खेती किसानी में अच्छे बीजों की बुवाई करना बेहद जरूरी माना जाता है. अच्छे बीजों के उपयोग से फसल उत्पादन तो अच्छा होता ही है, इससे किसानों को फायदा भी होता है. ऐसे ही एक सजग किसान हैं श्रीप्रकाश सिंह रघुवंशी, जो "अपनी खेती, अपना बीज, अपना खाद, अपना स्वाद!" के नारे को बुलंद करने वाले एक प्रगतिशील किसान के रूप में जाने जाते हैं. वाराणसी के तड़िया गांव में रहने वाले उन्नतशील बुजुर्ग किसान श्रीप्रकाश सिंह रघुवंशी ने अपने प्रयोगों और वर्षों की मेहनत से कई उन्नत किस्म के देसी बीज तैयार किये हैं, वो आज के बदलते मौसम के हिसाब से किसानों के लिए काफी उपयोगी हैं, ये बीज किसान रघुवंशी किसानों को मुफ्त में बांटते हैं और उन्हें खुद के बीज तैयार करने का प्रशिक्षण भी देते हैं.
उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के तड़िया गांव के निवासी, 65 वर्षीय रघुवंशी ने केवल 8वीं कक्षा तक पढ़ाई की है. लेकिन उनका कृषि के प्रति समर्पण और खेती में स्वेदेशी बीजों और जैविक खेती में नवाचार से 30 सालों में 100 किस्मों की खोज करके उन्हें देशभर में प्रसिद्ध किया है. इस किसान ने अब तक 5 लाख से अधिक गरीब किसानों को देशी बीजों का वितरण कर चुके है.
गेहूं, धान, सरसों, अरहर आदि की अधिक पैदावार वाली देशी किस्में विकसित करने पर श्रीप्रकाश सिंह रघुवंशी को कई बार राष्ट्रपति से पुरस्कार मिल चुके हैं. इंडिया टुडे के किसान तक से बातचीत में बताया कि पिछले 30 वर्षों से जैविक खेती और स्वदेशी बीजों की उन्नत किस्मों के विकास में लगे हुए हैं. गेहूं, धान, सरसों और अरहर जैसी प्रमुख फसलों की कई उन्नत किस्में तैयार की हैं, जिनसे जैविक खेती के माध्यम से रासायनिक खेती की तुलना में बेहतर पैदावार प्राप्त की जाती है.
श्रीप्रकाश सिंह का कहना है कि उन्होंने प्राकृतिक रूप से बीज विकसित करने का हुनर अपने पिताजी से सीखा, जो प्राइमरी स्कूल के अध्यापक थे, लेकिन उन्नत किस्म की खेती करते थे. अपने पिताजी के प्रेरणा से ही उन्होंने कृषि में नवाचार की दिशा में कदम बढ़ाया. बाद में उन्हें नई किस्में विकसित करने की प्रेरणा बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के पूर्व प्रोफेसर डॉ. महातिम सिंह से मिली, जिन्होंने उन्हें ऐसी किस्में विकसित करने के लिए प्रेरित किया जो किसानों की आय में सुधार कर सकें.
उन्होंने बताया कि बचपन में एक बीमारी के दौरान मेरे आंखों की रोशनी चली गई थी, लेकिन दिल में तमन्ना थी, कुछ अलग करने की, इसलिए कृषि की तरफ रुख किया. बढ़ती लागत और कम मुनाफे परेशान किसानों को सलाह देते हुए श्रीप्रकाश सिंह रघुवंशी कहते हैं, “किसान समूह बनाकर बीजों की मार्केटिंग करें. किसान बीज बनाए और अपना रेट खुद लगाए. कई किसान ऐसा कर भी रहे हैं. एक बार किसान रोजगार पा जाएगा तो नौकरी की तरफ मुड़ के भी नहीं देखेगा.”
रघुवंशी द्वारा विकसित गेहूं की 'कुदरत' किस्म, जो 1995 में उनके खेत में उगाई गई थी, उनकी सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक है. इसके बाद उन्होंने गेहूं की कुदरत-7, कुदरत-9 जैसी अन्य किस्में विकसित कीं. अब तक, उन्होंने गेहूं की लगभग 80, धान की 25 और दालों की 10 और सरसों की 3 से अधिक किस्में विकसित की हैं. इसके अलावा, उन्होंने सरसों, मटर और अन्य फसलों के 200 से अधिक स्वदेशी बीज संरक्षित किए हैं. उनकी उन्नत किस्में प्रमुख कीटों और बीमारियों के प्रति प्रतिरोधी हैं और उनके बीज स्वादिष्ट और सुगंधित होते हैं.
गेहूं की उन्नत किस्मों की प्रति एकड़ उपज 15-27 क्विंटल के बीच होती है. धान की उन्नत किस्मों की उपज 15-30 क्विंटल प्रति एकड़ और अरहर की उन्नत किस्मों की उपज 10-15 क्विंटल प्रति एकड़ होती है. कुदरत-9 गेहूं और अरहर की कुदरत -3 सरकार ने पंजीकृत किया है. रघुवंशी अपने खेतों पर धान, गेहूं और अरहर सहित कई फसलों में जैविक तरीके से खेती करके अपने स्वदेशी बीजों से बंपर पैदावार ले रहे हैं. उन्होंने अपने घर पर एक बीज बैंक स्थापित किया है, जिसमें कई प्रकार के बीज संग्रहित हैं.
देशभर से लोग खेती-किसानी की बारीकियों को सीखने के लिए श्रीप्रकाश सिंह रघुवंशी के घर पहुंचते हैं. यहां आने वाले हर किसान को मुफ्त में उन्नत बीज उपलब्ध करवाते हैं. वो किसानों को बीज बनाकर उन्हें बेचने की सलाह देते हैं. उन्होंने महाराष्ट्र, बिहार, एमपी, हरियाणा, यूपी समेत करीब 15 राज्य के किसानों को इस अभियान से जोड़ा है.
अपने संघर्षों के बावजूद, रघुवंशी ने कभी हार नहीं मानी और हमेशा किसानों को स्वदेशी बीजों का उपयोग करने और अपने बीजों को स्वयं विकसित करने के लिए प्रेरित किया. उनके बीजदान अभियान ने उन्हें देशभर में पहचान दिलाई है और उन्हें राष्ट्रपति द्वारा लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड सहित कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है.
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