खरीफनामा: उत्तर भारत में अच्छी बरसात (Rain) होने से धान की खेती करने वाले किसान खुश हैं और धान की रोपाई का कार्य तेज हो चुका है. धान की रोपाई के एक महीने बाद फ़सलों में खाद-उर्वरक इसलिए डाले जाते हैं, ताक़ि पैदावार अच्छी हो. लेकिन अच्छी पैदावार के लालच में रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल ज्यादा मात्रा में करने से फ़सल अच्छी होने के बजाय ख़राब होने लगी है. दरअसल पौधों की अपनी मांग होती है. लेकिन कब कितनी उर्वरक की जरूरत पड़ेगी, ये बड़ा सवाल किसानों के सामने था. विशेष तौर पर धान की फ़सल में यूरिया के जरूरत से ज्यादा प्रयोग ने इस सवाल को और गंभीर बना दिया है, लेकिन लीफ कलर चार्ट के माध्यम से किसान धान की फसल में दी जाने वाली यूरिया की ज़रूरी मात्रा का सही अनुमान लगाकर जरूरत से ज्यादा यूरिया के इस्तेमाल से बच सकते हैं.
कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि यूरिया के अधिक प्रयोग से धान की फसल पर कीट-बीमारी का प्रकोप बढ़ जाता है. धान के उत्पादन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है. वही दूसरी तरफ किसानों की लागत बढ़ जाती है. धान की फसल में यूरिया का प्रयोग नियंत्रित करने के उद्देश्य से अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान मनीला (फिलीपिंस) के कृषि वैज्ञानिकों के द्वाऱा लीफ-कलर-चार्ट का निर्माण किया गया है. इस चार्ट के माध्यम से किसान धान की फसल में दी जानेवाली यूरिया की ज़रूरी मात्रा का सही अनुमान लगाकर जरूरत से ज्यादा यूरिया के इस्तेमाल से बच सकते हैं और अपनी धान की फसल से अच्छी उपज ले सकते हैं.
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार धान के बढ़ते पौध की पत्तियों का रंग इस काम में बहुत सहायक है. इनकी हरियाली को एक संकेतक के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है. धान की पत्तियों का रंग कितना गहरा या कितना हल्का है, ये तय करता है कि फसल को नाइट्रोजन की उचित मात्रा ज़मीन से मिल पा रही है या नहीं. इस प्रश्न के लिए सबसे सस्ता और आसान हल है लीफ कलर चार्ट यानी रंग मापी पट्टी. ये एक प्लास्टिक की शीट होती है जिसमें हरे रंग के कुछ कॉलम बने होते हैं. चार्ट गहरे हरे रंग से लेकर पीले- हरे रंग तक के 6 कॉलम में बंटा होता है. हर कॉलम की नंबरिंग होती है,और पत्तियों से मिलान के बाद तय नंबरिंग के अनुसार यूरिया का डोज बताया गया है. ऐसी चार्ट बाजारों में आसानी से उपलब्ध है जो मात्र 50-60 रुपये में किसानों को मिल जाती है. चार्ट के अनुसार फ़सल का रंग जितने गहरे हरे रंग का होगा, उसमें उतनी ज्यादा नाइट्रोजन की मात्रा होगी. ज़ाहिर है तब फसल में यूरिया की ज़रूरत कम होगी और अगर पौधों मे नाइट्रोजन की मात्रा कम होगी तो धान की पत्तियो का रंग भी हल्का हरा या पीला होगा.
अब सवाल ये है कि कितने दिन की फसल के साथ कलर चार्ट का मिलान करें ? कृषि वैज्ञानिक के अनुसार धान की 21 दिन फसल से लेकर धान में बालियां निकलने की शुरूआती अवस्था तक लीफ कलर चार्ट का इस्तेमाल करें. इसके लिए खेत के 10 प्रतिनिधि पौधों का चुनाव करें. सुबह 8-10 बजे या शाम में 2 से 4 बजे के बीच चयन किए गए इन पौधों की शीर्ष पत्तियों के रंगों का चार्ट से मिलान करें. अगर 10 पत्तियों में से 6 पत्तियों का रंग ऊपर के गहरा हरा, हरा या धानी वाले कॉलम 6, 5, और 4 के रंगों के अनुसार है तो खेतों में नाइट्रोजन का प्रयोग नहीं करना होता है. अगर धान की पत्तियों का रंग लीफ कलर चार्ट में कॉलम 3 से लेकर कॉलम 1के रंग से मिलता है, तो धान की फसल में यूरिया का प्रयोग करना जरूरी है. इन कॉलमों का रंग हल्का हरा या हल्का पीला होता है. इसलिए 25 एकड़ के हिसाब से यूरिया डालें. लीफ-कलर-चार्ट के प्रत्येक कॉलम के रंग के हिसाब से प्रति एकड़ यूरिया की मात्रा निर्धारित की गई है. हर 10 दिन के अंतराल पर यह प्रक्रिया दोहराएं और ज़रूरत के मुताबिक यूरिया डालें. आईएआरआई पूसा द्वारा धान में लीफ कलर चार्ट की यूरिया की अनुशंसा इस प्रकार है
धान के प्रकार लीफ कलर चार्ट वैल्यू प्रति एकड़ /किलो यूरिया
खरीफ़ धान गैर बासमती ≤ 4 24
खरीफ़ धान बासमती ≤ 3 20
धान की सीधी बुवाई गैर बासमती ≤ 3 20
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार लीफ कलर चार्ट के उपयोग के समय कुछ सावधानियों को भी ध्यान में रखना जरूरी है. जैसे- फसल में लीफ कलर चार्ट से मिलान करने वाली पत्तियां पूरी तरह से रोग मुक्त होनी चाहिए. पत्ती के रंग का मिलान करते समय लीफ कलर चार्ट को शरीर के छाया में रखना चाहिए औऱ पत्ती के मध्य भाग को चार्ट के ऊपर रख कर मिलान करना चाहिए. पत्ती का चार्ट से मिलान करते समय सूर्य की रोशनी चार्ट पर नही पड़नी चाहिए. जब धान की खेत में पानी का ठहराव हो तो यूरिया का प्रयोग ना करें और धान की फूल की अवस्था के बाद यूरिया का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए.
कृषि वैज्ञानिकों का सुझाव है इस चार्ट के इस्तेमाल से आप धान की फसल को अनावश्यक यूरिया देने से बच जाएंगे. इससे 35 से 40 किलो/एकड़ यूरिया बचाया जा सकता है. इससे यूरिया की बचत होगी यानी आपकी लागत कम होगी. धान के खेतों की उर्वरता भी बनी रहेगी. ज्यादा यूरिया के बोझ से फसल खराब नहीं होगी. वही फसल में कीट- बीमारी भी नही आएगी. इसके साथ ही भूमिगत जल की गुणवत्ता भी खराब होने से बचेगी.आप इस रंगमापी पट्टी का प्रयोग कर आसानी से अपना मुनाफा बढ़ा सकते हैं.
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