देश में चना और चने दाल की कीमतों में लगातार इजाफा हो रहा है, जबकि भारत दुनिया का सबसे बड़ा चना उत्पादक है. दरअसल, ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि एक साल में ही चने के उत्पादन में 12.28 लाख मीट्रिक टन की गिरावट दर्ज की गई है. केंद्रीय कृषि मंत्रालय के मुताबिक 2023-24 के दौरान देश में 110.39 लाख मीट्रिक टन चने का उत्पादन हुआ था, जबकि पिछले साल 122.67 लाख टन चना पैदा हुआ था. इसलिए चने और चने की दाल के दाम में तेजी कायम है. बहरहाल, अब दालों की बढ़ती कीमत के बीच केंद्र सरकार ने उपभोक्ताओं को राहत देने के लिए एक बड़ा कदम उठाया है. अब सरकार ने सिर्फ 70 रुपये प्रति किलोग्राम के भाव पर चना दाल बेचने का फैसला लिया है. जबकि बाजार भाव 123 रुपये प्रति किलो है.
उपभोक्ताओं को अगर सस्ता चना और चने की दाल चाहिए तो उन्हें एनसीसीएफ, नेफेड और केंद्रीय भंडार के स्टोर पर जाना पड़ेगा. जहां पर बाजार भाव से 53 रुपये सस्ती चना दाल मिलेगी. यही नहीं अब सरकार ने 58 रुपये प्रति किलोग्राम के रेट पर चना उपलब्ध करवाएगी. इसके लिए सरकार मूल्य स्थिरीकरण बफर से 3 लाख टन चना स्टॉक को भारत ब्रांड से बेचेगी. चने के अलावा, सरकार ने भारत ब्रांड में ही मूंग और मसूर दालों को भी शामिल किया है. भारत मूंग दाल 107 रुपये प्रति किलोग्राम और भारत मूंग साबुत 93 रुपये प्रति किलोग्राम पर बेची जाएगी. जबकि भारत मसूर दाल को 89 रुपये प्रति किलोग्राम के भाव से बेची जाएगी. हालांकि, उपभोक्ता मामले मंत्रालय को देखना यह होगा कि यह कोशिश सिर्फ सरकारी रस्म अदायगी भर बनकर न रह जाए.
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उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्री प्रहलाद जोशी ने नई दिल्ली में एनसीसीएफ, नेफेड और केंद्रीय भंडार की मोबाइल वैन को हरी झंडी दिखाकर दिल्ली-एनसीआर के क्षेत्रों के लिए रवाना किया. उन्होंने भारत चना दाल दूसरे चरण की शुरुआत की. जोशी ने कहा कि चावल, आटा, दाल और प्याज जैसे बुनियादी खाद्य पदार्थों को सरकार उपभोक्ताओं तक रियायती भाव पर उपलब्ध करवाने की कोशिश कर रही है.
जोशी ने कहा कि दालों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए केंद्र ने कई नीतिगत कदम उठाए हैं. घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने हर साल दालों के एमएसपी में बढ़ोतरी की है. साल 2024-25 सीजन में तुअर, उड़द और मसूर के लिए बिना किसी तय सीमा के खरीद नीति की घोषणा भी की है. खरीफ 2024-25 बुवाई सीजन के दौरान एनसीसीएफ और नेफेड ने सुनिश्चित खरीद के लिए जागरूकता अभियान, बीज वितरण और किसानों का पूर्व-पंजीकरण किया था. आगामी रबी बुवाई सीजन में भी इन गतिविधियों को जारी रखा जा रहा है.
घरेलू उत्पादन को बढ़ाने और निर्बाध आपूर्ति के लिए, सरकार ने 31 मार्च, 2025 तक तुअर, उड़द, मसूर और चना के शुल्क रहित आयात और 31 दिसंबर, 2024 तक पीली मटर के आयात की अनुमति दी है. इस वर्ष खरीफ दालों के बढ़े हुई क्षेत्र कवरेज और आयात की वजह से जुलाई, 2024 से अधिकांश दालों की कीमतों में गिरावट का रुख देखने को मिला है. पिछले तीन महीनों के दौरान तुअर दाल, उड़द दाल, मूंग दाल और मसूर दाल की खुदरा कीमतों में या तो कमी आई है या वे स्थिर रही हैं.
भारत दुनिया का सबसे बड़ा दाल उत्पादक है, इसके बावजूद आयातक भी है. वजह यह है कि मांग और आपूर्ति में काफी अंतर है. नीति आयोग की एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2021-22 में दालों की मांग 267.2 लाख टन थी, जबकि आपूर्ति 243.5 लाख टन ही थी. यानी तब मांग और आपूर्ति में तब 23.7 लाख टन का गैप था. यह सिलसिला आज भी कायम है. इसलिए भारत को दालों का आयात करना पड़ रहा है, जिसकी वजह से इसकी महंगाई उपभोक्ताओं को परेशान कर रही है.
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