अमेठी और रायबरेली, उत्तर प्रदेश की दो ऐसी हाई प्रोफाइल सीटें जिन पर हर लोकसभा चुनाव में सबकी नजरें रहती हैं. हर कोई जानना चाहता है कि यहां पर कौन जीतेगा और इस बार भी यही हाल है. कांग्रेस की तरफ से तीन मई को राहुल गांधी को रायबरेली से उम्मीदवार घोषित किया गया है. इससे ठीक एक दिन पहले यानी दो मई को ही भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की तरफ से रायबरेली के लिए प्रत्याशी का ऐलान किया गया. पार्टी ने यहां से दिनेश प्रताप सिंह को टिकट दिया है. इन चुनावों में यहां पर क्या नतीजा होगा कोई नहीं जानता लेकिन आंकड़ें और इतिहास दोनों ही कांग्रेस की तरफ इशारा कर रहे हैं.
जिस दिनेश प्रताप सिंह को बीजेपी ने अपना कैंडीडेट घोषित किया है, वह साल 2018 में कांग्रेस छोड़कर पार्टी में आए हैं. वह उत्तर प्रदेश के राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और बीजेपी नेता हैं. 2019 में उनका मुकाबला रायबरेली में सोनिया गांधी से था. दिनेश प्रताप सिंह को उस चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा था. वह पिछले लोकसभा चुनाव में रायबरेली में दूसरे नंबर पर आए थे. दिनेश प्रताप सिंह पहली बार साल 2010 में और दूसरी बार 2016 में कांग्रेस से विधान परिषद के सदस्य बने थे. फिर उन्होंने पार्टी को अलविदा कह दिया और बीजेपी का दामन थाम लिया. साल 2022 में दिनेश प्रताप सिंह बीजेपी के टिकट पर रिकॉर्ड वोटों से जीतकर तीसरी बार एमएलसी बने थे.
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बीजेपी की ओर से रायबरेली से उम्मीदवार बनाए जाने के बाद दिनेश प्रताप सिंह ने कहा, 'मैं देश को आश्वस्त करता हूं कि रायबरेली से 'नकली' गांधी परिवार की विदाई तय है. यह तय है कि बीजेपी का 'कमल' खिलेगा और कांग्रेस हारेगी.' दिनेश प्रताप सिंह इस बार जीत के लिए किस कदर आश्वस्त हैं इस बात का अंदाजा उनके एक बयान से ही लगाया जा सकता है. उम्मीदवारी के ऐलान के बाद उन्होंने कहा था, 'मैंने चार बार की सांसद सोनिया गांधी के खिलाफ भी चुनाव लड़ा है. इसलिए प्रियंका, राहुल गांधी मेरे लिए महत्वपूर्ण नहीं हैं. जो भी गांधी रायबरेली आएंगे, वे हारेंगे.'
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रायबरेली हमेशा से कांग्रेस का गढ़ रहा है. कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने साल 2004 में रायबरेली से चुनाव लड़ा था. वहीं राहुल के लिए यह पहला मौका होगा जब वह रायबरेली से चुनाव लड़ेंगे. साल 1952 में पहली बार रायबरेली लोकसभा सीट अस्तित्व में आई थी. आंकड़ों के हिसाब से कांग्रेस अभी तक यहां पर सबसे सफल पार्टी रही है. लोकसभा चुनावों में जहां कांग्रेस को 17 बार जीत हासिल हुई और उसका विनिंग परसेंटेज 85 फीसदी रहा तो वहीं बीजेपी को सिर्फ दो बार ही जीत मिली है. बीजेपी की जीत का प्रतिशत सिर्फ 10 फीसदी ही है. जबकि एक बार जनता पार्टी के उम्मीदवार को जीत मिली है.
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सन् 1957 में यहां पर फिरोज गांधी को 162,595 वोटों से जीत मिली थी. सन्1971 में इंदिरा गांधी ने यहां पर चुनाव लड़ा और उन्हें 183,309 वोट मिले थे. सन् 1977 में जो चुनाव हुए तो उसके नतीजों पर इमरजेंसी का असर नजर आया. वोटर्स ने जनता पार्टी के उम्मीदवार राजनारायण को विजयी करवाया. हालांकि 1980 में हुए उपचुनावों में कांग्रेस के अरुण नेहरु की जीत के साथ सीट फिर से कांग्रेस के पास आ गई.
सन् 1996 और 1998 के चुनावों में यहां पर बीजेपी उम्मीदवार अशोक सिंह को जीत मिली थी. लेकिन 1999 से यह सीट कांग्रेस के ही पास है. आंकड़ें तो यही कहते हैं कि शायद राहुल को इस सीट पर कांग्रेस पार्टी के लिए बने मजबूत जनाधार का फायदा मिल जाए. दिनेश प्रताप सिंह का रिकॉर्ड यहां पर सेकेंड आने का रहा है. ऐसे में इस बार चुनाव में इस सीट पर रोमांचक मुकाबला देखने को मिल सकता है.
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