भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान यानी 'पूसा' ने जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर, राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय, ग्वालियर और इक्रीसेट के साथ मिलकर सूखा सहनशील और अधिक उपज देने वाली चने की नई किस्म ‘पूसा जेजी 16’ विकसित किया है. जिसे क्रांतिकारी किस्म के तौर पर देखा जा रहा है. इस किस्म की खास बात ये है कि इसे सूखे को मात देने वाली फसल के तौर पर देखा जा रहा है. जो जलवायु संकट के इस दौर में किसानों की आय बढ़ाने वाली प्रमुख फसल बन सकती है.
वैज्ञानिकों ने जीनोमिक असिस्टेड प्रजनन के तकनीकों का उपयोग करते हुए, चने की नई किस्म आईसीसी 4958 से सूखा सहनशील जीन का पैतृक प्रजाति (जेजी 16) में सटीक हस्तांतरण करके इस किस्म को विकसित किया गया है. अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान कार्यक्रम (चना) के द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर इस किस्म का परीक्षण किया गया. इसके अत्यधिक सूखा सहनशील होने का पुष्टिकरण भी किया गया. इस चने की किस्म का विकास डॉ. सी भारद्वाज के नेतृत्व में डॉ. राजीव वार्ष्णेय, डॉ. मनीष रुड़कीवाल, डॉ. अनीता बब्बर, डॉ. इंदु स्वरूप द्वारा किया गया है.
डॉ. भारद्वाज ने इस किस्म का उल्लेख करते हुए बताया कि पूसा जेजी 16 अत्यधिक सूखा रहित होने के साथ-साथ फ्यूजेरियम मुरझान और वृद्धिरोध रोगों के लिए प्रतिरोधी, कम अवधि की परिपक्वता वाली (110 दिन) और आवृत्ति मूल प्रजाति जे.जी. 16 (1.3 टन/हेक्टेयर) की तुलना में सूखा प्रतिबल की स्थिति में 2.0 टन/हेक्टेयर से अधिक की उपज की क्षमता वाली किस्म है.
चने की नई किस्म मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र के साथ ही छत्तीसगढ़, दक्षिणी राजस्थान, महाराष्ट्र और गुजरात के मध्यवर्ती क्षेत्रों के लिए फायदेमंद है. असल में चने की ये किस्म सूखा प्रभावित क्षेत्रों में उत्पादकता को बढ़ाएगी, जहां फसल के विकास के समय सूखा एक बड़ी समस्या रहती है और कभी-कभी उपज की 50-100% क्षति होती है.
वहीं कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार ने ‘पूसा जेजी 16’ की अधिसूचना पर खुशी जताई है. पूसा के निदेशक एके सिंह ने इस अवसर पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि यह किस्म देश के सूखा प्रभावित मध्यवर्ती क्षेत्र के किसानों के लिए सूखे की स्थिति से निपटने के लिए वरदान साबित होगी. उन्होंने इस उत्कृष्ट उपलब्धि के लिए प्रजनकों और सभी भागीदारों को बधाई भी दी.
इस नए किस्म से किसानों को बहुत फायदा होगा. जलवायु परिवर्तन और सूखे से बचने के लिए वैज्ञानिकों ने इस नए किस्म को विकसित किया है. जिन राज्यों में इसकी खेती होती है वहां के किसानों के लिये य़ह एक वरदान है. इससे किसानों को चने की खेती में अधिक मुनाफा होगा.
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