कपास किसान ऐप से किसानों को हो रही परेशानीकॉटन कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (CCI) की ओर से इस सीजन में लॉन्च किया गया ‘कपास किसान’ मोबाइल ऐप पंजाब के किसानों को रास नहीं आ रहा है. किसानों के बीच यह ऐप उम्मीद के मुताबिक लोकप्रिय नहीं हो पा रहा है. आधार-आधारित प्री-रजिस्ट्रेशन सिस्टम की प्रक्रिया किसानों के लिए जटिल साबित हो रही है, जिससे सरकारी खरीद (MSP पर) लगभग ठप है.
राज्य सरकार को उम्मीद थी कि इस सीजन में 3 लाख क्विंटल से ज्यादा कपास मंडियों में आएगा, लेकिन अब तक केवल 4,000 क्विंटल की खरीद ही हो पाई है.
CCI ने शुरुआत में किसानों से कहा था कि वे रेवेन्यू विभाग की ओर से वेरिफाइड गिरदावरी (खेती का रिकॉर्ड) ऐप पर अपलोड करें ताकि वे MSP पर खरीद के लिए पात्र बन सकें. लेकिन किसानों और राज्य सरकार के विरोध के बाद केंद्र ने अक्टूबर के तीसरे हफ्ते में इस नियम में ढील दी.
'इंडियन एक्सप्रेस' की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अब किसानों को Bt कपास बीज सब्सिडी रिकॉर्ड के आधार पर भूमि रिकॉर्ड अपलोड करने की अनुमति है, क्योंकि पंजाब सरकार ने इस साल बीजों पर 33 परसेंट सब्सिडी दी थी और उसके पास पूरी फसल के रकबे का डिजिटल डेटा मौजूद है.
CCI के बठिंडा दफ्तर के एक अधिकारी ने बताया, “ढील दी गई है, लेकिन खरीद केवल ऐप पर किए गए रजिस्ट्रेशन के आधार पर ही होगी. हम 12 प्रतिशत नमी वाले स्टॉक को खरीदने के लिए तैयार हैं.”
सरकारी खरीद में सुस्ती के कारण प्राइवेट खरीदार मंडियों पर हावी हैं. किसान अपनी उपज MSP से कम कीमतों पर निजी व्यापारियों को बेचने को मजबूर हैं.
पंजाब के प्रमुख कपास उत्पादक जिले — मुक्तसर, बठिंडा, मानसा और फाजिल्का — सबसे ज्यादा प्रभावित हैं. राज्य में कपास का कुल रकबा भले पिछले साल से थोड़ा बढ़ा (1.19 लाख हेक्टेयर) हो, लेकिन यह 2019 के 3.35 लाख हेक्टेयर के मुकाबले काफी घट चुका है.
CCI अधिकारियों ने बताया कि जलभराव और बाढ़ से फसल को नुकसान हुआ है, जिससे शुरुआती 2 लाख गांठ (3 लाख क्विंटल से ज्यादा) के अनुमान पर भी संदेह है.
किसानों का कहना है कि ऐप के जरिए खुद से रजिस्ट्रेशन करना तकनीकी रूप से मुश्किल है. BKU (राजेवाल) फाजिल्का के अध्यक्ष सुखमंदर सिंह ने कहा, “कई किसानों के पास बीज सब्सिडी के पुराने बिल नहीं हैं, और ज्यादातर किसान टेक-सेवी नहीं हैं. इसलिए वे ऐप से रजिस्ट्रेशन करने के बजाय प्राइवेट खरीदारों को बेच रहे हैं.”
अबोहर के किसान सुखजिंदर सिंह राजन ने कहा, “रजिस्ट्रेशन के नियमों में ढील सही कदम है, लेकिन सरकार को यह समझना होगा कि किसान CCI के जरिए बेचने से अभी भी क्यों बच रहे हैं.”
CCI अधिकारियों का कहना है कि जैसे ही किसान धान की बिक्री से फ्री होंगे, कपास की सरकारी खरीद में तेजी आएगी. “हमें खरीद में कोई दिक्कत नहीं है. किसानों को बस ऐप से रजिस्ट्रेशन पूरा करना होगा,” अधिकारी ने कहा. हालांकि, जमीनी हकीकत यह है कि किसान अभी भी निजी व्यापारियों के भरोसे हैं, और सरकारी MSP खरीद लगभग ठप है.
एक्सपर्ट कहते हैं कि CCI का ‘कपास किसान’ ऐप डिजिटल ट्रांसपेरेंसी के लिए एक अच्छी पहल जरूर है, लेकिन पंजाब जैसे राज्यों में किसानों की तकनीकी पहुंच और सहज प्रक्रिया की कमी इसे असफल बना रही है.
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