उत्तर प्रदेश के 50 लाख से अधिक गन्ना उगाने वाले किसानों के परिवारों में गन्ना और मिठास घोलेगा. इसके लिए योगी सरकार-02 में अगले पांच साल के लिए मुकम्मल रणनीति तैयार की थी. समग्रता में बनी इस रणनीति में मिलों का आधुनिकीकरण, डिस्टलरी प्लांट, सल्फर मुक्त चीनी का उत्पादन से लेकर गन्ने के उपज से लेकर रकबा और चीनी का परता बढ़ाने पर चरणबद्ध तरीके से जो कार्ययोजना तैयार की गई थी उसपर लगातार अमल हो रहा है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की इस पर सीधी नजर है. समय समय पर वह इसकी समीक्षा भी करते हैं. मई के पहले हफ्ते में विभागीय समीक्षा के दौरान उन्होंने तय कार्ययोजना की प्रगति जानने के साथ कई निर्देश दिए थे. इन सारे प्रयासों का नतीजा भी रिकॉर्ड उपलब्धियों के नजर आ रहा है.
योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के पहले गन्ना मूल्य का बकाया संबंधित किसानों के लिए बड़ी समस्या थी. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गन्ना उत्पादक जिलों में तो यह राजनीति की दशा एवं दिशा तय करती थी. योगी सरकार ने अपने पहले ही कार्यकाल से इसपर सर्वाधिक फोकस किया. भुगतान की प्रक्रिया को समयबद्ध और पारदर्शी बनाया. नतीजतन उनके कार्यकाल में अब तक गन्ना किसानों को 2,85,994 करोड़ रुपये का भुगतान हो चुका था. यह 1995-2017 के 2,13,520 करोड़ रुपए की तुलना में 72,474 करोड़ रुपए अधिक है. वर्ष 2024-25 में निर्धारित 34,466.22 करोड़ में से 83.8 फीसद (2,85,994 करोड़ रुपए) का भुगतान हो चुका था। सरकार भुगतान चक्र को और सुचारु बनाने का भी प्रयास कर रही है.
समयबद्ध और पारदर्शिता पूर्ण भुगतान की वजह से गन्ने की खेती की ओर किसानों का आकर्षण बढ़ा है. 8 साल में खेती के क्षेत्रफल में करीब 44 फीसद की वृद्धि इसका प्रमाण है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक गन्ना क्षेत्रफल 20.54 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 29.51 लाख हेक्टेयर हुआ. गन्ने के क्षेत्रीय विस्तार की 2016-17 में गन्ने की फसल का क्षेत्रफल 20.54 लाख हेक्टेयर था, जो 2024-25 में बढ़कर 29.51 लाख हेक्टेयर हो गया है. या वृद्धि 8.97 लाख हेक्टेयर या 44 फीसद की है. इसी अवधि में प्रति हेक्टेयर उत्पादकता 72.38 टन से बढ़कर 84.10 टन तक पहुंच गई.
मुख्यमंत्री के मुताबिक प्रदेश में गन्ने के उत्पादन और उत्पादकता में दो गुना वृद्धि की पूरी संभावना है. इसके लिए सुनियोजित प्रयास किए जाने चाहिए. इसके लिए भुगतान की पारदर्शिता एवं समयबद्धता के तकनीक आधारित नवाचार की जरूरत है. यूं भी विभाग गन्ने की खेती को और लाभदायक बनाने के लिए सीजन के अनुसार सहफसली खेती के प्रति किसानों को लगातार जागरूक कर रहा है.
एथेनॉल की वजह से एक्सपर्ट्स गन्ने को भविष्य का ग्रीन गोल्ड कहते हैं. जिस तरह भविष्य में की जरूरत बढ़नी है उसके लिए ऊर्जा सुरक्षा और किसानों की आय बढ़ाने के लिए एथेनॉल का उत्पादन बढ़ाना अपरिहार्य है. साथ ही गन्ने की खेती को किसानों के लिए लाभकारी बनाने के लिए भी जरूरी. विभागीय समीक्षा बैठक में भी मुख्यमंत्री ने ईंधन मिश्रण में एथेनॉल अनुपात बढ़ाने की योजनाओं को शीघ्र क्रियान्वित करने के निर्देश दिए थे. इन्हीं सब संभावनाओं के मद्देनजर योगी सरकार इसका उत्पादन बढ़ाने पर लगातार जोर भी दे रही है.
सरकारी आंकड़ों के अनुसार 2023-24 में राज्य की 102 सक्रिय डिस्टिलरियों से 150.39 करोड़ लीटर एथेनॉल का उत्पादन हुआ है. साथ ही, निजी निवेश से 6,771.87 करोड़ रुपये की लागत से अतिरिक्त 105.65 करोड़ लीटर उत्पादन क्षमता स्थापित की जा रही है.
2017 में योगी सरकार ने सत्ता संभालते ही किसानों को मुख्य एजेंडे में रखते हुए सभी बंद पड़ी चीनी मिलों को शुरू कराया साथ ही डेढ़ दर्जन से अधिक चीनी मिलों की क्षमता बढ़ाई. पिपराइच, मुंडरेवा, रमाला में नई चीनी मिलें शुरू कीं. रमाला (बागपत) की पेराई क्षमता 2,750 टीसीडी से 5,000 टीसीडी कर 27 मेगावाट को-जनरेशन प्लान्ट की स्थापना की गई. आज प्रदेश के 45 जिलों में 122 चीनी मिलें, 236 खांडसारी, 8,707 कोल्हू , 65 कोजेन और 44 डिस्टिलरी इकाइयां सक्रिय हैं. इनकी कुल क्रशिंग (पेराई) क्षमता 7,856 केएलपीडी है. इन इकाइयों से प्रत्यक्ष रूप से 9.81 लाख लोगों को रोजगार प्राप्त हो रहा है.
उल्लेखनीय है कि वैश्विक महामारी कोरोना के दौरान. ही मुख्यमंत्री ने गन्ना किसानों के हितों का पूरा ख्याल रखा. उनके ही निर्देश पर लॉकडाउन के बावजूद यूपी की सभी मिलें पूरी क्षमता से चलीं और चीनी उत्पादन का देश में रिकॉर्ड बनाया. जहां एक ओर महाराष्ट्र, राजस्थान और पंजाब की चीनी मिलें कोरोना काल में बंद रहीं वहीं योगी सरकार ने उत्तर प्रदेश में एक भी चीनी मिल कोरोना काल में बंद नहीं होने दी.
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