अनगिनत फायदों वाला सूरन यानी ओल आपकी बेकार पड़ी जमीन को भी काम का बनाकर बेहतर कमाई का जरिया बन सकता है. इसकी खेती आपके लिए बेहद फायदे का सौदा साबित हो सकती है. यही नहीं, ओल की खेती कर आप सात-आठ महीने के भीतर अपनी लागत का चार गुना मुनाफा भी कमा सकते हैं. ऐसा हम यूं हीं नहीं कह रहे हैं बल्कि सालों से पुरानी फसलों को छोड़ इसकी खेती करने वाले किसानों का भी ऐसा मानना है. उन्हें आज कम मेहनत में ओल यानी सूरन की खेती से अच्छा लाभ हो रहा है.
ओल की खेती का लाभ सुनकर अगर आपका भी मन सूरन की खेती करने का हो रहा है, तो इसकी तकनीक जानना आपके लिए बेहद ज़रूरी है. तभी जाकर कहीं इस फसल से अधिक आमदनी होगी. ओल की खेती करने का सबसे सटीक टाइम होता है फरवरी और मार्च का महीना. रेतीली दोमट मिट्टी में इसकी खेती करना ज्यादा लाभदाक होता है क्योंकि इस तरह की मिट्टी में ओल के कंदों की वृद्धि तेज होती है. इन सबके अलावा सही मात्रा में बीज और उन्नत किस्मों पर भी ध्यान देने की ज़रूरत होती है.
सूरन यानी जिमीकंद की तासीर गर्म होती है, इसलिए लोकल किस्मों को खाने से गले में खुजली की समस्या हो सकती है. इस परेशानी से निजात पाने के लिए सूरन की कई किस्मों को विकसित किया गया है, जिसे खाने से खुजली नहीं होती है. सूरन की सबसे लोकप्रिय किस्म ‘गजेंद्र’ देश के सभी राज्यों में अधिक लोकप्रिय है. इसके आलावा गजेंद्र एन-15, राजेंद्र ओल कोयम्बटूर और संतरा गाची किस्में हैं. इन किस्मों से प्रति एकड़ 20 से 25 टन उपज प्राप्त होती है. किस्मों के चुनाव के दौरान आप अपने क्षेत्र के आधार पर तय कर सकते हैं.
ये भी पढ़ें: अदरक, हल्दी और ओल की खेती में कमाई का सुनहरा मौका, ये राज्य सरकार दे रही है बंपर सब्सिडी
किस्मों और बीज की मात्रा के बाद बात आती है खेत की तैयारी की. सूरन लगाने के लिए पहले खेत को कल्टीवेटर फिर रोटावेटर से भूरभूरा बना लें. खेत की तैयारी के समय ही इसमें गोबर की खाद को भी मिला लें. इसके बाद दो-दो फीट की दूरी पर 30 सेंटीमीटर गहरा, लंबा और चौड़ा गड्ढा खोद लें. फिर इन्ही गड्ढों में ओल के कंदों को रोप दें. इस तरह एक एकड़ में 4 हजार गड्ढे खोदने पड़ते हैं. कंद अगर छोटा हो तो सीधे बुवाई करें और अगर कंदों का आकार 250 से 300 ग्राम के बीच हो तो टुकड़ों में काटकर बोना बेहतर होता है. चाहें तो इसको बागों के बीच के हिस्से में भी आसानी से उगा सकते हैं. एक एकड़ बुवाई के लिए लगभग 20 क्विंटल सूरन कंद की जरूरत पड़ती है.
सूरन की अच्छी उपज के लिए 5-6 टन गोबर की सड़ी खाद और यूरिया 60 किलो, डीएपी 50 किलो और पोटाश 40 किलो प्रति एकड़ देने की जरूरत होती है. बुवाई के पूर्व गोबर की सड़ी खादों को अंतिम जुताई के समय खेत में मिला दें. डीएपी की संपूर्ण मात्रा नाइट्रोजन और पोटाश की 1/3 मात्रा खेत में बुवाई के समय दें. बाकी बचे नाइट्रोजन और पोटाश को दो बराबर भागों में बांटकर कंदों की रोपाई के 50-60 और 80-90 दिनों बाद गुड़ाई और मिट्टी चढ़ाते समय प्रयोग करें. ओल की फसल के लिए केवल तीन सिंचाई की जरूरत पड़ती है. अगर खेत में नमी की कमी रहे तो हल्की सिंचाई कर दें. जल जमाव नहीं होने दें. जून के बाद पानी की जरूरत नहीं होती. सूरन का आकार बड़ा होने के लिए उचित देखभाल के साथ-साथ समय पर निराई गुड़ाई जरूर करें.
सूरन की खेती आम, सहित अन्य बागों में इंटरक्रॉप के रूप में सफलतापूर्वक की जा सकती है. केले में इंटरक्रॉप के रूप में लाभकारी रूप से उगाया जा सकता है. जब केले के साथ इंटरक्रॉप करें तब केले की दूरी को 3.6 मीटर बाई 1.8 मीटर के रूप में समायोजित किया जाता है. केला आधरित सूरन की खेती में 45 सेंमी अंतराल में सूरन की तीन पंक्तियां लगाएं. इसके आलाना भिंडी, टमाटर, पालक या मिर्च या करेला जैसी सब्जी फसलों के साथ इसे उगा सकते हैं.
ये भी पढ़ें: Success Story: महिलाओं के लिए मिसाल हैं उत्तर प्रदेश की किसान पूनम सिंह, गोबर से कमा रही लाखों रुपये
तीन से चार महीने में ओल के कंद तीन से चार किलो वजन के हो जाते हैं. अगर आप एक एकड़ में ओल की खेती कर रहे हैं तो आपको 150 क्विंटल तक उपज मिल जाएगी जो बाजार में 3 से 4 हजार रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से बिक जाएगी. इससे आपको 4 महीने की इस फसल से 4 लाख की आमदनी हो जाएगी. एक एकड़ में ओल की खेती करने पर 1 से डेढ़ लाख का खर्च आता है जिसको कुल आमदनी में से घटाने के बाद भी आपको 2 से ढाई लाख का शुद्ध मुनाफ़ा हो जाता है.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today