अरहर की खेती हमेशा से किसानों के लिए फायदे का सौदा रही है. लेकिन बाजार में अरहर के दाम कम-ज्यादा होते रहते हैं. अरहर की खेती खरीफ सीजन में की जाती है. वहीं, खरीफ सीजन आते ही कई राज्यों के किसान अरहर की खेती कर चुके हैं. जो किसान अभी तक अरहर की खेती नहीं कर पाए हैं, वो जुलाई के महीने में अरहर की देर से पकने वाली कुछ किस्मों की खेती कर सकते हैं. इन किस्मों की खेती से किसानों को अच्छा उत्पादन मिलता है. इसके अलावा किसानों को अरहर की खेती में कुछ सावधानियां बरतने की जरूरत होती है. इसमें किसानों को अरहर की बुवाई से पहले उसके बीज का उपचार करना होता है. आइए जानते हैं कौन सी हैं किस्में और कैसे करें बीज का उपचार.
बात करें अरहर की देर से पकने वाली हाइब्रिड किस्मों की तो इसमें, बहार, एम.ए. एल.13, पूसा-9, शरद (डी.ए.11) पी.पी.एच.-4, आई.सी.पी.एच.8, जी.टी.एच.-1 आई.सी.पी.एच.-2671, आई.सी.पी.एच.-2740 किस्में शामिल हैं. इन किस्मों की खेती किसान जुलाई के अंत तक कर सकते हैं.
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किसी भी फसल उत्पादन से पहले बीज उपचार अति आवश्यक होता है. बीज उपचार करने से फसलों में रोग कम लगते हैं. ऐसे में अरहर के बीज का उपचार करने के लिए 10 किलो बीज के लिए राइजोबियम कल्चर का एक पैकेट (100 ग्राम) पर्याप्त होता है. इसके अलावा इसमें 50 ग्राम गुड़ या चीनी को 1/2 लीटर पानी में घोलकर उबाल लें. घोल के ठंडा होने पर उसमें राइजोबियम कल्चर मिला दें. इस कल्चर में 10 किलो बीज डाल कर अच्छी प्रकार से मिला लें, ताकि प्रत्येक बीज पर कल्चर का लेप चिपक जाए. उपचारित बीजों को छाया में सुखा कर दूसरे दिन बोया जा सकता है.
अरहर की खेती करने के लिए खेत की मिट्टी में पलट हल से एक गहरी जुताई कर लें. उसके बाद 2-3 जुताई हल और हैरो से करना उचित रहता है. वहीं, बुवाई के समय की बात करें तो जल्दी पकने वाली किस्मों की बुवाई जून के पहले पखवाड़े में करनी चाहिए. मध्यम और देर से पकने वाली किस्मों की बुवाई जुलाई के अंतिम पखवाड़े में करनी चाहिए.
अमूमन किसान अरहर की खेती छींटा विधि से करते हैं, जिससे कहीं ज्यादा तो कहीं कम बीज जाते हैं. इससे कहीं घनी तो कहीं खाली फसल तैयार होती है. इससे फसल में कमी आती है क्योंकि घना हो जाने से पौधों को उचित धूप, पानी और खाद नहीं मिल पाती है. इसके लिए किसान को 20 सेंटीमीटर की दूरी पर बीज लगाने चाहिए. इससे बीज दर भी कम लगता है.
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