Innovative Farmer: कबाड़ से जुगाड़, बांका के इंजीनियर ने बनाई ऐसी मशीन जिससे खेती का खर्च होगा आधा!

Innovative Farmer: कबाड़ से जुगाड़, बांका के इंजीनियर ने बनाई ऐसी मशीन जिससे खेती का खर्च होगा आधा!

इंजीनियर मोहम्मद कमर तौहीद ने इंजीनियरिंग का असली जादू दिखाते हुए कबाड़ से जुगाड़ कर एक ऐसी 'सुपर मशीन' तैयार की है, जिससे अब खेती में क्रांतिकारी बदलाव आएगा. इस मशीन से किसानों के हजारों रुपये बचेंगे, क्योंकि अब बीज बोने का खर्च आधा हो जाएगा. इस देसी अवतार वाली मशीन की खासियत यह है बहुत कम डीजल में खेत की जुताई होगी, जिससे पुरानी मशीनों की छुट्टी तय है.

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कबाड़ से जुगाड़, बांका के इंजीनियर ने बनाई ऐसी मशीन जिससे खेती का खर्च होगा आधा!बिहार के किसान ने जुगाड़ से बनाई टिलेज मशीन

बिहार के बांका जिले में धान की खेती मुख्य आधार है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से देरी से आता मॉनसून किसानों के लिए बड़ी मुसीबत बन गया है. जब बारिश देर से होती है, तो किसानों के पास बुवाई के लिए बहुत कम समय बचता है. ऐसे में पारंपरिक तरीके से खेत तैयार करना और बीज बोना न केवल थकाऊ है, बल्कि बहुत महंगा भी पड़ता है. इसी समस्या को देख रहे थे मोहम्मद कमर तौहीद, जो पेशे से एक मैकेनिकल इंजीनियर (बीटेक) हैं. उन्होंने देखा कि छोटे और बिखरे हुए खेतों वाले किसानों के लिए बड़े ट्रैक्टर या महंगी मशीनें खरीदना मुमकिन नहीं है. फिर उन्होंने खेती की परिभाषा ही बदल दी.

बिहार के बांका जिले में खेती अब घाटे का सौदा नहीं रहेगी. कमर तौहीद ने अपनी सूझबूझ से एक ऐसी 'पावर टिलर कम जीरो टिलेज मशीन' तैयार की है, जो छोटे और मध्यम किसानों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है. 32 साल के कमर तौहीद ने अपनी इंजीनियरिंग की डिग्री और 7 साल के अनुभव का निचोड़ इस सस्ती और दमदार मशीन में डाल दिया है. यह कहानी केवल एक मशीन की नहीं, बल्कि एक किसान पुत्र के अपने समाज के प्रति समर्पण की है.

इंजीनियर का देसी जुगाड़, तैयार की 'सुपर मशीन

कमर तौहीद की इस मशीन की सबसे बड़ी खासियत इसकी बनावट और लागत है. जहां बाजार में मिलने वाली कमर्शियल जीरो टिलेज मशीनों की कीमत 75,000 रुपये से भी ज्यादा होती है, वहीं उन्होंने इसे मात्र 40,000 रुपये में तैयार कर दिखाया. उन्होंने इसमें 5 हॉर्सपावर का सिंगल सिलेंडर, एयर-कूल्ड डीजल इंजन लगाया है.

सबसे दिलचस्प बात यह है कि उन्होंने इस मशीन को बनाने के लिए अनुपयोगी हो चुके पुराने जीरो टिलेज पुर्जों और स्थानीय स्तर पर उपलब्ध सामानों का इस्तेमाल किया. यह मशीन 5 फीट लंबी और 2.5 फीट चौड़ी है, जिससे इसे छोटे और ऊबड़-खाबड़ खेतों में चलाना बेहद आसान हो जाता है.

