हरित क्रांति के बाद पूरे देश में रासायनिक उर्वरकों का अंधाधुंध प्रयोग किया जाने लगा, जिसकी वजह से मिट्टी में मौजूद पोषक तत्वों का संतुलन बिगड़ गया. इससे मिट्टी की उर्वराशक्ति पर विपरीत प्रभाव पड़ा तथा फसलों पर रोगों एवं कीटों का अधिक आक्रमण होने लगा. नतीजा यह हुआ कि कीटनाशकों एवं दवाओं का प्रयोग बढ़ता गया. इसके परिणामस्वरूप मिट्टी, पानी एवं वातावरण प्रदूषित हो गए. रासायनिक उर्वरकों एवं दवाओं के अत्यधिक प्रयोग से मिट्टी में मौजूद सूक्ष्मजीवों तथा केंचुओं की संख्या कम हो गई. इसका दुष्प्रभाव यह हुआ है कि मिट्टी का भौतिक, रासायनिक एवं जैविक संतुलन बिगड़ गया है. इसका मानव स्वास्थ्य पर भी विपरीत प्रभाव पड़ रहा है. आज प्रत्येक घर में कोई न कोई व्यक्ति रोग से ग्रस्त है. आय का एक बड़ा हिस्सा रोगों के इलाज में खर्च हो रहा है. ऐसे में अब प्राकृतिक खेती का महत्व काफी बढ़ गया है.
कृषि वैज्ञानिक देवेश पाठक, भास्कर प्रताप सिंह और राम रतन सिंह ने प्राकृतिक खेती से जुड़ी आठ प्रमुख बातों की जानकारी दी है. जिन्हें जाने बिना आप प्राकृतिक खेती में आगे नहीं बढ़ सकते. कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि रासायनिक उर्वरकों एवं दवाओं के प्रयोग से उपज बढ़ने से जहां जनता का पेट तो भर गया, वहीं मिट्टी का पेट खाली हो गया है. मिट्टी में सभी 17 पोषक तत्वों एवं कार्बनिक पदार्थों एवं सूक्ष्मजीवों का होना आवश्यक है. लेकिन सभी पोषक तत्वों को किसान नहीं डालते. जिंक, सल्फर और बोरान आदि तत्वों की मिट्टी में भारी कमी हो गई है. यदि यही स्थिति रही तो वह दिन दूर नहीं, जब मिट्टी अनुपजाऊ हो जाएगी तथा उत्पादन प्रभावित होगा.
प्राकृतिक खेती मुख्य रूप से देसी गाय पर आधारित है. देसी गाय के एक ग्राम गोबर में 300 से 500 करोड़ तक सूक्ष्मजीवाणु होते हैं, जबकि विदेशी गाय के एक ग्राम गोबर में 78 लाख सूक्ष्म जीवाणु पाये जाते हैं.
प्राकृतिक खेती में गहरी जुताई नहीं की जाती है. भूमि अपनी जुताई स्वयं स्वाभाविक रूप से पौधों की जड़ों द्वारा प्रवेश तथा केंचुओं व छोटे प्राणियों तथा सूक्ष्म जीवाणुओं से कर लेती है.
इसमें फसल की बुवाई उत्तर से दक्षिण दिशा में करते हैं. इससे पौधों को अधिक समय तक सूर्य का प्रकाश मिलता है. कीट एवं रोगों का प्रकोप भी कम होता है.
फसल अवशेषों द्वारा मिट्टी को ढक दिया जाता है. इससे मिट्टी में नमी का ह्रास रुक जाता है. मिट्टी में सूक्ष्म पर्यावरण का निर्माण होता है. इससे केंचुओं की गतिविधियां बढ़ जाती हैं.
मुख्य फसल की पंक्तियों के बीच ऐसी फसल लगाना, जो भूमि में नाइट्रोजन की आपूर्ति तथा खेती की लागत मूल्य की भरपाई करें. जैसे गन्ने की खेती के बीच में थोड़े-थोड़े समय वाली दूसरी फसलों का लेना.
प्राकृतिक खेती में सिंचाई पौधों से कुछ दूरी पर की जाती है. पौधों को इस प्रकार जल देने से जड़ों की लंबाई बढ़ जाती है. जड़ों की वृद्धि से पौधे के ऊपरी भाग की भी वृद्धि होती है.
केमिकल का प्रयोग नहीं
प्राकृतिक खेती में केमिकल का उपयोग नहीं करना चाहिए. जुताई तथा उर्वरकों के उपयोग से रोगों तथा कीटों का प्रकोप अधिक होने लगा है. मिट्टी में कम से कम छेड़छाड़ करने से प्रकृति का संतुलन बना रहता है.
इस विधि के तहत कृषि में नमी बढ़ाने के लिए प्राकृतिक तरीकों का उपयोग किया जाता है. इसमें पौधे आवश्यक पोषण, मिट्टी में उपस्थित नमी एवं वायु में मौजूद अणुओं से प्राप्त करते हैं.
प्राकृतिक खेती में केमिकल का उपयोग नहीं करना चाहिए. जुताई तथा उर्वरकों के उपयोग से रोगों तथा कीटों का प्रकोप अधिक होने लगा है. मिट्टी में कम से कम छेड़छाड़ करने से प्रकृति का संतुलन बना रहता है.
इस विधि के तहत कृषि में नमी बढ़ाने के लिए प्राकृतिक तरीकों का उपयोग किया जाता है. इसमें पौधे आवश्यक पोषण, मृदा में उपस्थित नमी एवं वायु में मौजूद अणुओं से प्राप्त करते हैं.
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