इस बार महाराष्ट्र के बारामती में लोकसभा चुनावों के लिए जब वोट डाले जाएंगे तो एक परिवार की प्रतिष्ठा दांव पर लगेगी. पवार फैमिली का गढ़ बारामती इस बार ननद-भाभी के बीच चुनावी मुकाबले का गवाह बनेगा. शनिवार को अजित पवार के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) ने बारामती से सुनेत्रा पवार को उतारने का ऐलान कर दिया है. वहीं शरद पवार के गुट से सुप्रिया सुले यहां से मैदान में उतरेंगी. जहां सुप्रिया, चौथी बार बारामती में अपनी किस्मत आजमाएंगी तो वहीं सुनेत्रा के लिए यह लोकसभा चुनाव पहला मौका होने वाले हैं. आइए जानते हैं कि आखिर कौन हैं सुनेत्रा पवार जो सुप्रिया सुले को टक्कर देंगी.
अजित पवार की पत्नी सुनेत्रा भी एक राजनीतिक परिवार से आती हैं. उनके भाई पदम सिंह पाटिल वरिष्ठ राजनीतिज्ञ और पूर्व मंत्री हैं. सुनेत्रा और अजित पवार के दो बेटे हैं- जय और पार्थ पवार. कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक जय पारिवारिक व्यवसाय देखते हैं तो वहीं पार्थ, राजनीतिक महत्वाकांक्षा रखते हैं. वह साल 2019 में मावल से लोकसभा चुनाव हार गए थे. सुनेत्रा पवार बारामती में अपने सामाजिक कार्यों के लिए जानी जाती हैं. उनकी आधिकारिक वेबसाइट पर अगर यकीन करें तो सुनेत्रा पवार साल 2010 में स्थापित एक एनजीओ एनवायर्नमेंटल फोरम ऑफ इंडिया की संस्थापक हैं. वह भारत में इको-विलेज की अवधारणा को विकसित करने में एक मार्गदर्शक थीं.
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वेबसाइट के मुताबिक सुनेत्रा पवार स्वदेशी और प्रसिद्ध शैक्षणिक संस्थान विद्या प्रतिष्ठान के लिए ट्रस्टी के रूप में काम करती हैं. साथ ही वह साल 2011 से फ्रांस में विश्व उद्यमिता मंच की थिंक टैंक सदस्य भी रही हैं. ऐसा कहा जा रहा है कि अजीत पवार पिछले काफी समय से बारामती में सुनेत्रा के काम का सक्रिय रूप से समर्थन कर रहे हैं. कुछ महीने पहले उनकी तस्वीरों वाला एक प्रचार वाहन बारामती में देखा गया था. इसके अलावा दोनों की तस्वीरों वाले फ्लेक्स बैनर भी गाड़ियों पर चिपके नजर आए थे. तब से ही इस बात को हवा मिलने लगी थीं कि सुनेत्रा इस बार बारामती से चुनाव लड़ सकती हैं. एनसीपी नेता सुनील तटकरे की मानें तो चुनाव को पारिवारिक झगड़ा न समझा जाए बल्कि इसे 'विचारधाराओं के टकराव' के तौर पर देखा जाए.
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बारामती लोकसभा सीट पिछले 55 सालों से ज्यादा समय से पवार परिवार का गढ़ रही है. शरद पवार ने सन् 1967 में पहली बार बारामती से महाराष्ट्र का विधानसभा चुनाव जीता था. इसके बाद उन्होंने 1972, 1978, 1980, 1985 और 1990 के विधानसभा चुनावों में भी यह सीट बरकरार रखी. बाद में सुप्रिया सुले ने कमान संभाली और साल 2009 से इस सीट पर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. इसके बाद उन्होंने 2014 और 2019 में भी चुनावों में जीत हासिल की. इसके साथ ही उन्होंने लोकसभा चुनाव में जीत की हैट्रिक भी लगा डाली.
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