ऐसे समय में जब पर्यावरण को बचाने की बातें हो रही हों और जलवायु परिवर्तन पर हर जगह चर्चा हो रही हो, मियावाकी मैथेड का जिक्र न किया जाए, ऐसा नहीं हो सकता. मियावाकी यानी जंगल उगाने का वह तरीका जो शहरों में पर्यावरण संरक्षण के लिए काफी कारगर है. जापान की इस तकनीक का प्रयोग आज बड़े पैमाने पर शहरों में जंगलों को बचाने या फिर नए पेड़ लगाने के लिए किया जा रहा है. मियावाकी मैथेड को आज की मिट्टी और जलवायु परिस्थितियों के लिए एक बेहतर विकल्प माना जा रहा है. भारत में भी अब इस तरीके का प्रयोग करके ग्रीनकवर को बढ़ावा दिया जा रहा है.
इस मैथेड को सन् 1970 के दशक में डेवलप किया गया था और इसका नाम जापान के वनस्पति शास्त्री और प्रोफेसर अकीरा मियावाकी के नाम पर रखा गया है जिन्होंने इस विकसित किया था. इस पद्धति में हर वर्ग मीटर में दो से चार अलग-अलग प्रकार के देसी पेड़ लगाए जाते हैं. इसका मकसद जमीन के एक छोटे से हिस्से में हरियाली को बढ़ाना था. इस पद्धति में तीन साल के अंदर पेड़ अपनी लंबाई तक बढ़ जाते हैं. यह तकनीक दुनिया भर में मिट्टी और जलवायु स्थितियों के बावजूद सफल कारगर हुई है. इस मैथेड की मदद से 2000 से ज्यादा जंगलों के निर्माण में मदद मिली है.
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विशेषज्ञों की मानें तो एक जंगल को अपने आप रिकवर होने में करीब 200 साल लग सकते हैं. लेकिन मियावाकी पद्धति से सिर्फ 20 साल में ऐसा ही नतीजा हासिल हो जाता है. मियावाकी जंगल साल कम से कम 1 मीटर बढ़ते हैं और वह भी बिना किसी रसायन या सिंथेटिक उर्वरक के. ये जंगल पर्यावरण को आसपास के सभी लोगों के लिए सुखद बनाते हैं. भारत में भी अब यह तकनीक तेजी से अपनाई जाने लगी है.
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मियावाकी मैथेड से मुंबई जैसे शहरों में जहां पर जगह की कमी है वहां पर भी यह हरियाली को बहाल करने का सबसे कारगर उपाय बन गया है. साल 2022 की एक रिपोर्ट के अनुसार बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) जलवायु परिवर्तन से निपटने, प्रदूषण के स्तर को कम करने और शहर के ग्रीनकवर को बढ़ाने के लिए खाली जमीन पर मियावाकी मैथेड को लागू किया था. मुंबई में अब तक इस मैथेड से 64 मियावाकी वन लगाए जा चुके हैं.
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छत्तीसगढ़ के कोयला क्षेत्र में जंगलों को बढ़ावा देने के लिए कोल इंडिया लिमिटेड की सहायक कंपनी साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (एसईसीएल) की तरफ से मियावाकी मैथेड से पेड़ लगाए जाएंगे. परियोजना छत्तीसगढ़ राज्य वन विकास निगम (सीजीआरवीवीएन) के साथ साझेदारी में इस परियोजना में करीब चार करोड़ रुपये की लागत आएगी. मियावाकी टेक्निक से वृक्षारोपण दो वर्षों में पूरा किया जाएगा और करीब 20000 पौधे लगाए जाएंगे. इसमें बरगद, पीपल, आम, जामुन जैसे बड़े पेड़ों के अलावा करंज, आंवला, अशोक जैसे मध्यम पौधे और कनेर, गुड़हल, त्रिकोमा, बेर, अंजीर, नींबू आदि जैसे छोटे पौधे भी शामिल होंगे.
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भारत में जून 2009 में टोयोटा ने मियावाकी टेक्निक की मदद से कर्नाटक के बैंगलोर के बिदादी में अपने प्लांट के करीब चार हेक्टेयर जमीन पर देश का पहला मियावाकी जंगल विकसित किया था. अब हैदराबाद के बाहरी इलाके में शमशाबाद में दुनिया के सबसे बड़े मियावाकी जंगल के विस्तार का काम जारी है और इसे 100 एकड़ जमीन तक फैलाया जाएगा.
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