भारत में जल्द ही 18वीं लोकसभा के लिए चुनाव होने हैं और अब तक 17 बार देश आम चुनावों से गुजर चुका है. देश में पहला चुनाव सन् 1952 में हुआ था. भारत के लोकतंत्र को दुनिया में एक मिसाल के तौर पर माना जाता है लेकिन चार बार ऐसे भी मौके आए जब यहां भी मध्यावधि चुनाव हुए और राजनीतिक अनिश्चितता रही. मध्यावधि चुनाव यानी जब सरकार बहुमत गंवा दे और उसे सत्ता छोड़नी पड़े. भारत में चार बार ऐसा हुआ है जब सरकारें अपना कार्यकाल पूरा किए बिना ही गिर गईं. यूं तो हर मध्यावधि चुनावों के पीछे की कहानी काफी दिलचस्प रही लेकिन सन् 1977 के चुनाव काफी खास हो गए थे.
भारत में 10 बार केंद्र में कांग्रेस की सरकार बनी है. इनमें जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में तीन चुनाव सन् 1952, 1957 और 1962, इंदिरा गांधी के नेतृत्व में तीन चुनाव सन् 1967, 1971, और1980, राजीव गांधी के नेतृत्व में सन् 1984 का एक चुनाव, पी.वी. नरसिम्हा राव के नेतृत्व में सन् 1991 का एक चुनाव (1991), मनमोहन सिंह के नेतृत्व में दो चुनाव सन् 2004 और 2009 में कांग्रेस ने चुनाव जीता और सरकार बनाई. लेकिन सन् 1977, 1989, 1996 और 1998 के चुनाव ऐसे थे जिनमें लोकसभा अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी. इसकी वजह से सन् 1980, 1991, 1998 और 1999 में भारत में मध्यावधि चुनाव कराने पड़ गए थे.
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सन् 1977 के आम चुनावों को भारत के लिए एतिहासिक करार दिया जाता है. उस समय जनता पार्टी ने कांग्रेस को हरा दिया था. इसके साथ ही मोरारजी देसाई स्वतंत्र आधुनिक भारत के इतिहास में पहले गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री बने और देश में पहली बार गैर-कांग्रेसी सरकार बनी. वह भारत के चौथे प्रधानमंत्री थे. वह चुनाव छठी लोकसभा के सदस्यों का चुनाव करने के लिए था. 16 से 20 मार्च तक देश में वोट डाले गए.
आपातकाल के दौरान हुए चुनावों में बाद जनता ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था. उन चुनावों में मौजूदा प्रधानमंत्री और कांग्रे पार्टी की नेता इंदिरा गांधी रायबरेली में अपनी सीट हार गईं थी. जबकि उनके बेटे संजय अमेठी में अपनी सीट हार गए।आपातकाल को हटाकर लोकतंत्र की बहाली के आह्वान को विपक्षी जनता गठबंधन की जीत की अहम वजह माना जाता है. इसके नेता मोरारजी देसाई ने 24 मार्च को भारत के चौथे प्रधान मंत्री के रूप में शपथ ली थी. 81 साल की उम्र में, देसाई भारत के प्रधानमंत्री चुने जाने वाले सबसे उम्रदराज व्यक्ति बन गए थे.
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