम 120 दिन में तैयार होती हैं. इस हिसाब से 30 से 40 दिन का समय भी इसमें कम लगता है. यही नहीं इसके लिए बाढ़ का खतरा नहीं है. वही काशी बौनी 14 का प्रति हेक्टेयर उत्पादन 25 टन तक है.

वही इसकी बुवाई का समय सितंबर-अक्टूबर है जबकि दिसंबर महीने से इसका उत्पादन शुरू हो जाता है जो अप्रैल तक जारी रहता है. मार्च-अप्रैल में जब बाजार में मटर नहीं रहती है तो सेम की कीमत बढ़ जाती है. इसलिए किसानों की आय में भी काफी ज्यादा इजाफा होने लगता है. वही इस सेम की प्रजाति में बीमारी और कीड़ों की रोकथाम के लिए दवाइयों के छिड़काव करने की भी जरूरत नहीं होती है. वही काशी बौनी सेम 48 का रंग बैंगनी होता है जिसमें एंथोसाइन इन पाया जाता है जो एक एंटीऑक्सीडेंट है. वही इस सेम की प्रजाति में प्रोटीन की भरपूर मात्रा है.

भारतीय सब्जी अनुसंधान में उपलब्ध है बीज

काशी बौनी सेम की चारों प्रजातियों के बीच भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान में उपलब्ध हैं जिसको कोई भी किसान घर बैठे ऑनलाइन भी मंगा सकता है. वही संस्थान से भी किसानों को उपलब्ध होता है.