भारत में कृषि उपज के लिहाज से हर इलाके की किसी न किसी खास फसल की अपनी एक अलग ही पहचान है. वैसे तो बुंदेलखंड को खेती किसानी के लिहाज से बदहाल माना जाता रहा है, लेकिन इस इलाके की जलवायु, कठिया गेहूं के लिए मुफीद होने के कारण देसी किस्म के इस गेहूं का बुंदेलखंड में भरपूर उत्पादन होता है. हालांकि अधिक उपज पाने के लालच में इस इलाके के किसानों ने हाइब्रिड किस्म के गेहूं की आंधी में कठिया गेहूं को भुला दिया था. सेहत के लिए सबसे अच्छे अन्न की श्रेणी में रखे गए कठिया गेहूं के दिन अब जल्द बदलेंगे. इसके पीछे योगी सरकार की One District one Product Scheme कारगर साबित हुई है. इस योजना के तहत बुंदेलखंड के झांसी जिले की खास उपज के रूप में कठिया गेहूं को शामिल कर इसे जीआई यानी Geographical Identification Tag से लैस कर अब इसे वैश्विक पहचान देने की कवायद तेज हुई है. इससे किसानों और उपभोक्ताओं को लाभ होने के साथ ही गेहूं की इस देसी किस्म का भी पुनरुद्धार होगा.
गेहूं सहित अन्य फसलों के Hybrid Seeds की आंधी में पिछले कुछ दशकों से देसी किस्म के कठिया गेहूं और तमाम अन्य स्थानीय फसलों का वजूद ही संकट में पड़ने लगा था. इस संकट से Indigenous Species को बचाने के लिए यूपी में योगी सरकार ने केंद्र सरकार के साथ मिलकर ओडीओपी योजना को कारगर हथियार बनाया. इसके तहत सिद्धार्थनगर का काला नमक चावल और बुंदेलखंड के कठिया गेहूं सहित अन्य कृषि उत्पादों को वैश्विक पहचान मिलने का रास्ता साफ हुआ है.
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बुंदेलखंड इलाके में कठिया गेहूं उपजाने वाले किसानों की संख्या बहुत सीमित होने के कारण पिछले कुछ दशकों में इसका बाजार बहुत सिकुड़ गया था. इस गेहूं के बेहतरीन गुणों को जानने वाले लोग ही किसानों से सीधे इसकी खरीद कर लेते हैं. कठिया गेहूं के बारे में लोगों की जानकारी समय के साथ कम होते जाने से भी बाजार में इसकी मांग बहुत कम रह गई थी.
झांसी के जिला कृषि अधिकारी केके सिंह ने बताया कि कठिया गेहूं के दलिया को ओडीओपी योजना के माध्यम से नई पहचान देने की कोशिश अब रंग ला रही है. विभाग द्वारा इसका प्रचार प्रसार किए जाने के कारण लोगों में जागरूकता आने से बाजार में इसकी मांग भी बढ़ने लगी है.
झांसी के मुख्य विकास अधिकारी जुनैद अहमद का कहना है कि NABARD की ओर से कठिया गेहूं को जीआई टैग दिलाने की कवायद 2021 में शुरू की थी. लंबी प्रक्रिया के बाद इस उपज के लिए जीआई टैग मिल गया है. अब इसकी वैश्विक पहचान बनने से किसान भी इसे उपजाने के लिए प्रेरित होंगे. उन्होंने भरोसा दिलाया कि आने वाले सालों में कठिया गेहूं का रकबा और उपज, दोनों में इजाफा होना तय है.
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सिंह ने बताया कि गेहूं की Nutritional Value के लिहाज से कठिया गेहूं में सामान्य गेहूं की तुलना में ज्यादा पौष्टिक तत्व मौजूद होते हैं. इसका दलिया भी अन्य किस्म के गेहूं की तुलना में पाचक और पोषण से भरपूर होता है.
उन्होंने कहा कि कठिया गेहूं की बाजार कीमत भी दूसरे किस्म के गेहूं की तुलना में लगभग 1000 रुपये ज्यादा होती है. सामान्य गेहूं जब 2500 से 2700 रुपये प्रति कुंतल कीमत पर बिकता है, तब कठिया गेहूं 3500 से 3800 रुपये प्रति कुंतल कीमत पर बिकता है. रोचक बात यह है कि कठिया गेहूं को उपजाने में मात्र एक सिंचाई की जरूरत होती है, वहीं अन्य किस्मों के गेहूं की खेती में 3 बार पानी देना पड़ता है. इसलिए इसकी Production Cost यानी उपज की लागत सामान्य गेहूं की तुलना में कम है.
इसके बावजूद कठिया गेहूं की मांग के मुताबिक आपूर्ति नहीं हो पाती है, इसलिए इसकी बाजार कीमत ज्यादा है. सिंह ने कहा कि अभी कुछ स्थानीय कंपनियां कठिया गेहूं का दलिया बनाकर यूपी, एमपी, राजस्थान, गुजरात और दिल्ली सहित अन्य राज्यों में इसकी सप्लाई करती हैं. उन्होंने भरोसा दिलाया कि जीआई टैग मिलने से इसका उत्पादन और मांग दोनों बढ़ेगी. खासकर सरकार की ओर से FPO से जुड़े किसानों को विदेशों तक इसकी आपूर्ति करने का मौका मिलेगा. इससे भविष्य में कठिया गेहूं के बाजार का आकार बढ़ने से किसानों और उपभोक्ताओं को लाभ मिलना तय है.
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