पश्चिेमी उत्तर प्रदेश में आलू की अगेती बुवाई का वक्त आ गया है. बीजों की बिक्री भी शुरू हो गई है. किसान बुवाई के लिए बाजार के हिसाब से आलू की वैराइटी तय कर रहे हैं. बहुत सारे किसान चिप्स और फ्रेंच फ्राई के बाजार को देखते हुए भी वैराइटी का चुनाव करते हैं. लेकिन चिप्से और फ्रेंच फ्राई के लिए आलू खरीदने वाली कंपनियों के नियम बहुत ही कड़े हैं. बहुत जांच-परख कर वो आलू की खरीद करती हैं. लेकिन इसके अलावा भी आलू का एक बड़ा बाजार है.
इस बाजार में भी आलू किसान मोटी कमाई कर सकते हैं. इसके लिए उन्हें अपना आलू लेकर बाजार में आढ़तियों के चक्कर नहीं काटने होंगे. आलू को चार-पांच रुपये किलो के हिसाब से सस्ता भी नहीं बेचना होगा. जरूरत है इसके लिए खेत में ही एक प्लांट लगाने की. प्लांट की लागत भी कोई बहुत ज्यादा नहीं है.
पंजाब एग्रीकल्चकरल यूनिवर्सिटी (पीएयू), लुधियाना की प्रोफेसर डॉ. पूनम सचदेव ने किसान तक को बताया कि किसान के उगाय सभी आलू चिप्स और फ्रेंच फ्राई में इस्तेमाल नहीं होते हैं. इसलिए किसान बहुत सारा आलू सीधे मंडी में जाकर बेचता है. कई बार किसान को आलू के दाम मुनाफे लायक नहीं मिल पाते हैं. ऐसे में हमारी टेक्नोलॉजी किसान के लिए बहुत फायदेमंद साबित होगी.
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हमने आलू से पाउडर बनाने की टेक्नोलॉजी तैयार की है. इस इंग्रीडेंटस वाले पाउडर से पराठे, समोसे और आलू की टिक्की बेचने वालों का भी वक्त बचेगा. हमारी रिसर्च बताती है कि साल के 12 महीने आलू की सबसे ज्यादा खपत इन्हीं तीन चीजों में सबसे ज्यादा होती है. इसी को ध्यान में रखते हुए इंग्रीडेंटस वाला आलू का पाउडर बनाने की टेक्नोलॉजी तैयार की गई है.
प्रोफेसर डॉ. पूनम सचदेव ने बताया कि अगर किसान चाहे तो वो अपने खेत में इस यूनिट को लगा सकता है. अगर 100 किलो प्रति दिन पाउडर की क्षमता वाली यूनिट की बात करें तो इसकी लागत करीब 15 लाख रुपये आएगी. इसके लिए एक बॉयलर और एक पैकिंग मशीन खरीदनी होगी. और यह लागत भी तब आएगी जब आपके पास बिल्डिंग पहले से ही मौजूद हो. अगर कॉटेज स्केल यूनिट की बात करें तो यह सात लाख रुपये में शुरू हो जाएगी. और अगर पानी और बिजली की सुविधा वाला एक हॉल पहले से तैयार है तो फिर 4.5 लाख रुपये और खर्च करने की जरूरत नहीं होगी.
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डॉ. पूनम ने बताया कि इस टेक्नोलॉजी की मदद से आलू से बनाए गए पाउडर की लाइफ एक साल होगी. आलू की टिक्की, समोसे, पराठे और दूसरे खाने-पीने के सामान का इंग्रीडेंटस आलू के पाउडर में मिलाने के बाद इसे एक साल तक आराम से इस्तेमाल किया जा सकेगा. लेकिन इस यूनिट को तैयार करने के लिए पहले पीएयू से इसकी टेक्नोलॉजी लेनी होगी. इसके लिए एक एमओयू साइन करना होगा. इसकी कीमत करीब 30 हजार रुपये है.
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