गन्ना किसान ध्यान दें, फरवरी में निपटा लें ये 10 जरूरी काम वर्ना नहीं मिलेगी सही उपज
जलभरवा वाले क्षेत्र के लिए यूपी 9529, 9530 व कोसे 96436 किस्म बेहतर होगी. कहा जाता है कि ये किस्में जलभरवा की स्थिति को अच्छी तरह से सहन करती हैं. गन्ने की बुवाई करने से पहले किसान खेत को अच्छी तरह से तैयार कर लें. किसान प्रति हेक्टेयर गोबर की खाद 18 टन या बायाकम्पोस्ट 4.5 टन बिखेर दें. इसके बाद खेत की जुताई करें.
ब्राजील के बाद भारत विश्व का सबसे बड़ा गन्ना उत्पादक देश है. उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक सहित कई राज्यों में किसान बड़े स्तर पर गन्ने की खेती करते हैं. लेकिन कई बार काफी अधिक मेहनत करने के बाद भी किसानों को उचित मात्रा में गन्ने का प्रोडक्शन नहीं मिलता है. लेकिन किसान कुछ उपायों को अपना कर गन्ने का प्रोडक्शन बढ़ा सकते हैं. इसके लिए उन्हें नीचे बताए गए तरीकों को सिर्फ अपनाना होगा.
दरअसल, मध्य भारत और पश्चिम भारत में गन्ने की बुवाई 15 फरवरी के बाद की जाती है. इसलिए इन क्षेत्रों के किसान देर से पकने वाली गन्ने की किस्मों का चयन करें.
अगर किसान जल्दी तैयार होने वाले गन्ने की बुवाई करना चाहते हैं, तो कोशा 8436, 88230, 96268 और कोसे 98231 व कोसे 94536 में से किसी भी एक किस्म का चयन कर सकते हैं.
वहीं, जिन क्षेत्रों में जलभराव रहता है, वहां के किसानों को मार्च के महीने में गन्ने की बुवाई करनी चाहिए.
जलभरवा वाले क्षेत्र के लिए यूपी 9529, 9530 व कोसे 96436 किस्म बेहतर होगी. कहा जाता है कि ये किस्में जलभरवा की स्थिति को अच्छी तरह से सहन करती हैं.
गन्ने की बुवाई करने से पहले किसान खेत को अच्छी तरह से तैयार कर लें. किसान प्रति हेक्टेयर गोबर की खाद 18 टन या बायाकम्पोस्ट 4.5 टन बिखेर दें. इसके बाद खेत की जुताई करें.
पहली जुताई 20 से 22 सेमी गहरी करें. वहीं, फरवरी में गन्ने की बुवाई करने की दशा में दो पंक्तियों की बीच की दूसरी कम से कम 90 सेंटीमीटर रखें. ऐसे दोहरी पंक्ति विधि 90:30:90 सेमी से भी बुवाई करनी उपयोगी है.
गन्ने का बीज हमेशा स्वीकृत पौधशाला से ही खरीदें, जिसमें पर्याप्त मात्रा में उर्वरक व पानी का प्रयोग किया गया हो.
छोटी पोरी वाले गन्ने की 3 आंख एवं बड़ी पोरी वाले गन्ने गन्ने की 2 आंख का टुकड़ा काटना चाहिए. टुकड़ों को रासायन से उपचार करने के बाद ही बोना चाहिए. इससे जमाव अच्छा होता है.
वहीं, शरदकालीन और बसन्तकालीन शीघ्र पकने वाली प्रजातियों की कटाई यदि शेष रह गई हो तो किसानों को तुरंत मेड़ों को गिराते हुए ठूठों की छटाई करनी चाहिए.
सिंचाई के बाद ओट आने पर पंक्तियों के दोनों तरफ से गुड़ाई करें और खाद डालें. इससे उत्पादन में कमी नहीं आएगी.