पंजाब में पराली की आग रुकने का नाम नहीं ले रही है. मालवा क्षेत्र की कटाई पूरी होने के बाद माझा में किसान धान कटाई में लगे हैं. इससे पराली की आग के मामलों में वृद्धि देखी जा रही है. हालांकि किसानों ने पुलिस-प्रशासन की कार्रवाई और जुर्माने से बचने के लिए एक तरकीब निकाली है. किसान पराली में आग या तो देर शाम या रात को लगाते हैं ताकि सेटेलाइट में एक्टिव आग की घटनाएं दर्ज न हो सकें. सरकार ने आग की घटनाओं को पकड़ने के लिए सैटेलाइट का सहारा लिया है और इमेज कैप्चर किया जा रहा है. लेकिन किसान इससे बचने के लिए देर शाम या रात को पराली में आग लगा रहे हैं. लुधियाना आसपास के इलाकों में ऐसी घटनाएं ज्यादा हैं.
पराली की आग को कैप्चर करने के लिए इंडियन एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीट्यूट के कॉन्सोर्सियम फॉर रिसर्च ऑन एग्रोइकोसिस्टम मॉनिटरिंग एंड मॉडलिंग फ्रॉम स्पेस को पराली की घटनाओं को कैप्चर करने का काम दिया गया है. यह संस्था 15 सितंबर से आग की घटनाओं को ट्रैक कर रही है. इसके लिए तकनीकी स्तर पर बहुत तैयारी की गई है और हर छोटी-बड़ी घटनाओं की मॉनिटरिंग की जा रही है. फिर उस पूरे डेटा को पर्यावरण मंत्रालय को शेयर किया जाता है.
इस तरह से जुटाए गए डेटा को लुधियाना स्थित पंजाब रिमोट सेंसिंग सेंटर (PRSC) और पटियाला स्थित पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (PPCB) के साथ भी साझा किया जाता है. खेत की एक्टिव आग के बारे में डेटा किसी खास स्थान के साथ जिला प्रमुखों के साथ साझा किया जाता है ताकि पराली जलाने वाले लोगों के खिलाफ कार्रवाई शुरू की जा सके. दिल्ली स्थित CREAMS प्रयोगशाला में कृषि भौतिकी विभाग के प्रमुख वैज्ञानिक और प्रोफेसर डॉ. विनय सहगल ने कहा, "हम सुओमी एनपीपी और MODIS एक्वा सैटेलाइट पर VIIRS से डेटा जुटा रहे हैं. ये सैटेलाइट दोपहर के समय और आधी रात के बाद उस इलाके के रूट को पार करते हैं."
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विनय सहगल ने 'दि ट्रिब्यून' से कहा, "किसानों को इस बारे में पता चल गया है और यही कारण है कि हम शाम और रात के समय खेतों में आग लगने की घटनाओं में तेजी देख रहे हैं. इससे पराली के डैशबोर्ड पर ऐसे मामलों की संख्या में कमी आई है." सवाल यह है कि यह जानकारी किसानों तक कैसे पहुंची.
सूत्रों ने कहा, "शीर्ष अधिकारियों ने निचले स्तर के अधिकारियों को जिम्मेदारी सौंपकर मामले से अपना पल्ला झाड़ लिया है. जिलों में तैनात सरकारी कर्मचारियों को खेतों में आग लगने की घटनाओं को रोकने या एफआईआर और विभागीय चार्जशीट का सामना करने का निर्देश दिया गया है. ऐसा लगता है कि इन कर्मचारियों ने इस कार्रवाई से बचने के लिए किसानों के साथ यह जानकारी साझा की है."
एक सरकारी कर्मचारी ने बताया, "फिलहाल ये सरकारी कर्मचारी आपसी टकराव में फंस गए हैं. जब वे किसानों को पराली जलाने से रोकने के लिए खेतों में घुसते हैं, तो अक्सर तीखी बहस और यहां तक कि झड़प भी हो जाती है. जब वे आधिकारिक आदेशों का पालन करने में नाकाम रहते हैं, तो उन्हें अधिकारियों की शिकायतों का सामना करना पड़ता है."
पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के चेयरमैन आदर्शपाल विग ने किसानों से धान की पराली को आग लगाने से बचने की अपील की है. उन्होंने कहा कि खेतों में आग लगाने वालों को सजा से नहीं बचाया जा सकेगा. उन्होंने कहा, "सैटेलाइट इमेज के अलावा, ऑन-ग्राउंड टीमें भी खेतों में आग लगने की घटनाओं पर नजर रख रही हैं, तस्वीरें खींच रही हैं और अधिकारियों के साथ साझा कर रही हैं."
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पूर्व आईएएस अधिकारी और पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के चेयरमैन काहन सिंह पन्नू, जिन्होंने रिटायरमेंट के बाद खेती करना शुरू किया है, ने कहा, "इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि लगातार सरकारों के प्रयासों के कारण खेतों में आग लगने की घटनाओं में कमी आई है. बड़ी संख्या में किसानों ने पराली जलाने का काम छोड़ दिया है और वे पराली मैनेजमेंट के लिए इन-सीटू और एक्स-सीटू तरीकों को अपना रहे हैं."
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