हरियाणा में विलुप्त होने के कगार पर बासमती की परंपरागत किस्में, जानें किसान क्यों छोड़ रहे हैं खेती?

हरियाणा में विलुप्त होने के कगार पर बासमती की परंपरागत किस्में, जानें किसान क्यों छोड़ रहे हैं खेती?

सोनीपत जिले के किसान अशोक कुमार दहिया ने कहा कहा कि मैं अगले साल पूसा बासमती 1509 का विकल्प चुनूंगा, क्योंकि यह कम समय में पक कर तैयार हो जात है. ऐसे में गेहूं की खेती के लिए पर्याप्त समय मिलेगा. अशोक ने इस साल पूसा बासमती 1718 और 1885 की बुआई की है. दहिया ने कहा कि चूंकि उनकी आजीविका खेती पर ही निर्भर है, इसलिए वे अधिक उत्पादन देने वाली किस्मों का चयन करेंगे, ताकि ज्यादा से ज्यादा मुनाफा हो सके.

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हरियाणा में विलुप्त होने के कगार पर बासमती की परंपरागत किस्में, जानें किसान क्यों छोड़ रहे हैं खेती?हरियाणा में बासमती चावल की खेती. (सांकेतिक फोटो)

भारत विश्व का सबसे बड़ा चावल का निर्यातक देश है. यह अपने यहां उत्पादित 80 प्रतिशत से अधिक बासमती चावल का एक्सपोर्ट कर देता है. लेकिन इंडिया में बासमती की प्रमुख पारंपरिक किस्में धीरे- धीरे विलुप्त होती जा रही हैं. क्योंकि किसानों ने अब अधिक उपज देने वाली बासमती की किस्मों की तरफ रूख कर लिया है. खास कर हरियाणा के तरावड़ी क्षेत्रों में किसान वैज्ञानिकों द्वारा विकसित बासमती की किस्मों की खेती कर रहे हैं. ऐसे में हरियाणा के तरावड़ी क्षेत्र की परंपरागत बासमती की किस्में अब लगभग गायब सी हो गई हैं. 

द हिंदू बिजनेस लाइन की रिपोर्ट के मुताबिक, तरौरी के पास राजगढ़ गांव के किसान गुरविंदर सिंह गोल्डी का कहना है कि मजदूरों की कमी की वजह से मैंने पारंपरिक बासमती उगाना बंद कर दिया है. अब मैं (पूसा बासमती) 1509 किस्म की खेती कर रहा हूं. उनकी माने तो हरियाणा में ताराओरी बासमती के अलावा पांच अन्य पारंपरिक किस्में हैं. इन किस्मों में बासमती 217, बासमती 370, देहरादूनी 3, रणबीर बासमती, और बासमती 386 शामिल हैं. इन किस्मों की खेती हरियाणा के अलावा पंजाब, जम्मू- कश्मीर, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में भी की जाती है.

रेट 6600 से 6300 रुपये प्रति क्विंटल है

द नेचुरल हिस्ट्री ज्योग्राफिकल इंडिकेशन के लेखक एस.चंद्रशेखरन का कहना है कि साल 2003 और 2008 के बीच विकसित बासमती चावल की किस्म पूसा बासमती 1121 ने पारंपरिक बासमती और पूसा बासमती -1 को मार्केट से हटा दिया है. अब किसान इनकी खेती नहीं कर रहे हैं. उनकी माने तो किसान अब मार्केट को ध्यान में रखते हुए बासमती की खेती कर रहे हैं.

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चालू सीजन में बासमती की विकसित किस्म सीएसआर 30 का रेट 6600 से 6300 रुपये प्रति क्विंटल है. वहीं, पूसा बासमती 1121 का रेट 4200 से 4500 रुपये प्रति क्विंटल. इसी तरह पूसा बासमती 1509 का मंडी भाव 3200 से 3500 रुपये क्विंटल है. वहीं, पैदावार की बात करें तो सीएसआर 30 की औसत उपज 12-13 क्विंटल प्रति एकड़. इसी तरह पूसा बासमती 1121 का 18 से 20 क्विंटल प्रति एकड़ और पूसा बासमती 1509 की औसत उपज 22-25 क्विंटल एकड़ है.

भौगोलिक संकेत के दावों का क्या होगा

ऐसे में चंद्रशेखरन को डर यह है कि इस बदलाव का भारत के भौगोलिक संकेत के दावों पर क्या मतलब होगा? अगर ऐसा ही चलता रहा और किसान नई- नई बासमती किस्मों को अपनाते रहे तो, क्या पारंपरिक किस्मों को पुनर्जीवित किया जा सकता है? चंद्रशेखरन के अनुसार, हाल ही में लॉन्च की गई नेशनल कोऑपरेटिव्स एक्सपोर्ट लिमिटेड (एनसीईएल) निर्यात बाजार में पारंपरिक बासमती चावल की किस्मों के पुनरुत्थान में भूमिका निभा सकती है.

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वापस लाना अपरिहार्य है

उन्होंने कहा, चूंकि कृषि पर समझौते का अनुच्छेद 6 (डब्ल्यूटीओ के तहत) देशों को जैव विविधता की रक्षा के लिए सब्सिडी बढ़ाने और पर्यावरणीय उपाय करने की अनुमति देता है. पारंपरिक बासमती चावल की किस्मों की रक्षा के लिए एनसीईएल के माध्यम से सब्सिडी दी जा सकती है. उनकी माने तो पारंपरिक बासमती किस्मों के व्यावसायिक पहलू को वापस लाना अपरिहार्य है.

 

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