दलहनी फसलों के स्थान पर सोयाबीन का रकबा बढ़ने से दलहनी फसलों का रकबा घट रहा है. वहीं अरहर की फसल का रकबा उपजाऊ मैदानी भूमि से हटकर थोड़ी ढलान वाली, कम उपजाऊ भूमि की ओर स्थानांतरित हो रहा है, जिससे उत्पादन में भारी कमी आ रही है. लेकिन अरहर की फसल के विस्तृत क्षेत्रों के लिए उपयुक्त अधिक उत्पादन क्षमता वाली उकटारोधी किस्मों के उपयोग से उत्पादकता में उतार-चढ़ाव कम हुआ है और उत्पादकता में स्थिरता आई है. सिंचाई, उर्वरकों और कृषि रसायनों के उपयोग के प्रति किसानों की बढ़ती जागरूकता दलहनी फसलों की उत्पादकता बढ़ाने में सहायक सिद्ध हो रही है.
समय पर बुवाई, पौधों की पर्याप्त संख्या, राइजोबियम कल्चर और कवकनाशी दवाओं से बीजोपचार और खरपतवार प्रबंधन के साथ ही बिना लागत या न्यूनतम निवेश वाले ऐसे इनपुट भी उत्पादकता बढ़ाते हैं. अरहर की आसमान छूती कीमत के कारण किसानों का रुझान फिर से अरहर की खेती की ओर बढ़ रहा है. ऐसे में इसकी खेती से अधिक उपज लेने और खर्च को कम करने के लिए लिक्विड बायोफर्टिलाइजर का इस्तेमाल किया जा रहा है. जिसकी मदद से किसानों को काफी फायदा भी हो रहा है.
अरहर के लिए राइजोबियम जैवउर्वरक जिसे राइज़ो-1 के नाम से भी जाना जाता है उसका इस्तेमाक कर सकते हैं. आपको बता दें इसे अरहर की फसल के लिए ICAR के द्वारा तैयार किया गया है. राइज़ो-1, एक तरल जैवउर्वरक है, जो 30% तक नाइट्रोजन उर्वरक बचाता है. बीज टीकाकरण (10 मिली/किग्रा बीज) अनाज की उपज को 10-15% तक बढ़ाता है. साथ ही उत्पाद में 108-1011 कोशिकाएं/एमएल होती हैं, जिसकी शेल्फ लाइफ कमरे के तापमान पर एक वर्ष होती है.
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अरहर की फसल के लिए मध्यम से भारी काली मिट्टी, उचित जल निकास वाली और पीएच मान 7.0-8.5 सबसे अच्छी होती है. खेत की दो-तीन बार देशी हल या ट्रैक्टर से गहरी जुताई करें और हल चलाकर खेत को समतल कर लें. जल निकास की उचित व्यवस्था करें.
बहु-फसल प्रणाली में या यदि थोड़ी ढलान वाली असिंचित भूमि हो तो शीघ्र पकने वाली किस्मों की बुवाई करनी चाहिए. उपास-120 (1976), आई.सी.पी.एल.-87 (प्रगति,1986), ट्राम्बे जवाहर तुवर-501 (2008), जे.के.एम.-7 (1996), जे.के.एम.189 (2006), आई.सी.पी.-8863(मारुती,1986), जवाहर अरहर-4(1990)
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अरहर की बुवाई वर्षा प्रारम्भ होते ही कर देनी चाहिए. सामान्यतः बुवाई जून के अन्तिम सप्ताह से जुलाई के प्रथम सप्ताह तक करनी चाहिए. शीघ्र पकने वाली किस्मों के लिए पंक्तियों के बीच की दूरी 60 सेमी तथा मध्यम एवं देर से पकने वाली किस्मों के लिए 70 से 90 सेमी होनी चाहिए. कम अवधि वाली किस्मों के लिए पौधों के बीच की दूरी 15-20 सेमी तथा मध्यम एवं देर से पकने वाली किस्मों के लिए 25-30 सेमी होनी चाहिए.
शीघ्र पकने वाली किस्मों के लिए 20-25 किग्रा तथा मध्यम पकने वाली किस्मों के लिए 15 से 20 किग्रा प्रति हेक्टेयर बुवाई करनी चाहिए. चैफली विधि से बुवाई करने पर प्रति हेक्टेयर 3-4 किग्रा बीज की आवश्यकता होती है. बुवाई से पूर्व बीजों को फफूंदनाशक दवा 2 ग्राम थाइरम 1 ग्राम कार्बेन्डाजिम या विटावैक्स 2 ग्राम 5 ग्राम ट्राइकोडर्मा प्रति किलोग्राम बीज से उपचारित करें. उपचारित बीजों को राइजोबियम कल्चर 10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें तथा फिर रोपण करें.
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