रासायनिक खाद के बढ़ते इस्तेमाल के चलते न सिर्फ जमीन प्रदूषित हो रही है बल्कि इससे फसल भी प्रदूषित हो चुकी है. रासायनिक खेती से पैदा होने वाला अनाज में पोषक तत्व की जगह कई हानिकारक तत्व भी बढ़ते जा रहे हैं जिसकी वजह से सेहत को नुकसान पहुंच रहा है. ऐसे में वैदिक खेती से न सिर्फ जमीन उपजाऊ हो रही है बल्कि रासायनिक उर्वरक मुक्त इस खेती से किसानों को फायदा भी हो रहा है.
राजधानी लखनऊ में ही पूर्व डिप्टी एसपी शैलेंद्र सिंह ने वैदिक खेती को अपनाया है. उन्होंने अपने फार्म पर वैदिक खेती का एक मॉडल बनाया है जिसमें सब्जी के साथ-साथ आलू ,प्याज और लहसुन की खेती भी हो रही है. उनका कहना है कि इस खेती के माध्यम से न सिर्फ फसल की लागत कम हो रही है बल्कि इससे उत्पादन भी भरपूर मिल रहा है. और तो और पैदा होने वाली फसलों में भी स्वाद के साथ-साथ पोषण भी भरपूर है.
मिट्टी को भी कई पोषक तत्वों की जरूरत होती है. किसान ज्यादा पैदावार के लिए रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक का खूब प्रयोग कर रहे हैं जिससे जमीन के साथ-साथ पैदा होने वाला अनाज भी पोषण देने की बजाय अब नुकसान पहुंचा रहा है. इसी को ध्यान में रखते हुए पूर्व डिप्टी एसपी शैलेंद्र सिंह ने वैदिक खेती को अपनाया है. उन्होंने किसान तक को बताया कि एक बार फिर से पुरानी संस्कृति को जागृत करने की कोशिश हो रही है. वैदिक खेती में यज्ञ और हवन के माध्यम से वातावरण को शुद्ध किया जाता था. वहीं इससे खेतों में पौधे भी ऊर्जावान होते थे. आज अपने इस खेती के मॉडल में सूर्योदय और सूर्यास्त के समय गाय के गोबर, गाय के देसी घी और चावल के साथ अग्निहोत्र का इस्तेमाल किया जाता है. फिर इससे बनने वाली भस्म को पानी में मिलाकर छिड़काव किया जाता है.
इससे न सिर्फ पौधे ऊर्जावान बनते हैं बल्कि खेतों के आसपास का पूरा वातावरण भी ऊर्जा से युक्त हो जाता है. वे कहते हैं कि सर्दियों में वैदिक खेती के माध्यम से उन्होंने सब्जियों की भरपूर पैदावार ली है. उनके खेतों में टमाटर का वजन 300 से 400 ग्राम तक का है. यहां तक कि फसलों पर किट का प्रभाव भी कम दिखाई दिया है. इस तरह वैदिक खेती में फसल लागत बहुत ही कम रहती है और पैदा होने वाला उत्पादन भी काफी गुणकारी होता है. किसान को इससे बाजार में अच्छा मुनाफा भी मिलता है.
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वैदिक खेती में सूर्योदय और सूर्यास्त के समय अग्निहोत्र होता है. यह एक हवन पद्धति है जिसमें तांबे या मिट्टी के पत्र में गाय के उपलो के उपयोग के साथ-साथ गाय के देसी घी के साथ साबुत चावल का प्रयोग किया जाता है. सूर्योदय के समय, 'सूर्याय स्वाहा, सूर्याय इदं न मम... प्रजापतये स्वाहा, प्रजापतये इदं न मम' मंत्र का पाठ करते हुए आहुति दी जाती है. इसी प्रकार सूर्यास्त...के वक्त अग्नेय स्वाहा, अग्नेय इदं न मम व प्रजापतये स्वाहा, प्रजापतये इदं न मम मंत्रोच्चार कर आहुति की जाती है.
अग्निहोत्र हवन करने के बाद जो रख बच जाती है उसको 24 घंटे तक हिलाया नहीं जाता है. फिर इसका इस्तेमाल खेत में ही होता है. भस्म के इस्तेमाल से फसल में आश्चर्यजनक परिणाम भी दिखाई देने लगते हैं. वही इस भस्म के प्रयोग से ऊर्जा जल भी बनाया जाता है. इस ऊर्जा जल को सिंचाई के साथ पौधों को देने से पौधे ऊर्जा से भरपूर हो जाते हैं जिससे फसल बढ़िया होती है. इस भस्म के प्रयोग से फसल में किट भी नहीं लगते हैं.
पूर्व डिप्टी एसपी शैलेंद्र सिंह बताते हैं कि वैदिक खेती में फसल लागत बहुत ही कम हो आती है. यहां तक कि उत्पादन भी रासायनिक खाद के मुकाबले ज्यादा कम नहीं होता है. वही पैदा होने वाली फसल पोषक तत्वों से भी भरपूर रहती है. बाजार में वैदिक खेती से उत्पन्न होने वाली फसल का भरपूर दाम मिलता है. इस खेती से न सिर्फ किसानों को फायदा हो रहा है बल्कि इससे उत्पादित अनाज के प्रयोग करने से कई तरह की बीमारियां भी ठीक होने लगी हैं.
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