देश में 400 लाख हेक्टेयर में धान की खेती होती है. जिनमें से इस बार 237.58 लाख हेक्टेयर में रोपाई हो चुकी है. अब समय है रोपे गए पौधों का ख्याल रखने का. क्योंकि इसकी खेती में कई सारे रोग लगते हैं. धान 35 दिन का होने तक इसमें झोंका रोग (Rice Blast) और शीथ ब्लाइट यानी झुलसा रोग (Sheath Blight Disease) लगता है. यह धान की फसल का मुख्य रोग है जो एक पाइरीकुलेरिया ओराइजी नामक फफूंद से फैलता है. इसलिए इससे फसल को बचाने की जरूरत है. इस रोग से फसल को बचाने के लिए अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र या फिर किसी कृषि वैज्ञानिक से सलाह लेकर इसे खत्म करने वाले फंगीसाइड का इस्तेमाल करें. धान की खेती में लगने वाली बीमारियों में झोंका, झुलसा, भूरा धब्बा और आभासी कंड आदि की समस्या होती है.
सबसे पहले हम झोंका रोग की बात करते हैं. इस रोग में पत्तियों में आंख जैसे धब्बे बनते हैं. वो बढ़ता है और पत्तियां जल जाती हैं. जब बाली आती है तो वहां स्पॉट पड़ता है और बाली टूट जाती है. इसके लक्षण पौधे के अधिकांश भागों पर दिखाई देते हैं. परंतु सामान्य रूप से पत्तियां इस रोग से अधिक प्रभावित होती हैं. शुरुआती लक्षण यह है कि पौधे की निचली पत्तियों पर धब्बे दिखाई देते हैं. जब ये धब्बे बड़े हो जाते हैं तो ये धब्बे नाव या आंख की जैसी आकृति के जैसे हो जाते हैं. इन धब्बों के किनारे भूरे रंग के तथा मध्य वाला भाग राख जैसे रंग का होता है. बाद में धब्बे आपस में मिलकर पौधे के सभी हरे हिस्सों को ढक लेते हैं, जिससे फसल जली हुई दिखने लगती है.
इसके नियत्रण के लिए पत्तियों पर इस रोग के लक्षण दिखाई देते ही कासु बी 3% एल. 400-600 मिली/ एकड़ या गौडीवा सुपर 29.6 % एस.सी. 200 मिली प्रति एकड़ का छिड़काव कर सकते हैं. यह फंगीसाइड है. एक एकड़ की लागत 600 से 650 रुपये आएगी. धानुका एग्रीटेक ने किसानों के लिए इतना दाम रखा हुआ है.
झुलसा एक फफूंद जनित रोग है, जिसका रोग कारक राइजोक्टोनिया सोलेनाई है. अधिक पैदावार देने वाली एवं अधिक उर्वरक उपभोग करने वाली प्रजातियों के विकास से यह रोग धान के रोगों में अपना प्रमुख स्थान रखता है. इसका इतना असर है कि उपज में 50 प्रतिशत तक नुकसान कर सकता है.
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शीथ ब्लाइट: यह बीमारी (Sheath blight) होने पर तने में चॉकलेट रंग के धब्बे बनते हैं. बढ़कर पौधे को गला देते हैं. इस रोग का संक्रमण नर्सरी से ही दिखना शुरू हो जाता है. जिससे पौधे नीचे से सड़ने लगते हैं. मुख्य खेत में ये लक्षण कल्ले बनने की अंतिम अवस्था में प्रकट होते हैं. लीफ शीथ पर जल सतह के ऊपर से धब्बे बनने शुरू होते हैं. इन धब्बों की आकृति अनियमित तथा किनारा गहरा भूरा व बीच का भाग हल्के रंग का होता है. पत्तियों पर घेरेदार धब्बे बनते हैं. कई छोटे-छोटे धब्बे मिलकर बड़ा धब्बा बनाते हैं. इसके कारण शीथ, तना, ध्वजा पत्ती पूर्ण रूप से ग्रसित हो जाती है और पौधे मर जाते हैं. खेतों में यह रोग अगस्त एवं सितंबर में अधिक तीव्र दिखता है. संक्रमित पौधों में बाली कम निकलती है तथा दाने भी नहीं बनते हैं.
इस रोग के प्रारंभिक लक्षण दिखते ही लस्टर 37.5 % एस.ई. 484 मिली प्रति एकड़ का छिड़काव करें. एक और विकल्प है. इसके लिए शीथमार 3% एल 360 मिली प्रति एकड़ या गौडीवा सुपर 29.6% एससी 200 मिली का छिड़काव करें. दवाओं का छिड़काव मौसम साफ होने पर ही करें. वरना छिड़कांव बेकार हो जाएगा. लस्टर 384 एमएल प्रति एकड़ की दर से लगेगा. धान की फसल को विभिन्न क्षतिकर कीटों जैसे तना छेदक, गुलाबी तना छेदक, पत्ती लपेटक, धान का फूदका व गंधीबग द्वारा नुकसान पहुंचता है.
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