
कहते हैं कि भगवान कृष्ण की बंसी की धुन सुनकर गायें दौड़ी चली आती थी. यह कहावत अब वैज्ञानिक दृष्टि से भी सत्य साबित हो रही है. दुनिया भर में हो रहे जलवायु परिवर्तन से दुधारू पशुओं को तनाव रहित रखने के लिए पारंपरिक तरीकों पर शोध किया गया है. ऐसा ही अनूठा शोध करनाल स्थित राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान में किया जा रहा है, जिसमें दुधारू पशुओं को रोजाना बांसुरी और अन्य मधुर संगीत की धुन सुनाई जाती है. अजब बात ये है कि संगीत सुनने वाले पशुओं का न केवल स्वास्थ्य बेहतर हो रहा है. इसके अलावा उन पशुओं का दूध उत्पादन भी बढ़ रहा है.
इस बारे में संस्थान के वरिष्ठ पशु वैज्ञानिक डॉ आशुतोष ने कहा कि काफी समय पहले सुना था कि गायों को संगीत और भजन काफी पसंद होते हैं. हमने जब यह विधि अपनाई तो उसका परिणाम काफी अच्छा निकला है. एक शोध के अनुसार विदेशी गायों के मुकाबले देसी गायों में मातृत्व की भावना अधिक होती है. वहीं उन्होंने कहा कि संगीत की तरंगें गाय के मस्तिष्क में ऑक्सीटोसिन हार्मोंस को सक्रिय करती है और गाय को दूध देने के लिए प्रेरित करती है.
गौरतलब है कि वर्ष 1955 में स्थापना के बाद से एनडीआरआई में पशुओं पर काफी शोध किये जा रहे है. एनडीआरआई में स्थित जलवायु प्रतिरोधी पशुधन अनुसंधान केंद्र में जहां वैज्ञानिक लगातार पशुओं पर प्रयोग कर रहे हैं, कि जिस तरह से वातावरण में बदलाव हो रहा है. उससे पशुधन पर क्या प्रभाव पड़ेगा उस पर लगातार कृषि वैज्ञानिक अध्ययन कर रहे हैं. वहीं देसी गायों की नस्लों पर अलग-अलग प्रकार के प्रयोग किए जा रहे हैं. जिससे दूध की उत्पादकता को बढ़ाया जा सके.
डॉ आशुतोष ने कहा कि जिस तरह से हम पशु को एक ही जगह पर बांध कर रखते हैं, तो वह तनाव में आ जाते हैं और ठीक तरह से व्यवहार नहीं करते, उसी को लेकर हमारे संस्थान में एक रिसर्च चल रही है, जिसमें पशु अपने आपको रिलेक्स फील करता है. हम यहां पर पशुओं को उस तरह का वातावरण दे रहे हैं जिसमें पशु के ऊपर कोई भी दबाव न हो. जिसमें पशुओं को तनाव मुक्त रखने के लिए संगीत और भजन का सहारा लिया जा रहा है, जिसके अच्छे परिणाम सामने आए है.
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