सरकार ने जूट का न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी कि MSP बढ़ा दिया है. इसमें 6 परसेंट की बढ़ोतरी की गई है. सरकार ने जूट के एमएसपी में 315 रुपये की वृद्धि कर इसे 5650 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया है. बुधवार को केंद्रीय कैबिनेट इस बाबत फैसला लिया. लंबे दिनों से किसान एमएसपी बढ़ाने की मांग कर रहे थे. आखिर यह मांग पूरी हुई है. पश्चिम बंगाल जूट की खेती में अग्रणी राज्य है जहां कुल उत्पादन का तकरीबन 80 परसेंट हिस्सा उगाया जाता है. इसकी कुछ खेती बिहार में भी की जाती है.
एमएसपी बढ़ाने की जूट किसानों की मांग लंबे दिनों से जारी थी. किसानों का कहना है कि जूट निकालने का काम बेहद मुश्किल है जबकि इसकी उपयोगिता दिनों दिन बढ़ रही है. जूट की बोरियों की मांग में इजाफा है और सरकार भी इसे प्रोत्साहित कर रही है. इसे देखते हुए किसान दाम बढ़ाने की मांग करते रहे हैं. इन तमाम घटनाक्रमों के बीच आज हम जानते हैं कि पौधे से जूट निकालना कितना मुश्किल काम है.
दरअसल, जूट के तने से फाइबर निकालने के काम को तकनीकी भाषा में रेटिंग कहते हैं. रेटिंग का काम चार तरीके से होता है-मैकेनिकल रेटिंग जिसमें हथौड़ा मारकर पौधे से जूट निकालते हैं. केमिकल रेटिंग जिसमें उबाल कर और केमिकल लगाकर जूट निकालते हैं. स्टीम या वाष्प या ओस रेटिंग भी होती है. इसके अलावा पानी या माइक्रोबियल रेटिंग भी होती है जिसमें पानी में पौधे को कुछ दिनों तक रखा जाता है. फिर उसके रेशे को निकाला जाता है.
पानी रेटिंग सबसे पुरानी और विश्वस्त प्रक्रिया है जिसमें कटाई के बाद, जूट के डंठलों को बंडलों में बांधकर बहते पानी में डुबो दिया जाता है. डंठल लगभग 20 दिनों तक पानी में डूबा रहता है. फिर उसके फाइबर सड़ते हैं जिससे दुर्गंध आने लगती है. इससे पता चल जाता है कि जूट का फाइबर निकालने लायक हो गया है. अगर जूट की क्वालिटी बेहतर है तो सड़ने की प्रक्रिया में कम समय लग सकता है. ज्यादातर मामलों में, पानी में सड़ने से लेकर रेशे निकालने की प्रक्रिया किसानों द्वारा पानी के नीचे खड़े होकर की जाती है.
जूट के तने से रेशा यानी फाइबर निकालने का काम हथौड़े से किया जाता है. जब जूट का डंठल पानी में सड़ जाता है तो डंठलों को बंडल में पकड़कर उस पर तेजी से हथौड़ा मारते हैं. यह हथौड़ा लोहा का नहीं बल्कि लकड़ी का ही होता है. हथौड़ा मारते ही रेशे निकलने लगते हैं. रेशे निकलने के बाद पानी से उसे धोया जाता है. फिर उसमें से पानी निचोड़ा जाता है. आखिरी बूंद तक पानी निचोड़ा जाता है ताकि रेशे में किसी तरह की नमी न रहे. नमी रहने पर रेशे के खराब होने या क्वालिटी गिरने की आशंका रहती है. ऐसे में रेशे का सही दाम नहीं मिलता.
इसके लिए रेशे को बांस की बल्लियों पर फैलाकर सुखा लिया जाता है. पूरी तरह से रेशे सूख जाने के बाद उसे बंडलों में बांध कर बाजार में बेचने के लिए भेज दिया जाता है. फिर इससे कई प्रकार के कपड़े बनते हैं. राष्ट्रीय पटसन बोर्ड के मुताबिक, जूट से कई तरह के कपड़े बनाए जाते हैं. जैसे हेसियन कपड़ा, सैकिंग, स्क्रिम, कार्पेट बैकिंग क्लॉथ (CBC) और कैनवास. हेसियन, सैकिंग से हल्का होता है, इसका उपयोग बैग, रैपर, दीवार-कवरिंग, असबाब और घरेलू सामान के लिए किया जाता है. भारी जूट के रेशों से बना कपड़ा, सैकिंग, इसका नाम में ही इसका उपयोग किया गया है.
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