सितंबर-अक्टूबर में धान की कटाई शुरू होते ही पराली प्रबंधन किसानों के लिए बड़ी चुनौती बन जाता है. साथ ही पराली सिर्फ खेतों का ही नहीं बल्कि राजनीतिक मुद्दा भी बन जाता है. दरअसल, किसान धान की फसल काटने के बाद पराली को खेतों में ही जला देते हैं और अगली फसल की तैयारी में जुट जाते हैं, जिससे पर्यावरण के साथ ही खेत की मिट्टी को भी काफी नुकसान होता है. ऐसे में अगर आप इस नुकसान से बचना चाहते हैं तो पराली को जलाने के बजाय इसके सही उपयोग से मिट्टी की सेहत सुधार सकते हैं. कुछ जुगाड़ को अपनाकर पराली से खाद बनाई जा सकती है.
किसानों के लिए पराली को जलाए बिना उसका प्रबंधन करना चाहिए. इसके लिए किसान जीरो टिलेज मशीन या सुपर सीडर जैसी तकनीकों का उपयोग करके इसे मिट्टी में मिला सकते हैं, यह सड़कर धीरे-धीरे खाद में तब्दील हो जाएगा, जो फसलों के लिए काफी फायदेमंद हो सकता है.
धान के फसल अवशेष (पराली) का कई तरीकों से उपयोग किया जा सकता है. इसका सबसे अच्छा उपयोग पशुधन के चारे या पशुओं के बिछावन के रूप में कर सकते हैं. इसके अलावा, पराली का उपयोग मशरूम की खेती के लिए या खेतों में मल्चिंग के लिए भी कर सकते हैं. ऐसा करने से खेत में नमी बनी रहेगी और यह पराली धीरे-धीरे सड़कर खाद में तब्दील हो जाएगी.
पराली को सीधे जलाने के बजाय उसे कंपोस्ट खाद में बदलकर जैविक खाद तैयार किया जा सकता है. ऐसा करने से मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार होगा और जल धारण क्षमता बढ़ेगी. पराली की खाद बनाने से किसानों को बाजार से खाद खरीदने पर होने वाले खर्च में भी बचत होगी.
किसान पराली से खाद बनाने के लिए बायो डी कंपोजर की मदद ले सकते हैं. किसान पराली के ढेर बनाकर उसमें बायो-डीकंपोजर घोल या गोबर का घोल मिलाएं. पराली से खाद को तब्दील करने के लिए 60 फीसदी नमी होना जरूरी है. बायो-डीकंपोजर का इस्तेमाल करने के कुछ ही सप्ताह में पराली गलकर खाद में बदल जाती है.
पराली खाद बनाने की एक और विधि इन-सीटू (In-Situ) प्रबंधन है, जहां पराली को खेत में ही मिट्टी मिला दिया जाता है. इसमें रोटावेटर या मल्चर की मदद से पराली को छोटे टुकड़ों में काटकर मिट्टी में मिला दिया जाता है. इसके बाद, बायो-डीकंपोजर का छिड़काव किया जाता है, जिससे यह तेजी से सड़कर मिट्टी में मिल जाए. यह बाद में धीरे-धीरे खाद में तब्दील हो जाता है.
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