क्या है लहसुन का फांक सड़न रोग जो उपज घटा देता है, लक्षण और रोकथाम का उपाय जानिए

क्या है लहसुन का फांक सड़न रोग जो उपज घटा देता है, लक्षण और रोकथाम का उपाय जानिए

इस रोग की वजह से लहसुन की कलियां मिट्टी की सतह के साथ मुलायम होकर सड़ जाती हैं. इस रोग से प्रभावित पौधे छोटे रह जाते हैं. रोगग्रस्त पौधों की पत्तियां भूरी होकर सूख जाती हैं और पौधे रोगग्रस्त होकर सूख जाते हैं.

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क्या है लहसुन का फांक सड़न रोग जो उपज घटा देता है, लक्षण और रोकथाम का उपाय जानिएलहसुन में फांक सड़न रोग

लहसुन एक ऐसा मसाला है जो किसी भी व्यंजन का स्वाद आसानी से बढ़ा सकता है. साथ ही स्वास्थ्य की दृष्टि से भी लहसुन का महत्व किसी से छिपा नहीं है. आयुर्वेद में लहसुन को कई बीमारियों का औषधि बताया गया है. लहसुन के फायदों और स्वाद को देखते हुए इसकी मांग हर मौसम में बनी रहती है. लोग सब्जी से लेकर दाल, तड़का आदि हर चीज में खाना पसंद करते हैं. इतना ही नहीं इसका इस्तेमाल बीमारियों में भी किया जाता है. बढ़ती मांगों को देखते हुए किसान भी लहसुन की खेती जमकर कर रहे हैं. वहीं लहसुन की खेती के दौरान कीटों का खतरा भी बना रहता है. ऐसे में लहसुन का फांक सड़न रोग ना केवल उपज घटा देता है बल्कि इससे किसानों को काफी नुकसान भी होता है. क्या है ये रोग और इसके लक्षण आइए जानते हैं.

साल 2008 में यह बीमारी सिरमौर जिले के पझौता क्षेत्र के परिया, नेरती, भोगट, सरबा, कुफर, करमोती, पैन, धामला और जड़ोल टपरोली में पाई गई थी. इस इलाके में करीब 24 हेक्टेयर जमीन पर लहसुन की खेती हुई थी और इस बीमारी से किसानों को 15 फीसदी का नुकसान हुआ था. 

क्या हैं इस रोग के लक्षण

लहसुन की कलियां मिट्टी की सतह के साथ मुलायम होकर सड़ जाती हैं. इस रोग से प्रभावित पौधे छोटे रह जाते हैं. रोगग्रस्त पौधों की पत्तियां भूरी होकर सूख जाती हैं और पौधे रोगग्रस्त होकर सूख जाते हैं.

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यह रोग किस कारण होता है

यह रोग पाला पड़ने के बाद अधिक फैलता है. इससे रोगग्रस्त लहसुन की छाल पर इरविनिया जीवाणु का संक्रमण फैल जाता है. रोगग्रस्त लहसुन की कलियां काले रंग की हो जाती हैं. यह काला रंग ड्रेक्सलेरा कवक द्वारा पैदा होता है. माइलॉयडोगिनी नेमाटोड भी इस रोग के प्रति संवेदनशीलता को बढ़ाता है. यह रोग अधिक आर्द्रता और गर्मी  की वजह से फैलता है.

ऐसे करें रोकथाम

  • खेतों में लहसुन बोने से 15-20 दिन पहले नम मिट्टी में फ्यूराडॉन 3 ग्राम या फोरेट 10 ग्राम (2 किलोग्राम प्रति बीघा) का प्रयोग करें.
  • लहसुन की बुआई ऊंची क्यारियों में करें.
  • जल निकासी का विशेष ध्यान रखें.
  • फरवरी माह में शाम के समय खेतों की मेड़ पर धुआं करें.
  • ध्यान रखें कि निराई-गुड़ाई करते समय पौधों में कोई घाव नहीं होना चाहिए.
  • खेतों में अच्छी तरह सड़ी हुई गाय का गोबर ही प्रयोग करें.
  • रोग से प्रभावित फसल के पौधों एवं जड़ों पर ब्लाईटॉक्स-50 (300 ग्राम प्रति 100 लीटर पानी) के घोल का छिड़काव करें. इस घोल का प्रयोग 10-15 दिन के अंतराल पर दोबारा करें.
  • फसल को उखाड़ने के बाद रोगग्रस्त पौधों को इकट्ठा कर गड्ढे में दबा दें.
  • चार से पांच वर्ष का फसल चक्र अपनाएं.
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