गन्ना सदियों से भारतीय उपमहाद्वीप में मुख्य फसल के रूप में उगाया जाता रहा है. इसकी खेती 110 से अधिक देशों में की जाती है. ब्राजील और भारत मिलकर विश्व के गन्ना उत्पादन का 50 प्रतिशत उत्पादन करते हैं. भारत गन्ना उत्पादन के मामले में यह दुनिया में दूसरे स्थान पर है. कृषि क्षेत्र हमारे देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में गुणात्मक सुधार लाने में प्रमुख भूमिका निभाता है. चीनी और कपास उद्योग के बाद, चीनी दूसरा सबसे बड़ा कृषि-आधारित उद्योग है जो न केवल 60 लाख से ज्यादा किसानों को आजीविका प्रदान करता है न केवल उनके परिवारों को रोजगार प्रदान करते हैं, बल्कि उनकी आर्थिक समृद्धि और खुशहाली के लिए आवश्यक संसाधन जुटाने में भी सहायक होते हैं.
इसके अलावा, चीनी मिलें रोजगार भी प्रदान करती हैं. ऐसे में गन्ने की खेती कर रहे किसानों को भी कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. कई बाद गन्ने की फसल में कुछ ऐसे रोग लग जाते हैं जो ना सिर्फ गन्ने की फसल बल्कि गुणवत्ता को भी प्रभावित करते हैं. इन्हीं रोगों में से एक है गन्ने में लोहे की कमी. क्या हैं इसके लक्षण और किसान कैसे कर सकते हैं इसको दूर आइए जानते हैं.
गन्ने की वृद्धि और विकास के लिए सूक्ष्म पोषक तत्वों की बहुत कम मात्रा में आवश्यकता होती है. गन्ने के लिए आवश्यक पोषक तत्व लोहा, मैंगनीज, तांबा, जस्ता, बोरान, मोलिब्डेनम और क्लोरीन हैं. यदि इन तत्वों की उपलब्धता बहुत कम हो तो पौधे कई अलग-अलग लक्षणों द्वारा इनकी कमी दर्शाते हैं और पौधे की वृद्धि प्रभावित होती है.
ये भी पढ़ें: मक्के और गन्ने की खेती के लिए मिलेगी सब्सिडी, किसान ऐसे उठाएं लाभ
गन्ने की फसल में लोहे की कमी होने पर पूरी पत्ती पीली पड़ने लगती है. इसके बाद पत्ती की पूरी लंबाई पर बारी-बारी से हरी और पीली धारियां विकसित होने लगती हैं. इसे अंग्रेजी में इंटरवेनल क्लोरोसिस कहते हैं. अंततः पूरी पत्ती पीली हो जाती है. इस कमी के लक्षण सबसे पहले नई पत्तियों में दिखाई देते हैं, क्योंकि पौधे के अंदर आयरन का पुनः अवशोषण नहीं हो पाता है. इसकी कमी का असर गन्ने और नई फसलों पर ज्यादा दिखाई देता है. क्लोरोसिस के कारण पौधे बौने हो जाते हैं तथा कभी-कभी प्रभावित गुच्छे सूख जाते हैं.
लोहे की कमी का इलाज करने के लिए, 0.1 प्रतिशत साइट्रिक एसिड के साथ 1.0 से 2.5 प्रतिशत फेरस सल्फेट मिलाएं और लक्षण गायब होने तक हर हफ्ते घोल का छिड़काव करें. आदर्श मिट्टी की स्थिति में 25-50 कि.ग्रा. मिट्टी को फेरस सल्फेट से उपचारित करने की सलाह दी जाती है. गन्ने में लोहे की कमी के कारण होने वाले क्लोरोसिस को ठीक करने के लिए 2.5 टन/हेक्टेयर में 125 किलोग्राम जैविक उर्वरक डालें. इसे फेरस सल्फेट के साथ मिलाकर उपयोग करना सबसे अच्छा है. कैल्केरियास मिट्टी में जिप्सम/सल्फर के उपयोग और जल निकासी सुविधाओं की उपलब्धता के कारण लोहे की उपलब्धता बढ़ जाती है.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today