खेती-किसानी में किसान अब तक फसलों के बीज के उपचार और उसमें छिड़काव के लिए अलग-अलग दवा का इस्तेमाल करते थे. इससे किसानों का खेती में खर्च भी बढ़ता था, लेकिन अब किसानों को फसलों पर छिड़काव और बीजोपचार के लिए अलग-अलग दवाओं के इस्तेमाल से छुटकारा मिलेगा. दरअसल, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद यानी कि ICAR ने एक ऐसी दवा विकसित की है जिसकी मदद से ये दोनों काम किसान आसानी से कर लेंगे. इस दवा का नाम दलहन बायो-कंसोर्टिया है. किसान इसे बाजार से खरीदकर एक ही दवा से दो काम कर सकते हैं.
दलहन बायो-कंसोर्टिया दवाई को ICAR ने विकसित किया है. इस दवा को ट्राइकोडर्मा एस्परेलम (IIPRTh-31) और बैसिलस सबटिलिस (SHEP-6) की सह-खेती तकनीक के साथ विकसित किया गया है. इससे छिड़काव के साथ-साथ बीज उपचार के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है. इसकी खासियत की बात करें तो ये दवा मिट्टी जनित रोगों को खत्म करने और पौधों की वृद्धि बढ़ाने में भी काफी प्रभावी है. खासकर के ये दवा दलहनी फसलों के लिए पौधों की वृद्धि बढ़ाने के लिए बेस्ट है.
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दलहनी फसलों में पौधों की वृद्धि को बढ़ावा देने और रोगों को रोकने के किसान पल्स बूस्टर का भी इस्तेमाल कर सकते हैं. ये पल्स बूस्टर ट्राइकोडर्मा एफ्रोहार्ज़ियानम (IIPRTh-33) है. इसका उपयोग करके किसान दाल की पैदावार को बढ़ा सकते हैं. यह बूस्टर 18 महीने तक चल सकता है यानी इसका इस्तेमाल डेढ़ सालों तक कर सकते हैं. बुवाई से पहले इससे दाल के बीज का उपचार करना होता है. इसके लिए खुराक 10 ग्राम प्रति किलो बीज लिया जाता है. यह बूस्टर फसल के दाने और चमक को बढ़ाने में मदद करता है. इससे दाने बड़े होते हैं, साथ ही यह जड़ों के विकास में मदद करता है. इसके अलावा मिट्टी को लाभ होता है.
दाल की फसलों में पल्स बूस्टर छिड़काव 10 मिली प्रति लीटर की दर से करना चाहिए. इसका पहला छिड़काव रोपाई के 30 दिन बाद, दूसरा छिड़काव 60 दिन के अंतराल पर और तीसरा छिड़काव रोपाई के 90 दिन बाद करना चाहिए. इसके इस्तेमाल से किसान दहलन फसलों की पैदावार बढ़ा सकते हैं. साथ ही इसकी खेती में किसानों को कम मेहनत करनी होगी.
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