खेतों में फसलों की बुवाई के बाद किसानों की चिंता तब तक बनी रहती है जब तक किसानों की फसल कटकर मंडी में न पहुंच जाए. इस बीच फसलों को कीट, खरपतवार, मौसम, और अलग-अलग तरह के रोगों का खतरा मंडराता रहता है. ऐसे में इन रोग और बीमारी से फसल को बचाने के लिए कई तरह के उपायों को अपनाते रहते हैं. ऐसे में आलू, धान, मूंगफली और मिर्च के फसल को रोगों से बचाने के लिए कागुया (कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% WP) दो फफूंदनाशकों से बना एक प्रभावी रोगनिरोधक और रोगनिवारक उत्पाद है.
यह आलू में झुलसा और रूसी, धान में ब्लास्ट, मूंगफली में टिक्का व जड़ गलन, मिर्च में फल गलन, आम में पाउडरी मिल्ड्यू आदि रोगों से सुरक्षा करता है. कगुया का उपयोग बीज उपचार, मिट्टी को गिला करके, गांठ/कंद भिगो कर और पत्ते पर स्प्रे के रूप में किया जाता है.
कगुया एक व्यापक-स्पेक्ट्रम कवकनाशी है जो कई फसलों में विभिन्न रोगों को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करता है. इसके सक्रिय तत्व, कार्बेन्डाजिम (12%) और मैन्कोज़ेब (63% WP), फंगल रोगों के खिलाफ व्यापक सुरक्षा प्रदान करने के लिए काम करता है.
ये भी पढ़ें: सोयाबीन में फल-फूल बढ़ाने के लिए कितना डालें जस्ता और गंधक, बाकी पोषक तत्वों की मात्रा भी जानें
आलू में, कगुया प्रारंभिक तुषार (Early Blight), पछेती तुषार (late blight) और पपड़ी जैसी बीमारियों को नियंत्रित करता है, स्वस्थ कंद विकास और उपज को बढ़ावा देता है. धान में, यह ब्लास्ट, ब्राउन स्पॉट और लीफ स्केल्ड जैसी बीमारियों को प्रभावी ढंग से बढ़ने से रोकता है, जिससे अनाज की इष्टतम गुणवत्ता और उपज सुनिश्चित होती है. इसके अतिरिक्त, कगुया मूंगफली में जंग, पाउडरी फफूंदी और पत्ती के धब्बे, और मिर्च में फल सड़न, पत्ती के धब्बे और पाउडरी फफूंदी जैसी बीमारियों को रोकने या कम करने का काम करता है.
कगुया का इस्तेमाल अलग-अलग तरीकों से किया जाता है. जिसमें बीज उपचार, मिट्टी का अनुप्रयोग और पत्तियों पर छिड़काव शामिल है. इसके निवारक और उपचारात्मक गुण इसे किसानों के लिए एक आदर्श विकल्प बनाते हैं जो अपनी फसलों को फंगल रोगों से बचाना चाहते हैं. अपनी गतिविधि के व्यापक स्पेक्ट्रम और लचीले अनुप्रयोग विकल्पों के साथ, कगुया एकीकृत कीट प्रबंधन (IPM) रणनीतियों में एक मूल्यवान उपकरण है.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today