हरियाणा के विभिन्न हिस्सों में किसान रबी सीजन की फसलों की बुवाई में लगे हुए, लेकिन किसान डीएपी खाद की कमी से जूझे रहे है. यहां रबी सीजन में किसान मुख्य तौर पर गेहूं और सरसों की खेती करते हैं, जिसमें डीएपी एक बहुत जरूरी खाद है. ऐसे में सरकारी दर पर डीएपी खाद खरदीने के लिए किसान खाद बिक्री केंद्रों के बाहर लंबी कतारों में खड़े होने को मजबूर हैं, यहां तक कि कुछ जिलों में पुलिस स्टेशन से खाद बेचने की बात कही जा रही है.
दि ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक, डीएपी की कमी के चलते मजबूर किसानों को निजी डीलरों से खाद खरीदने के लिए बहुत ज्यादा कीमत चुकानी पड़ रही है. वहीं, डीएपी की कमी से जूझने के बावजूद भी ज्यादातर किसान लिक्विड नैनो-डीएपी के इस्तेमाल से बच रहे हैं. मालूम हो कि सरकार और कृषि वैज्ञानिक नैनो-डीएपी को बढ़ावा दे रहे हैं, लेकिन किसान इन्हें नहीं अपना रहे हैं.
कृषि विशेषज्ञों की मानें तो किसान रेगुलर दानेदार डीएपी खाद को इसलिए पसंद करते हैं, क्योंकि दानों के रूप में आने वाली इस खाद में नाइट्रोजन और फास्फोरस का हाई कॉन्सेंट्रेशन जल्दी परिणाम देता हैं. यही वजह है कि किसान रेगुलर डीएपी को प्राथमिकता देते हैं.
इसके अलावा कृषि विशेषज्ञों ने एक तर्क और दिया कि लिक्विड नैनो-डीएपी लागत प्रभावी (Cost Effective) नहीं है, क्योंकि इसके खेत में छिड़काव के लिए अतिरिक्त श्रमिक लगाना पड़ता है और खेती की लागत बढ़ती है. इसके साथ ही लिक्विड नैनो-डीएपी को एक निश्चित मात्रा में छिड़कना पड़ता है, जिस कारण से किसान हिचकते हैं.
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रोहतक के बोहर गांव के किसान नरेश कहते हैं, 'दानेदार रेगुलर डीएपी खाद पारंपरिक तरीकों से छिड़काव के अनुकूल है और आसानी से खेतों में छिड़की जा सकती है. वहीं, ज्यादातर खेतिहर मजदूरों को नैनो-डीएपी के इस्तेमाल-छिड़काव की जानकारी नहीं होती और अतिरिक्त श्रम का खर्च भी होता है, जिससे लागत बढ़ती है.'’
कृषि एक्सपर्ट किसानों को डीएपी की जगह NPK खाद का इस्तेमाल करने को कहते हैं. उनका कहना है कि NPK में डीएपी में मौजूद नाइट्रोजन और फॉस्फोरस के अलावा पोटेशियम भी शामिल होता है. कृषि एवं किसान कल्याण विभाग, रोहतक के गुणवत्ता नियंत्रण निरीक्षक राकेश कुमार ने कहा कि एनपीके खाद डीएपी खाद के मुकाबले ज्यादा फायदेमंद है और इसका भी एक दम सुरक्षित है.
बता दें कि पिछले साल सरकार ने खेतों में ड्रोन के माध्यम से तरल नैनो-यूरिया का छिड़काव कराया था, जिसका खर्च भी खुद सरकार ने ही उठाया था, लेकिन इस वर्ष ऐसी काेई पहल अब तक सामने नहीं आई है.
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