डाई-अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) खाद की भारी कमी ने उत्तर भारत के कई राज्यों के किसानों की समस्याओं को बढ़ा दिया है. पंजाब समेत कई राज्यों में किसान डीएपी के लिए सोसाइटियों और दुकानों के बाहर रात भर लाइन में खड़े रहते हैं, फिर भी सभी किसानों को खाद नहीं मिल पा रही. वर्तमान में रबी सीजन की शुरुआत होने से गेहूं,आलू और सरसों की बुवाई के लिए किसानों को डीएपी की जरूरत है, लेकिन सप्लाई पूरी न होने के कारण किसान चिंता में हैं. ऐसे में विशेषज्ञों ने कुछ वैकल्पिक खादों के प्रयोग की सलाह दी है, जिससे किसानों को फसल की बुवाई समय से हो सके और इस परेशानी से राहत मिल सके.
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान पूसा नई दिल्ली (IARI) के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. राजीव कुमार सिंह ने डीएपी की कमी को देखते हुए अन्य फास्फेट खादों के उपयोग की सिफारिश की है. उन्होंने बताया कि डीएपी के प्रत्येक बैग में 23 किलोग्राम फास्फोरस और 9 किलोग्राम नाइट्रोजन होता है. इसके विकल्प के रूप में किसान 3 बैग सिंगल सुपर फॉस्फेट (SSP) और 1 बैग यूरिया का उपयोग कर सकते हैं, जिससे पौधों को पर्याप्त फास्फोरस, कैल्शियम, नाइट्रोजन और सल्फर की मात्रा मिलती है. दूसरे विकल्प के रूप में ट्रिपल सुपर फॉस्फेट (TSP) का उपयोग भी किया जा सकता है. इसमें 46 प्रतिशत फास्फोरस होता है, जो यूरिया के साथ मिलाने पर डीएपी के समान ही पोषक तत्व प्रदान करता है. इन वैकल्पिक खादों के उपयोग से किसान अपनी रबी फसलों की बुवाई सही समय पर कर सकते हैं.
डॉ. राजीव कुमार के अनुसार, सिंगल सुपर फॉस्फेट (SSP) खाद का उपयोग विशेष रूप से तिलहन और दलहन फसलों के लिए लाभकारी है. इसमें 16 प्रतिशत फास्फोरस, 11 प्रतिशत सल्फर और कैल्शियम पाया जाता है, जो पौधों की वृद्धि के साथ-साथ जड़ों के विकास में भी सहायक है. एसएसपी खाद का उपयोग फसल की क्वालिटी और पैदावार बढ़ाने में मदद करता है. सल्फर की मौजूदगी के कारण इसमें पौधों में क्लोरोफिल अधिक बनता है, जिससे प्रोटीन की मात्रा बढ़ती है.
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डीएपी की कमी की स्थिति में किसान जैव उर्वरकों का भी उपयोग कर सकते हैं, जो खेत में मौजूद फास्फोरस और नाइट्रोजन को पौधों तक पहुंचाने में सहायक होते हैं. इसके अलावा, नैनो यूरिया और नैनो डीएपी जैसे नए लिक्विड उर्वरकों का भी प्रयोग किया जा सकता है, जो लागत को कम करने के साथ भूमि की उर्वरता और उत्पादन को बढ़ाते हैं. बेहतर होगा कि किसान खेतों की मिट्टी का परीक्षण करवाकर मृदा स्वास्थ्य कार्ड के अनुसार ही खादों का प्रयोग करें.
रबी सीजन की प्रमुख फसलें जैसे गेहूं, सरसों, आलू और दलहनी फसलों को तीन प्रमुख पोषक तत्वों की जरूरत होती है क्योकि नाइट्रोजन पौधों की जड़, तना और पत्तियों की वृद्धि में सहायक होते है वहीं, फास्फोरस - बीज, फलों के विकास और जड़ों की वृद्धि में सहायक होता है और पोटाश पौधों को प्रतिकूल परिस्थितियों जैसे ठंडक और कीट व्याधियों से सहनशीलता प्रदान करता है.
भारत में डीएपी का उत्पादन सीमित होने के कारण 60 प्रतिशत से अधिक डीएपी का आयात किया जाता है. हर साल लगभग 100 लाख टन डीएपी की जरूरत होती है, जिनमें से अधिकांश आयात से पूरा किया जाता है. आयात में किसी भी प्रकार की बाधा आने पर डीएपी की उपलब्धता प्रभावित होती है. रसायन और उर्वरक मंत्रालय के अनुसार, 2023-24 में डीएपी का घरेलू उत्पादन केवल 42.93 लाख मीट्रिक टन रहा जबकि आयात 55.67 लाख मीट्रिक टन का किया गया. आयात पर बढ़ती निर्भरता के कारण किसी भी आपूर्ति में रुकावट से डीएपी की कमी का संकट और गहरा सकता है.
इस प्रकार, डीएपी की कमी से निपटने के लिए किसान वैकल्पिक उर्वरकों का उपयोग कर सकते हैं, जिससे रबी सीजन की फसलें समय पर बोई जा सकेंगी, और उत्पादन में कमी नहीं आएगी.
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