बारिश के दिनों में खेत की मेड़ पर उगने वाले गाजर घास यानी कांग्रेसी घास आमतौर पर किसानों के सिरदर्द से कम नहीं होते है, इसके साथ ही जलकुंभी को भी खतरनाक जलीय पौधा माना जाता है. लेकिन क्या आपको पता है कि ये दोनों पौधे भी किसानों के लिए बेहद फायदेमंद हो सकते हैं. जी हां गाजर घास और जलकुंभी जिसे अब तक किसान एक बड़ी समस्या मानते आ रहे थे क्योंकि यह पर्यावरण के लिए भी हानिकारक होता है. लेकिन अब किसान इसका इस्तेमाल जैविक खाद के रूप में कर सकते हैं. साथ ही इससे खाद बनाकर किसान अच्छा मुनाफा भी कमा सकते हैं. ऐसे में आइए जानते हैं क्या है गाजर घास और जलकुंभी से जैविक खाद बनाने की आसान विधि.
वर्तमान में कुछ ऐसी तकनीक है जिसके माध्यम से खास गुणवत्ता वाली खाद बनाकर अपना एक खुद का अच्छा रोजगार प्रारंभ किया जा सकता है, या तो किसान इसको बनाकर अपने खेत में इस्तेमाल कर सकते हैं या पैकेजिंग कर बाजार में भी बेचकर अच्छा खासा मुनाफा कमा सकते हैं. वहीं इस जैविक खाद को बनाने के लिए नीम की पत्ती, गेंहू का ठूंठ, भूसा, जलकुंभी और गाजर घास यानी कांग्रेस घास की जरूरत होती है. साथ ही इस खाद के इस्तेमाल से पैदावार में बढ़ोतरी होती है.
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जैविक खाद तैयार करने के लिए नीम की पत्ती, गेंहू की ठूंठ, भूसा, जलकुंभी और गाजर घास (फूल आने से पहले) को काटकर अच्छी तरह से सुखा लें. उसके 20 फीट लंबे, 4 फीट चौड़े, और तीन फीट गहरे ईंट, प्लास्टिक या बांस के खपाचियो से टंकी बना लें. अगर टंकी बनाने में सक्षम नहीं है तो मिट्टी से भी घेरा कर बना सकते हैं. फिर इसमें सूखे हुए सभी चीजों को टंकी में डाल दें. फिर इसके ऊपर मिट्टी की 1 इंच तह लगाकर गोबर के घोल का छिड़काव करें. इस प्रक्रिया को तब तक करते जाएं जब तक टंकी फुल न हो जाए. अंत में गोबर और मिट्टी के घोल से ढक दें. ध्यान रखें की ऊपर से खाद पर पानी का छिड़काव कर दें ताकि नमी बनी रहे. ऐसे ये जैविक खाद 60 से 70 दिनों में तैयार हो जाएगी.
जैविक खाद से होने वाले फायदे की बात करें तो पौधों को जरूरी पोषक तत्व जैसे नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश, और अन्य सूक्ष्म तत्व मिलते हैं. इससे पौधों की वृद्धि और विकास में मदद मिलती है. इसके अलावा ऑर्गेनिक खाद मिट्टी की बनावट को बेहतर बनाती हैं, जिससे मिट्टी, हवा और पानी को अच्छी तरह से सोख पाती है. इससे पौधों की जड़ें स्वस्थ रहती हैं और ग्रोथ में सहायता मिलती है. साथ ही इससे गर्मियों में पानी की जरूरत कम होती है और पौधे में लंबे समय तक नमी बनी रहती है.
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