छत्तीसगढ़ के किसान ध्यान दें! सरसों की उपज बढ़ानी है तो इस खास विधि से करें खेती

छत्तीसगढ़ के किसान ध्यान दें! सरसों की उपज बढ़ानी है तो इस खास विधि से करें खेती

मिक्स फसल की खेती को उतेरा विधि के नाम से भी जानते हैं. छत्तीसगढ़ में यह तरीका प्रचलित है. इस विधि से खेत की नमी का इस्तेमाल अगली फसल के अंकुरण के लिए किया जाता है. इसमें दो फसलों को एक साथ लेते हैं, लेकिन बुवाई में अंतर रखा जाता है. उतेरा फसल के रूप में अलसी, सरसों, चना, तिवड़ा, गेहूं आदि की बुवाई की जाती है. फसल उगाने की इस विधि में दूसरी फसल की बुवाई पहली फसल की कटाई से पहले कर दी जाती है.

Advertisement
छत्तीसगढ़ के किसान ध्यान दें! सरसों की उपज बढ़ानी है तो इस खास विधि से करें खेतीसरसों फसल की खेती

देश के कई राज्यों में सरसों की खेती चल रही है. वैसे तो मध्य नवंबर तक इसकी खेती को सही माना जाता है, लेकिन किसान नवंबर अंत तक भी करते हैं. इस बार अधिक तापमान के चलते सरसों की खेती थोड़ी धीमी चल रही है. आज हम छत्तीसगढ़ के लिए सरसों की खेती के बारे में जानकारी देंगे. यहां बड़े पैमाने पर किसान सरसों उगाते हैं. इससे उनकी कमाई भी बढ़ती है. अगर आप भी इसकी खेती करना चाहते हैं तो सबसे पहले जान लेना चाहिए कि कैसे उपज को बढ़ा सकते हैं. इसके लिए आप आसान विधि अपना सकते हैं जिसके बारे में एक्सपर्ट सलाह देते हैं.

कृषि एक्सपर्ट के मुताबिक, अगर सरसों के साथ चने की मिक्स खेती की जाए तो सरसों की अच्छी पैदावार मिलती है. दाने बड़े होते हैं और उसमें तेल की मात्रा भी अच्छी निकलती है. किसानों के लिए अच्छा रहेगा कि वे सरसों को काली या कन्हार मिट्टी में लगाएं. यह सलाह छ्त्तीसगढ़ की मिट्टी के लिहाज से है. इसमें पोषक तत्वों की मात्रा अधिक होती है और किसानों को अलग से खाद देने की जरूरत नहीं होती. काली मिट्टी को अधिक पानी की भी जरूरत नहीं पड़ती जिससे सरसों में सिंचाई की जरूरत कम होती है.

ये भी पढ़ें: सरसों में तेल की मात्रा बढ़ानी है तो अभी डालें ये खाद, फली में दाने की संख्या भी बढ़ेगी

मिक्स खेती का फायदा

मिक्स फसल की खेती को उतेरा विधि के नाम से भी जानते हैं. छत्तीसगढ़ में यह तरीका प्रचलित है. इस विधि से खेत की नमी का इस्तेमाल अगली फसल के अंकुरण के लिए किया जाता है. इसमें दो फसलों को एक साथ लेते हैं, लेकिन बुवाई में अंतर रखा जाता है. उतेरा फसल के रूप में अलसी, सरसों, चना, तिवड़ा, गेहूं आदि की बुवाई की जाती है. फसल उगाने की इस विधि में दूसरी फसल की बुवाई पहली फसल की कटाई से पहले कर दी जाती है. इसमें किसानों को धान के साथ-साथ दलहन, तिलहन की उपज साथ में मिल जाती है और सिंचाई का पैसा बचता है. दलहन फसलें नाइट्रोजन देती हैं जिससे खाद का पैसा भी बचता है. इस विधि से खेती करने पर फसलों की पराली या पुआल जलाने की जरूरत नहीं पड़ती. इससे प्रदूषण नहीं फैलता.  

अगर आप मध्य प्रदेश के किसान हैं तो राई-सरसों की खेती के लिए दोमट या बलुई मिट्टी में इसे लगा सकते हैं. इस मिट्टी में जल निकासी अच्छी होनी चाहिए वर्ना फसल को नुकसान होगा. एक्सपर्ट बताते हैं कि अगर खेत में पानी के निकास की व्यवस्था न हो तो हर साल लाहा लेने से पहले ढैंचा को हरी खाद के रूप में उगाना चाहिए. अच्छी पैदावार के लिए जमीन का पीएच मान 7.0 होना चाहिए. अगर जमीन क्षारीय है तो हर तीसरे साल में जिप्सम या पायराइट 5 टन प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए. जिप्सम या पायराइट को मई-जून में जमीन में मिलाना चाहिए. इससे राई-सरसों की अच्छी उपज मिलती है.

ये भी पढ़ें: सरसों के पत्ते पर दिखें गोल भूरे धब्बे तो हो जाएं सावधान, इस रोग का है संकेत, जल्द डालें ये दवा

खेती में खाद का प्रयोग

खादों का प्रयोग मिट्टी परीक्षण के आधार पर किया जाना चाहिए. बुवाई पहले या खेत की तैयारी के समय 8-10 टन प्रति हेक्टेयर की दर से गोबर की सड़ी हुई खाद मिट्टी में मिलाकर डालना चाहिए. इसके आलावा अच्छी उपज लेने के लिए 60-80 किलो नाइट्रोजन, 40-50 किलो फास्फोरस, 40-50 किलो पोटाश और 30-40 किलो गंधक प्रति हेक्टयर की दर से प्रयोग करना चाहिए. नाइट्रजोन की आधी मात्रा और अन्य खादों की पुरी मात्रा बुवाई के समय बेसल डोज के रूप में और बाकी बची हुई नाइट्रोजन की मात्रा को कलियों के बनने के समय प्रयोग की जानी चाहिए. गंधक के प्रयोग से फसल की उपज और तेल की मात्रा में वृद्धि होती है.

 

POST A COMMENT