बिना टायर वाली 'ऑल-इन-वन' मशीन

इंजीनियर मोहम्मद कमर तौहीद ने इस मशीन में एक बहुत ही समझदारी भरा बदलाव किया है—उन्होंने किसान तक को बताया कि इसमें टायर का झंझट ही खत्म कर दिया है. कमर तौहीद बताते हैं कि बांका जैसी पथरीली जमीन पर टायर बहुत जल्दी घिस जाते हैं और एक-दो साल में ही उन्हें बदलना पड़ता है, जिससे किसान पर फालतू खर्च बढ़ता है.

इसके अलावा, रबर के घिसने से मिट्टी की शुद्धता पर भी बुरा असर पड़ता है. बिना टायर की यह मशीन न केवल मिट्टी को प्रदूषण से बचाती है, बल्कि किसान का मेंटेनेंस खर्च भी जीरो कर देती है. इस मशीन की एक और बड़ी खासियत इसका 'मल्टी-पर्पज इंजन' है. बुवाई का सीजन खत्म होने के बाद किसान इस इंजन को आसानी से खोलकर दूसरे कामों में इस्तेमाल कर सकते हैं. चाहे खेत में पानी चलाना हो, थ्रेशिंग करनी हो या ओसाने का काम—यह इंजन साल भर किसान का साथ निभाएगा. यानी एक बार का निवेश और साल भर का फायदा!

किसानों का डीजल भी बचेगा, पैसा भी

आज के समय में डीजल की बढ़ती कीमतें किसानों की कमर तोड़ रही हैं. लेकिन यह नई मशीन मात्र 600 मिलीलीटर डीजल प्रति घंटे की खपत करती है. इसकी कार्यक्षमता इतनी शानदार है कि एक हेक्टेयर खेत की जुताई और बुवाई का काम केवल 8 से 9 घंटे में पूरा हो जाता है.

पारंपरिक तरीकों में जहां एक हेक्टेयर की बुवाई पर लगभग 11,000 रुपये खर्च होते थे, इस मशीन की मदद से यह खर्च घटकर सिर्फ 4,500 रुपये रह गया है. यानी सीधे तौर पर किसान को हर हेक्टेयर पर 6,500 रुपये की बचत हो रही है. यह बचत छोटे किसानों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है.

सुपर मशीन हर खेत में कारगर

आमतौर पर जीरो टिलेज मशीनें केवल उन खेतों के लिए बनाई जाती हैं जहां पहले जुताई न हुई हो. लेकिन कमर तौहीद ने इसमें एक क्रांतिकारी बदलाव किया है. उनकी मशीन न केवल बिना जुते हुए खेतों में काम करती है, बल्कि उन खेतों में भी बीज बो सकती है जिनकी जुताई पहले ही हो चुकी हो. यह लचीलापन बांका और इसके आसपास के पठारी क्षेत्रों के लिए बहुत जरूरी है, क्योंकि यहां मिट्टी की स्थिति बदलती रहती है. इस एक मशीन के होने से किसानों को अलग-अलग काम के लिए अलग-अलग मशीनें खरीदने या किराये पर लेने की जरूरत नहीं पड़ती.

छोटे किसानों को चौतरफा लाभ 

कमर तौहीद का यह नवाचार केवल एक मशीन नहीं, बल्कि कृषि क्षेत्र में आत्मनिर्भरता का एक मॉडल है. यह मशीन विशेष रूप से छोटे और खंडित भूमि वाले किसानों के लिए बनाई गई है. हालांकि, इसे अभी व्यापक स्तर पर उतारने से पहले विभिन्न मिट्टी की स्थितियों और सुरक्षा मानकों पर वैज्ञानिक मुहर की जरूरत है. 

अगर कृषि विकास एजेंसियां और सरकारी संस्थान इस तकनीक को बढ़ावा दें, तो इसे पूरे बिहार और भारत के अन्य पठारी राज्यों में फैलाया जा सकता है. यह कहानी हमें सिखाती है कि अगर स्थानीय समस्याओं को तकनीक और जुनून के साथ जोड़ा जाए, तो कम खर्च में भी बड़े बदलाव लाए जा सकते हैं.

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